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जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव के तहत सोमवार शाम 6 बजे सुभाष चौक स्थित जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ इंद्र विमान से पूरे शाही लवाजमें के साथ रवाना होंगे। दो मंजिला इंद्र विमान सजधज कर तैयार है। उस पर सवार होकर निकलेंगे। हजारों भक्तों की नजर उनके दर्शन को आतुर रहेंगी। जैसे ही शाम के 6 बजेंगे जगन्नाथजी दुबई से आई पोशाक पहनकर और इत्र लगाकर बारह लाए जाएंगे। पूरे बैंड बाजे के साथ रथ में विराजमान कराया जाएगा। उनके आगे-पीछे अनेक झांकियां रहेंगी। इस बार श्रीराम मंदिर का बड़ा मॉडल भी झांकी में रहेगा। एक दिन पहले रविवार को सीतारामजी अगुवाई करने के लिए रूपहरि मंदिर पहुंच गए। जगह-जगह फूल बरसाए जाएंगे। हर मंदिर में आरती होगी। प्याऊ और भंडारों की भरमार रहेगी। रथयात्रा के साथ-साथ मेले में भीड़ रहती है। जगन्नाथजी की सवारी से पहले सीताराम जी एक दिन पहले पहुंचते हैं। ताकि भगवान जगन्नाथ की अगुवाई कर सकें। सीतारामजी की सवारी भी गाजे-बाजे के साथ निकली। दिन भर अखंड कीर्तन हुआ। शहनाई वादन हुआ। भगवान जगन्नाथजी को नई पोशाक पहनाई गई। मंदिर के पंडित राजेंद्र शर्मा ने बताया कि सोमवार शाम 6 बजे सुभाष चौक स्थित जगन्नाथ मंदिर से मेला स्थल रूपबास स्थित रूपहरि मंदिर के लिए रथ यात्रा रवाना होगी। रूपबास मेला ग्राउंड पर दुकानें लग चुकी हैं। मंदिर परिसर सज चुका है। आवश्यक इंतजाम हो गए हैं। सीसीटीवी कैमरे पूरे ग्राउंड में लगा दिए हैं। आमजन को सूचना देने के लिए लाउड स्पीकर लगे हैं। मेले में अब तक 300 से अधिक दुकानें अलॉट की जा चुकी हैं। 19 जुलाई तक बूढ़े जगन्नाथ के होंगे दर्शन सोमवार शाम को जगन्नाथजी क रथ यात्रा रवाना हो जाएगी। उसके बाद 19 जुलाई तक मुख्य मंदिर में बूढ़े जगन्नाथजी के दर्शन होंगे। मालाखेड़ा, राजगढ़ के रूट से आने वाली बसों का रूट 19 जुलाई तक ईटाराणा ओवरब्रिज से भूगोर तिराहे किया गया है। 1963 से निकाली जा रही रथयात्रा भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा हर साल आषाढ़ शुक्ल नवमी को सुभाष चौक मंदिर से निकाली जाती है। ये सिलसिला रियासत काल में सन 1863 से चल रहा है। महंत पं. देवेंद्र शर्मा का कहना है जगन्नाथ जी की सवारी 6 किलोमीटर दूर रूपबास स्थित रूपहरि मंदिर पहुंचती है। महंत देवेंद्र शर्मा ने बताया कि सुभाषचौक मंदिर जमीन से करीब 60 फीट ऊंचा है। गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ की श्याम वर्ण की दो आदमकद प्रतिमाएं हैं। इनमें अचल प्रतिमा काले पत्थर और चल प्रतिमा चंदन की लकडी से बनी है। पीतल की धातु में जानकी जी की 3 फीट और सीतारामजी की 2 फीट ऊंची प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह के बरामदे में चांदी के सिक्के लगे हैं। मंदिर में सवा मण का पीतल का घंटा है। मंदिर करीब 215 साल पुराना है। सन 1809 में मंदिर बना। इंद्रविमान पूर्व राजपरिवार के निजी सचिव नरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि जगन्नाथ का रथ इंद्रविमान दो मंजिला है। करीब 30 फीट ऊंचे, 15 फीट चौड़े व 25 फीट लंबा इंद्रविमान 1903 में महाराजा जयसिंह ने बनवाया था। 1948 में महाराजा तेज सिंह ने ये जगन्नाथ मंदिर को रथयात्रा के लिए दान दिया। 1975 में युवराज प्रताप सिंह के निधन तक इंद्र विमान को चार हाथी खींचते थे। अब ट्रैक्टर द्वारा खींचा जाता है। इंद्रविमान से पहले सवारी मौजूदा सीतारामजी वाले रथ में निकलती थी।

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