जयपुर | राजस्थान रियल एस्टेट अपीलेंट ट्रिब्यूनल, जयपुर ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि आवंटियों की सहमति के बिना बिल्डर निर्माणशुदा बिल्डिंग के ले-आउट में कोई भी बदलाव नहीं कर सकता। वहीं प्रोजेक्ट के ब्रोशर में आवंटियों को जो सुविधाएं देना बताया है फिर चाहे वह उनके एग्रीमेंट में हों या नहीं हो, उसे उन सुविधाओं को आवंटियों को मुहैया कराना ही होगा। ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष जस्टिस वीएस सिराधना व तकनीकी सदस्य राजेन्द्र कुमार विजयवर्गीय ने यह फैसला साउथ एक्स रेजीडेंस वेलफेयर सोसायटी की ओर से बिल्डर विर्गो रियल एस्टेट के खिलाफ दायर की गई अपील को स्वीकार करते हुए दिया। मामले से जुड़े अधिवक्ता मोहित खंडेलवाल ने बताया कि बिल्डर विर्गो बिल्ड स्टेट ने सांगानेर में साउथ एक्स आवासीय टाउनशिप 2014 में शुरू की। इस प्रोजेक्ट में बिल्डर ने आवंटियों के साथ विला, फ्लैट और ग्रुप हाउसिंग के साथ ही एक क्लब हाउस बनाने का वादा कर सुविधाओं के लिए लाखों रुपए लिए। यह प्रोजेक्ट साल 2017 तक पूरा करना था, लेकिन बिल्डर ने जो सुविधाएं देनी थी वे नहीं दी। साथ ही पिछले साल आवंटियों के साथ धोखाधड़ी करते हुए क्लब हाउस के निर्माण के लिए तय की गई जमीन पर नई प्लॉटिंग स्कीम को जेडीए से मंजूर करवाकर रेरा में भी पंजीकृत करवा लिया, लेकिन ऐसा करने से पहले ना तो आवंटियों को सूचना दी और ना ही उनकी मंजूरी ली। ट्रिब्यूनल ने अपील स्वीकार कर माना कि बिल्डर ने ना तो समय पर प्रोजेक्ट का निर्माण पूरा किया और ना ही कम्पलीशन सर्टिफिकेट व ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट ही लिया। इतना ही नहीं बिल्डर ने आवंटियों की सहमति के बिना के अपने स्तर पर ही प्रोजेक्ट के तय ले-आउट प्लान में बदलाव कर दिया, जबकि ऐसा करना गलत है क्योंकि योजना पूरी होने के बाद कॉमन एरिया पर आवंटियों वेलफेयर एसोसिएशन का अधिकार हो जाता है व बिल्डर को पूरे कॉमन एरिया को आवंटियों की संस्था को सुपुर्द करना होता है। ट्रिब्यूनल ने रेरा का आदेश निरस्त करते हुए रेरा को मामले में उचित निर्णय करने के लिए कहा।

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