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उज्जैन का ऐसा एक मंदिर जहां महाअष्टमी पर मदिरा का भोग लगाया जाता है

उज्जैन, मध्यप्रदेश, भारत

दुनिया भर में अनगिनत मंदिर हैं, हर एक का अपना अपना अत्यंत महत्व होता है, और वे अपनी परंपराओं और आदतों के लिए प्रसिद्ध होते हैं। लेकिन उज्जैन शहर के चौबीस खंभा माता मंदिर में महाअष्टमी पर एक अनोखी परंपरा है, जिसमें माता को मदिरा का भोग लगाया जाता है। यह परंपरा शहर के इतिहास में विशेष महत्व रखती है और आज भी जिला प्रशासन द्वारा निभाई जाती है।


माता महामाया और देवी महालाया मंदिरों में मदिरा का भोग:
इस परंपरा का आरंभ राजा विक्रमादित्य के समय हुआ था और आज भी वही परंपरा जारी है। मान्यता है कि माता महामाया और देवी महालाया मंदिरों में मदिरा का भोग लगाने से शहर में महामारी के प्रकोप से बचा जा सकता है।

उज्जैन का ऐसा एक मंदिर जहां महाअष्टमी पर मदिरा का भोग लगाया जाता है

राजा विक्रमादित्य की परंपरा: यह परंपरा राजा विक्रमादित्य के समय से ही चली आ रही है। लोग माता महामाया और देवी महालाया को मदिरा का भोग लगाने से शहर में किसी भी प्रकार की आपदा या बीमारी के संकट को दूर करने का मानते हैं। यह परंपरा शहर के सुख और समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।


विशेषता:
इस परंपरा का एक अद्वितीय पहलू यह है कि मदिरा का भोग एक खास तरीके से लगाया जाता है। एक विशाल घड़ा या पिचकारी का उपयोग करके मदिरा को भरा जाता है, और यह घड़ा नीचे से छेद वाला होता है। पूरी यात्रा के दौरान, इस घड़े में से शराब की धारा निकलती रहती है, और यह देवी मां को अर्चना के रूप में चढ़ाई जाती है, जो कभी टूटती नहीं है।


पूजा का आयोजन:
महाअष्टमी के दिन शुरू होने वाली यह यात्रा माता महामाया और देवी महालाया मंदिर से निकलती है, और शासकीय दल अनेक देवी और भैरव मंदिरों में पूजा करते हुए चलती है। नगर पूजा में 12 से 14 घंटे का समय लगता है, और यह यात्रा शहर की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

27 किलो मीटर लंबे नगरपूजा मार्ग पर निरंतर मदिरा की धार लगाई जाएगी.तंत्र की भूमि उज्जैन में नवरात्र के दौरान साधना आराधना का विशेष महत्व है.यहां देवी व भैरव मंदिरों में अलग-अलग प्रकार से सात्विक व तामसिक पूजा की जाती है.कलेक्टर खुद करते है इसकी शुरुआत.

भक्तों में बंटता है शराब का प्रसाद:

पूजन खत्म होने के बाद माता मंदिर में चढ़ाई गयी शराब को प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है. इसमें बड़ी संख्या श्रद्धालु प्रसाद लेने आते है. उज्जैन नगर में प्रवेश का प्राचीन द्वार है. नगर रक्षा के लिये यहां चौबीस खंबे लगे हुए थे. इसलिये इसे चौबीस खंभा द्वार कहते हैं. यहां महाअष्टमी पर सरकारी तौर पर पूजा होती है और फिर उसके बाद पैदल नगर पूजा इसलिये की जाती है ताकि देवी मां नगर की रक्षा कर सकें और महामारी से बचाएं.

मेरा सौभाग्य की मुझे इस पूजा का अवसर मिला – कलेक्टर
नगर पूजा के दौरान कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम माता की भक्ति में लीन दिखाई दिए। इस दौरान उन्होंने परंपरागत रूप से माता का पूजन अर्चन कर उन्हे मदिरा का भोग लगाया और पुजारी द्वारा उड़ाई गई चुनरी को भी ओड़े रखा। पूजन अर्चन के बाद कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम ने मीडिया से कहा कि यह सांस्कृतिक परंपरा आदिकाल से चली आ रही है, मेरा सौभाग्य है कि कलेक्टर होने के नाते मुझे इसका अवसर मिला मेरी एक ही कामना है कि शहर जिले में समृद्धि हो। बाबा महाकाल और माता हरसिद्धि का आशीर्वाद सब पर बना रहे। भारत के चक्रवर्ती सम्राट राजा विक्रमादित्य ने जनकल्याण के लिए इस पूजा की शुरुआत की थी। यह हमारी परंपरा है जिसमें नगर पूजा के दौरान माता को मदिरा का भोग लगाया जाता है, जिसका निर्वहन किया जा रहा है। परंपराओं का निर्वहन करने वाली ऐसी यात्राएं मन को अच्छी लगती हैं यह यात्रा इसलिए भी काफी अच्छी है क्योंकि इसमें ग्राम के कोटवार से लेकर कलेक्टर तक शामिल होते हैं।

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