मनोरोग विभाग की ओर से जनाना अस्पताल में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कर नर्सिंग स्टॉफ को मनोरोग विभाग की नोडल अधिकारी डॉक्टर रश्मि गुप्ता ने बताया कि अस्पताल में आने वाले मरीज और परिजनों को किस प्रकार से मैनेज किया जाए, ताकि वह संतोषप्रद होकर इलाज करा सके। कई बार बेवजह छोटी-छोटी बातों को लेकर विवाद होते रहते हैं। नोडल अधिकारी मनोचिकित्सक डॉ.रश्मि गुप्ता ने बताया कि कार्यशाला में नर्सिंगकर्मियों को मरीज के प्रति संवेदनशील होने के तरीके बताए गए। इस दौरान उन्होंने कहा कि मरीज परेशानी में आते है ऐसे में उनसे बात करते समय कई बार विवाद हो जाते है। अस्पताल में आने वाले मरीज और उनके परिजन से किस तरह से व्यवहार किया जाए इसके बारे में विस्तार से अलग-अलग टिप्स दिए। साथ ही क्या मेडिकल कर्मियों में तनाव को लेकर 1 से 10 बिंदुओं की जानकारी मांगी गई। बिंदुओं के आधार पर जानकारी अधीक्षक को सौंपेंगे
मांगी गई जानकारी में पिछले माह कितनी बार आप के साथ कुछ अप्रत्याशित घटना घट जाने से आप परेशान हुए। आपको कितनी बार लगा कि जीवन की आवश्यक चीज़ों को आप नियंत्रित नहीं कर पाएं। आपने कितनी बार घबराहट तथा तनाव महसूस किया। कितनी बार आप अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से सामना करने के लिए आत्मविश्वास पूर्ण लगे। कितनी बार आपको लगा कि चीजें आपके पक्ष में जा रही है। कितनी बार आपने यह पाया कि जो सारी चीजें आपको करनी पड़ रही है, उन्हें आप निपटा नहीं पा रहे हैं। कितनी बार आपको लगा कि आप अपने जीवन में चिड़चिड़ाहट को काबू कर पाए। पिछले माह, आपको कितनी बार लगा कि सभी आप के नियंत्रण में है। कितनी बार आपको इस बात पर गुस्सा आया कि चीजें आपके नियंत्रण के बाहर है। पिछले माह, कितनी बार आपको लगा कि मुसीबतों का अंबार लगता जा रहा है, जिस पर आप जीत प्राप्त नहीं कर सकते हैं। काम से तनाव हो तो नशे का सहारा न लें
नर्सिंगकर्मियों को कार्यस्थल पर बर्नआउट यानि की कार्यस्थल पर सवेंदनहिनता, गुस्सा तनाव की स्थिति के कार्य व्यक्ति एवं व्यक्तित्व से संबंधित कारकों को समझना, बर्न आउट के भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक लक्षणों को समय से पहचान कर विशेषज्ञ की सलाह लेना ठीक होता है एवं अपने व्यवहार जैसा गुटखा, मोबाइल या अन्य नशे का सहारा न लेने के लिए समझाया। सभी नर्सिंग कर्मियों को देंगे प्रशिक्षण
डॉक्टर राशि गुप्ता ने बताया कि प्रशिक्षण 60-70 कर्मचारियों को ग्रुप बनाकर दिया जा रहा है। इमोशनल कोशेंट यानी किस तरह स्वयं के इमोशंस को समझ कर उन्हें प्रेरित किया जाए। साथ ही समझ का उपयोग कर दूसरे की स्थिति को समझकर उनके गुस्से को शांति से हैंडल कर मरीज और परिजनों को संतुष्ट किया जा सके।