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रविवार को जेकेके में एक नहीं 8 मंचों की कहानी एक साथ चली, जो था ‘मुक्तिधाम’। यहां कलाकार लड़ते झगड़ते, हंसी ठिठोली करते हुए तांकझांक करते नजर आए। अभिषेक मुद्गल के निर्देशन में चल रहे इस नाटक में इमर्सिव थिएटर वह कला रूप है जिसमें दर्शकों को एक अनुभव में घुसने का मौका मिलता है। यहां पर, किरदारों और दर्शकों के बीच कोई भी सीमा नहीं होती है और दर्शक जांचते हैं कि वे कहानी का हिस्सा कैसे बनते हैं। यह थिएटर के विभिन्न रूपों में से एक है इमर्सिव थिएटर: र्शकों को वास्तविकता के गहराई में ले जाने का प्रयास इमर्सिव थिएटर एक ऐसा रूप है जिसमें दर्शकों को वास्तविकता के गहराई में ले जाने का प्रयास किया जाता है। इसमें नाटक का स्थानीय वातावरण बनाया जाता है, जहां दर्शक नहीं सिर्फ एक दृश्यकर्मी के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं, बल्कि उनकी हरकतें, उनके विचार और उनके निर्णय भी कहानी में प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार के थिएटर में दर्शकों को आसपासी माहौल में इमर्स कराने के लिए विभिन्न तकनीकी और सांस्कृतिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है, जिससे उन्हें कहानी का हिस्सा बनने का अनुभव होता है। यह थिएटर दर्शकों के बीच साझा अनुभव को प्रोत्साहित करता है और उन्हें नए दृष्टिकोण से कला का अनुभव कराता है। इमर्सिव थिएटर का मुख्य उद्देश्य दर्शकों को कहानी के एक-एक पहलू में गहराई तक ले जाना होता है। इसमें दर्शकों को एक वातावरण में अंकुरित किया जाता है जो कि कहानी के साथ संबंधित होता है, चाहे वह कोई ऐतिहासिक स्थल हो या फिर किसी कारगर संघर्ष का प्रस्तावित प्रतिबिम्ब हो। इस प्रकार के थिएटर में दर्शकों को सम्मिलित किया जाता है और उन्हें कहानी की गहराई में समाहित किया जाता है, जिससे उनका अनुभव न केवल देखने का होता है, बल्कि वे उसके एक हिस्सा भी बन जाते हैं। इसमें संवाद, वातावरण, और दृश्य कर्मी की समझदारी का बहुत महत्व होता है, जिससे दर्शक वास्तविकता में समाहित हो सकें। यह थिएटर एक सांस्कृतिक अनुभव को बढ़ावा देता है, जहां दर्शक कला को एक नए और प्रेरणादायक तरीके से समझते हैं। ‘अभिषेक मजूमदार ने लिखा नाटक मुक्तिधाम’ मुक्तिधाम’ एक नाटक है जिसे अभिषेक मजूमदार ने लिखा है। यह नाटक भारतीय समाज के सामाजिक और जात पात के मुद्दों पर आधारित है । और इसमें विभिन्न सामाजिक विभाजनों, सामाजिक उपेक्षाओं और सामाजिक विवादों को उजागर किया गया है। ‘मुक्तिधाम’ कहानी भारत के एक छोटे गांव बीरपुर के बारे में है, जहां एक सम्प्रदायिक विवाद के बीच मुक्तिधाम के लोगों की जिंदगी का चित्रण किया गया है। इस नाटक में व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के विविध पहलू, धार्मिक और सामाजिक संघर्ष, सत्ता के लिए लड़ाई और मानवीयता के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया गया है। अभिषेक मजूमदार की रचनाएं उसके विचारशील और साहित्यिक प्रतिभा को दर्शाती हैं और ‘मुक्तिधाम’ भी उसी प्रमाण में एक महत्वपूर्ण योगदान है। इसने नाटक कला में एक नई दिशा दिखाई है और समाज की गहरी समस्याओं को उजागर करता है। नाटक के निर्देशक संगीत नाटक अकादमी अवॉर्डी अभिषेक मुद्गल एक प्रमुख थिएटर कलाकार और निर्माता है जो जयपुर से संबंधित हैं। उन्होंने थिएटर की दुनिया में अपना करियर बनाया है और अपनी यूरोप यात्रा के दौरान उन्होंने इस डिज़ाइन को जाना। अनेक नाटकों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। उनका काम विभिन्न साहित्यिक, सामाजिक मुद्दों पर आधारित होता है और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से दर्शकों को समाज के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराया है। नाटक अलंकार आर्ट गैलरी में अलग-अलग स्पेस में खेला जाएगा नाटक में 10 शो प्रस्तुत किए जाएंगे और प्रत्येक शो में केवल 30 ही दर्शकों को प्रवेश मिलेगा। नाटक से पहले दर्शकों के मोबाइल फोंस भी बाहर रखे जाएंगे जिससे उन्हें प्रस्तुति में कोई भी डिस्टरबेंस ना हो। अलंकार के अलग-अलग एरिया में विरपुर का मठ मुक्तिधाम अहिल्या का घर बौद्ध मठ तिल और विरपुर का चौराहा बनाया गया है। एक ही समय पर कहानी को चलते हुए पूरा स्पेस अभिनेताओं द्वारा लाइव रखा जाएगा और दर्शन पूरे स्पेस पर कहीं भी जाकर अभिनेताओं को देख सकते हैं।

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