विधानसभा के बजट सत्र में इस बार अनुदान मांगों पर बहस और मतदान से सबसे प्रमुख गृह, एसीबी और शिक्षा आदि को बाहर कर दिया है। विपक्ष पिछले 6 माह में भाजपा राज में 20 हजार 700 से अधिक महिला अत्याचार के केस दर्ज होने और शिक्षा मंत्री के आदिवासियों को लेकर दिए बयान को लेकर लगातार हमलावर है। सरकार 26 जुलाई को मुखबंद का प्रयोग कर गृह और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभागों पर बहस और मतदान ही नहीं करवाना चाहती। इसका कारण नहीं बता रही। लेकिन जानकारों का कहना है कि मतदान हुआ और विपक्ष भारी पड़ गया तो सरकार की भारी किरकिरी होगी। मतदान में अनुदान मांगें ही पास नहीं हुई तो उस विभाग का सालाना अरबों का बजट रुक सकता है। ऐसे में सरकारें विपदा घड़ी दिखते ही सीधे मुखबंद का मास्टर स्ट्रोक प्रयोग करती है। केवल भाजपा राज में ही ऐसा नहीं हो रहा है। पिछले अशोक गहलोत राज में भी बिल पास कराने, अनुदान मांगों को बिना बहस पारित कराने के लिए मुखबंद का प्रयोग हुआ था। गहलोत राज में भी मुखबंद लगा था सदन में 29 जुलाई 2019 को मुखबंद का प्रयोग किया गया था। मौका था दो विधेयक पारित करवाने का। अशोक गहलोत को कहना पड़ा था कि सरकार जनकल्याण के काम करने में कोई कमी नहीं रखेगी। इसके साथ ही विधानसभा ने विनियोग व वित्त विधेयकों को मुखबंद से पारित कर दिया था। इस बार किसे बचाने लाएंगे मुखबंद दिलावर के प्रति विपक्ष का कड़ा रूख बना हुआ है। मुख्यमंत्री के आग्रह पर स्पीकर ने सदन में शिक्षा विभाग की अनुदान मांगों पर बहस नहीं करने का किया फैसला। लेकिन दूसरा विभाग इससे भी बड़ा है। गृह विभाग पर भी बहस नहीं होगी। साथ ही पंचायत राज विभाग की अनुदान मांगे भी बिना बहस के मुखबंद से पारित की जाएगी। “दोनों विभागों पर बहस नहीं होने देना सरकार का षड्यंत्र है। कार्य सलाहकार समिति की फिर से बैठक बुलाए। प्रस्ताव जो लिया है मुखबंद का, उसे संशोधित करें। फिर से गृह और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभागों पर चर्चा करें। पिछले 6 महीने में 20 हजार से ज्यादा महिलाओं के साथ आपराधिक घटनाएं हो चुकी हैं। शिक्षा के मंत्री द्वारा स्तरहीन वक्तव्य दिए गए। नई शिक्षा नीति, तबादलों पर और महात्मा गांधी विद्यालयों पर तथा अपराधों पर सरकार की सोच क्या है, यह नहीं बताना और बिना बहस के पारित करवाना षड़यंत्र है।”
-संयम लोढ़ा, वरिष्ठ अधिवक्ता, पूर्व विधायक
