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कलंदर संस्था पिछले 15 वर्षो से नाट्य कला जगत में सक्रिय रूप से काम कर रही है। पिछले एक साल से रेपर्टरी का भी संचालन कर रही है। यहां गुरु शिष्य परंपरा के तहत नाट्य कला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इसी श्रृखंला के तहत कलंदर में नाट़्य कार्यशाला का आयोजन पिछले तीन माह से किया जा रहा है। इसी कार्यशाला के अंतर्गत प्रतिभागियों ने सआदत हसन मंटो की कहानियों पर आधारित नाटक तैयार किया है। इस कार्यशाला में प्रतिभागियों ने अपनी कहानियां खुद चुनी हैं और अपनी प्रस्तुति खुद ही लेकर आए हैं। इसी प्रशिक्षण के दौरान कथ्य को समझना और और उसके अर्थों को परिभाषित करना और प्रक्कथन को समझने की प्रक्रिया में ही इन कहानियों का निर्माण किया और अब 11 जुलाई को जवाहर कला केंद्र में प्रस्तुत होगा। इस अवसर पर तीन कहानियां और मंटो के कुछ किस्से आपके समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे।
पहली कहानी पेशावर से लाहौर तक की है। इसमें जावेद पेशावर से ही ट्रेन के जनाना डिब्बे में एक खूबसूरत औरत को देखता चला आ रहा था और उसके हुस्न पर फिदा हो रहा था। रावलपिंडी स्टेशन के बाद उसने जान-पहचान बढ़ाई और फिर लाहौर पहुंचने तक उसने सैकड़ों तरह के मंसूबे बना डाले। लाहौर पहुंच कर जब उसे मालूम हुआ कि वह एक तवायफ है तो वह उलटे पांव रावलपिंडी लौट गया।
दूसरी कहानी टोबा टेक सिंह है। सआदत हसन मंटो की कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ 1955 में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय लाहौर के एक पागलखाने के पागलों पर आधारित है। विभाजन के दर्द को बयां करती यह एक कालजयी कहानी है। मंटो की कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ में प्रवासन की पीड़ा पर फोकस किया गया है। यह काहनी विभाजन के समय लाहौर के एक पागलखान के पागलों पर आधारित है और समीक्षकों ने इस कथा को पिछले75 सालों से सराहते हुए भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर एक शक्तिशाली तंज बताया है।
तीसरी कहानी खोल दो है। खोल दो विभाजनके दौर की एक ऐसी ही कहानी है, जिसे काल्पनिक रूप से मानवीय दुर्गुणों की गहराई के समानांतर बताया गया है जो 2012 में दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार के दौरान भी देखी गई थी। यह लघुकथा सिराजुद्दीन के दृष्टिकोण से बताई गई है, जिसकी बेटी सकीना उस समय लापता हो जाती है। वे जिस ट्रेन में यात्रा कर रहे थे, उस पर दंगाइयों ने हमला कर दिया था।सिराजुद्दीन पाकिस्तान में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं से अपनी बेटी की तलाश के लिए एक खोज दल बनाने के लिए कहता है। तब यह पता चलता है कि उसे खोजने के बाद, पुरुष खुद उसका बलात्कार करते हैं, और उसे शरणार्थी शिविर के पास मरने के लिए छोड़ देते हैं, जिसमें सिराजुद्दीन रह रहा है। अंतिम दृश्य, जिसमें सकीना हस्पताल में बेहोश पड़ी है, अपनी सलवार खोल रही है, और फिर से बलात्कार होने की आशंका हो रही है,यह विशेष रूप से उन पीड़ितों के आघात को दर्शाता है जिनके अपराधी अक्सर उनके अपने समुदायों के ही पुरुष थे, जितना कि दूसरों के।

प्रस्तुति नियंत्रक :- कैलाश चोपड़ा, वंशिका शर्मा
मंच प्रबंधक :- कनिष्क शेखर शर्मा
संगीत संयोजन :- मोहित पारीक, देव शर्मा
प्रकाश परिकल्पना :- राजीव मिश्रा
कंटेंट क्रिएशन:- वंशिका शर्मा, कनिष्क शेखर शर्मा
मंच कलाकार :- राहुल नांबियार, कनिष्क शेखर शर्मा, कपिल मंघनानी , मोहित कृष्ण और वैभव दीक्षित।
मंच परे:- वैभव दीक्षित, निशी अग्रवाल, विशाल कोडवानी
फोटो वीडियो:- वैभव दीक्षित, दशरथ दान
मेंटर :- रुचि भार्गव नरूला

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