अद्वितीय मंदिर: आपने 2013 में उत्तराखंड में हुई तबाही के बारे में तो सुना ही होगा, जिसमें भयानक जल प्रलय के कारण पूरा केदारनाथ तहस नहस हो गया था, लेकिन इस तबाही के बीच में बाबा केदार का मंदिर अपनी जगह से ना तो हिला नहीं उसे कोई खरोच आई. इसका पता लगाने कई वैज्ञानिकों ने कई तथ्य निकाले, लेकिन अंत में जवाब एक ही मिला: भक्तों की श्रद्धा जिसके चलते बाबा केदार के उस धाम को कोई खरोच नहीं आई. यह कहानी तो आप सभी को पता है, लेकिन आज हम आपको जबलपुर में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी कहानी भी कुछ इसी तरह है, जो कई वर्षों से कई भीषण जल प्रलय आने के बाद भी अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ. हम बात कर रहे हैं जबलपुर संस्कारधानी के ग्वारीघाट में स्थित मां नर्मदा के मंदिर की जो की नर्मदा के बीचो-बीच स्थिति है.

कई दिनों तक पानी के भीतर डूबा रहता है मां नर्मदा का ये मंदिर बारिश के दिनों में यह मंदिर कई दिनों तक नर्मदा के अंदर डूबा रहता है, लेकिन उसके बाद भी इस मंदिर को आज तक कोई खरोच नहीं आई, बारिश के दिनों में यहां पर जब बरगी में स्थित बांध के गेट खोल दिए जाते हैं तब नर्मदा का जल स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसके चलते यह मंदिर कई दिनों तक नर्मदा में जलमग्न रहता है. गौरतलब है कि इतने दिनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी यह मंदिर अपनी जगह से हिलता नहीं है और सीना तान के नर्मदा के बीच में आज तक खड़ा हुआ है.
पिलर के बिना एक अद्वितीय मंदिर
इस मंदिर को बिना किसी पिलर के बनाया गया है, और यह अपनी अद्वितीयता के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में मौजूद शास्त्री जी ने बताया कि यह अनूठा मंदिर है जिसमें न कोई पिलर है, ना ही कोई खरोच। वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो इस मंदिर को नदी के बीच में खड़ा रहना असंभव है, लेकिन इसके बावजूद, यह मंदिर बड़े जल के तीव्र बहाव को सहता रहा है।
जबलपुर में हर वर्ष के बारिशी दिनों में, मां नर्मदा का स्तर इतना बढ़ जाता है कि घाट पर सभी दुकानें बंद हो जाती हैं और सुरक्षा की दृष्टि से, घाट पर लोगों का प्रवेश निर्बंधित हो जाता है। फिर भी, इस मंदिर ने अपनी स्थिति से कभी नहीं हटी, बिना हिले-डुले, जल के तीव्र बहाव को सहता रहा है, और आज तक अपनी अद्वितीयता में बरकरार है।
अद्वितीयता का प्रतीक: अद्वितीय मंदिर का रहस्य
मंदिर में मौजूद शास्त्री जी ने बताया कि यह मंदिर बिना किसी पिलर के बनाया गया है। इसके बावजूद, नदी के रेतीले बेस पर यह मंदिर टिका है, जिसमें कोई सपोर्ट नहीं है और न कोई खरोच। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह मंदिर नदी के बीच में ऐसे खड़ा रहना संभावनाओं के खिलाफ है, लेकिन उसके बाद भी यह मंदिर बिना हिले-डुले, बड़े जल के तीव्र बहाव को सहता रहा है।

मान्यताएँ और विशेषताएँ
इस मंदिर की विशेष मान्यता है कि मां नर्मदा की पूर्ण परिक्रमा करने में सामान्यत: 3 वर्ष, 3 महीने, और 13 दिन लगते हैं। हालांकि, यहां पर एक अनोखी अनुशासन है जो कहता है कि जो भक्त एक बार इस मंदिर की परिक्रमा कर लेते हैं, उन्हें मां नर्मदा की पूर्ण परिक्रमा के समान फल प्राप्त होता है। पुजारी जी बताते हैं कि यहां पर मां नर्मदा को आटे का हलवा भोग के रूप में चढ़ाया जाता है, और इस मंदिर में आने वालों के लिए यह आवश्यक है कि वे मंदिर की परिक्रमा को पूरा करें, इससे वर्णा उनकी यात्रा अधूरी मानी जाती है।