किसान महापंचायत के राष्ट्रीय रामपाल जाट ने कहा कि राजस्थान सरकार इस सर्वमान्य तथ्य को तो स्वीकार करती है कि किसान अन्नदाता होने के साथ ही अर्थव्यवस्था की धुरी भी है। कृषि से धन और ज्ञान प्राप्त होते हैं, कृषि ही मानव जीवन का आधार है । इसी दृष्टि को ध्यान में रखते हुए माननीय प्रधानमंत्री के किसानों की आय दो गुणा करने के लक्ष्य को आधार बनाते हुए बजट तैयार किया गया। इसके उपरांत भी राजस्थान की समृद्धि के लिए खेत को पानी और फसल को दाम के मंत्र की उपेक्षा की गई। इसीलिए खेत को पानी की दिशा में सिंचाई परियोजनाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं दी गई। इसी कारण 12 जिले की वृहद पवन सिंचाई परियोजना सिंधु जल समझौते का पाकिस्तान में जाने वाले पानी के राजस्थान में सिंचाई हेतु उपयोग पर इंदिरा गांधी, यमुना-नर्मदा-माही जैसी सिंचाई परियोजनाओं का राजस्थान की भागीदारी का पानी प्राप्त करने की सार्थक चर्चा नहीं की गई। इसके अतिरिक्त राजस्थान की जीवनदायी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना संशोधित पार्वती-काली-सिंध-चंबल लिंक परियोजना पर 9600 करोड रुपए पूर्व से स्वीकृत बजट की ही चर्चा की गई, नया आवंटन नहीं किया गया। मंत्र के दूसरे भाग फसल को दाम के संबंध में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के कानून बनाने का उल्लेख बजट में नहीं है, इससे राजस्थान की प्रमुख उपज बाजरा, सरसों, मूंग एवं जौ को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में बेचने को विवश होना पड़ता है जिसमें पिछले 10 वर्षों से बाजरा तो सरकारों ने खरीद ही नहीं किसानों को एक क्विंटल 1000 रुपये तक का घाटा उठाकर बेचना पड़ा । इस प्रकार की विवशताओं से किसानों को बचाने के लिए भारत सरकार ने 17 वर्ष के चिंतन मंथन के उपरांत आदर्श कृषि उपज एवं पशुपालन विपणन (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम 2017 का प्रारूप तैयार कर सभी राज्यों को 2018 में प्रेषित कर दिया था। उसी का आधार पर राजस्थान में वर्ष 2018 में विधेयक का प्रारूप तैयार हो गया, जो अभी भी सरकार की अलमारी में बंद है । यदि यह विधेयक धरातल पर कानून के रूप में आ जाता तो किसानों को अपनी उपज होने पौने दामों में बेचने को बाध्य नहीं होना पड़ता। इसके अतिरिक्त ग्वार, मोठ, मसाला, औषधि, फल, फूल एवं सब्जियां के भी उत्पादक किसानों को भारत सरकार की घोषणा के उपरांत भी लाभकारी मूल्य नहीं मिलते। इस संबंध में इस बजट में कोई प्रावधान नहीं है। इससे यह बजट सरकार द्वारा व्यक्त किए व्यक्त किए गए मापदंडों पर भी खराब नहीं उतरता, किसानों को इससे निराशा ही हाथ लगी है। प्रदेश की समृद्धि तब तक संभव नहीं जब तक किसान समृद्ध नहीं हो।