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एसएमएस का लोड कम करने के लिए जिला अस्पताल बनाए गए जयपुरिया में मरीजों को इलाज के लिए परेशान होना पड़ रहा है। जयपुरिया में वर्ष 2013 में 46 से बढ़ाकर पदों की संख्या 51 की गई थी, जो वर्तमान में कार्यरत हैं। इसके बाद मरीजों का दबाव तो बढ़ता गया, लेकिन डॉक्टरों के पद नहीं बढ़े। मरीजों की सुविधा के लिए चिकित्सा विभाग ने डेपुटेशन पर डॉक्टर लगाए तो सरकार ने राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस (आरयूएचएस) के डॉक्टर, जबकि आरयूएचएस में ही स्वीकृत पदों से 25% कम स्टाफ है। ऐसे में स्पेशलिस्ट डॉक्टर तीन दिन आरयूएचएस में सेवा दे रहे हैं तो तीन दिन जयपुरिया में। डेपुटेशन वाले 90 डॉक्टर हटाए वर्ष 2019 में प्रदेशभर से डेपुटेशन पर जयपुरिया में 98 डॉक्टर लगाए थे, जिन्हें पिछले साल चिकित्सा मंत्री के मौखिक आदेश पर हटा दिया गया, लेकिन 8 डॉक्टर कोर्ट से स्टे ले आए, बाकी को जाना पड़ा। इसके बाद अस्पताल की स्थिति खराब हो गई। आरयूएचएस का प्लान तैयार है “सरकार से मिले निर्देश के तहत दोनों अस्पतालों के लिए काम किया जा रहा है। आरयूएचएस मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में है और उसे डवलप करने का प्लान तैयार है, जिसे जल्द लागू किया जाएगा।” -शुभ्रा सिंह, एसीएस, हैल्थ आरयूएचएस के निर्माण के समय वर्ष 2014 में वहां के स्टाफ को जयपुरिया में व्यवस्था संभालने लगाया गया। अस्पताल का काम पूरा होने के बाद कोरोनाकाल में आरयूएचएस को शुरू कर दिया, लेकिन जयपुरिया से स्टाफ शिफ्ट नहीं किया गया। इसके उलट अधिकांश डॉक्टर्स को व्यवस्था बनाए रखने के लिए दोनों ही अस्पतालों में डयूटी देनी होती है यानी कि सप्ताह में तीन दिन आरयूएचएस और तीन दिन जयपुरिया में। यहां तक कि सीनियर रेजिडेंट भी आरयूएचएस के ही लगाए गए हैं, जो कि इमरजेंसी की व्यवस्था संभालते हैं। आरयूएचएस में 189 पद, इनमें से 70% खाली आरयूएचएस में डॉक्टर्स के 189 पद हैं, लेकिन 55 ही काम कर रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें भी 10 डॉक्टर संविदा पर हैं यानी कि 800 से अधिक बेड की क्षमता वाले अस्पताल में 70% पद तो अकेले डॉक्टर के खाली हैं। नर्सिंग स्टाफ, लैब टेक्नीशियन सहित अन्य स्टाफ भी बेहद कम हैं, जिसके चलते मरीजों को इलाज ही नहीं मिल पाता।

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