साल 2024 की दूसरी राष्ट्रीय लोक अदालत का शनिवार को आयोजन होगा। हाईकोर्ट में लंबे समय से चल रहे करीब 3 हजार और लोअर कोर्ट में 38 हजार 572 केस निपटाए जाएंगे। हाईकोर्ट में राजीनामा करने योग्य इन मामलों के लिए 5 बेंच का गठन किया गया है। वहीं लोअर कोर्ट में 9 बेंचों में मामले निपटाए जाएंगे। राजस्थान हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति के सचिव अजीज खान ने बताया कि समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ न्यायाधिपति पुष्पेंद्र सिंह भाटी के निर्देशन में लोक अदालत का आयोजन होगा। इन बेंच में राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस को बतौर अध्यक्ष और एडवोकेट्स को सदस्य नियुक्त किया गया है। राष्ट्रीय लोक अदालत में प्रातः 10 बजे से सांय 4 बजे तक सुनवाई होगी। 5 बैंच में यह जज होंगे
बैंच संख्या 1 में जस्टिस कुमारी रेखा बोराणा बतौर अध्यक्ष और एडवोकेट पंकज रविन्द्र मेहता, सदस्य, बैंच संख्या 2 में जस्टिस कुलदीप माथुर, अध्यक्ष एवं अधिवक्ता विनय जैन, सदस्य, बैंच संख्या 3 में जस्टिस डॉ नूपुर भाटी, अध्यक्ष एवं अधिवक्ता ओमप्रकाश जोशी, सदस्य, बैंच संख्या 4 में जस्टिस राजेंद्र प्रकाश सोनी, अध्यक्ष एवं अधिवक्ता महावीर बिश्नोई, सदस्य, बैंच संख्या 5 में जस्टिस योगेन्द्र कुमार पुरोहित, अध्यक्ष एवं अधिवक्ता शरद कोठारी, सदस्य के रूप में नियुक्त किए गए हैं। लोअर कोर्ट में जस्टिस चंद्र शेखर शर्मा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष व जिला एवं सेशन जस्टिस चन्द्र शेखर शर्मा के निर्देशन में लोअर कोर्ट में लोक अदालत का आयोजन होगा। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, जोधपुर महानगर के सचिव पुखराज गहलोत ने बताया कि राष्ट्रीय लोक अदालत के लिए 9 जुलाई तक न्यायालयों में राजीनामा योग्य लंबित लगभग 38572 प्रकरणों तथा प्रि-लिटिगेशन में धन वसूली के 15066, बिजली, पानी, मोबाइल, क्रेडिट कार्ड एवं बिल भुगतान से संबंधित विवाद के 4082 केस तथा पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के लिए राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित 15,334 प्रकरणों को चिह्नित किया गया है। 9 बैंचो का किया गया गठन चिह्नित प्रकरणों में राष्ट्रीय लोक अदालत की भावना से निस्तारण के लिए कुल 9 बैंचो का गठन किया गया है। जिनमें 7 बैंच न्यायालयों में लंबित प्रकरणों के लिए गठित की गई है। जिसमें पारिवारिक न्यायालयों व वाणिज्यिक न्यायालयों से संबंधित प्रकरणों के लिये 1 बेंच का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता पीठासीन अधिकारी पारिवारिक न्यायालय संख्या 3 दलपत सिंह राजपुरोहित करेंगे तथा एमएसीटी न्यायालयों, श्रम व औद्योगिक न्यायालय से संबंधित प्रकरणों के लिये 1 बेंच का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता पीठासीन अधिकारी एमएसीटी न्यायालय बुलाकी दास व्यास करेंगे। उन्होंने बताया विशेष गठित 2 बेंचों में से राजस्व न्यायालयों से सम्बन्धित प्रकरणों के निस्तारण के लिए 1 बैंच का गठन किया गया है, जिसमें सेवानिवृत जिला न्यायाधीश संवर्ग सिद्धेश्वर पुरी, को न्यायिक अधिकारी सदस्य और अतिरिक्त जिला कलेक्टर प्रथम दीप्ति शर्मा को राजस्व अधिकारी सदस्य नियुक्त किया गया है। स्थायी लोक अदालत, जिला उपभोक्ता मंच प्रथम व द्वितीय तथा प्रि-लिटिगेशन प्रकरणों की सुनवाई के लिए 1 प्रि-लिटिगेशन बैंच का गठन किया। जिसमें प्राधिकरण के सचिव पुखराज गहलोत द्वारा अध्यक्षता की जाएगी। इन मामलों का होगा निपटारा
जिनमें राजीनामा योग्य फौजदारी प्रकरण, धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम के प्रकरण, धन वसूली के प्रकरण, एम.ए.सी.टी. के प्रकरण, श्रम एवं नियोजन संबंधी विवाद एवं कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के प्रकरण, बिजली, पानी एवं अन्य बिल भुगतान से संबंधित प्रकरण, पारिवारिक विवाद (तलाक को छोड़कर), भूमि अधिग्रहण से संबंधित प्रकरण, सभी प्रकार के सर्विस मैटर्स (पदोन्नति एवं वरिष्ठता विवाद के मामलों के अलावा), सभी प्रकार के राजस्व मामले, पैमाइश एवं डिवीजन ऑफ होल्डिंग सहित, वाणिज्यिक विवाद, बैंक के विवाद, गैर सरकारी शिक्षण संस्थान के विवाद, सहकारिता सम्बन्धी विवाद, परिवहन सम्बन्धी विवाद, स्थानीय निकाय (विकास प्राधिकरण/नगर निगम, आदि) के विवाद, रियल एस्टेट सम्बन्धी विवाद, रेलवे क्लेम सम्बन्धी विवाद, आयकर सम्बन्धी विवाद, अन्य कर सम्बन्धी विवाद, उपभोक्ता एवं विक्रेता, सेवा प्रदाता के मध्य के विवाद, सिविल मामले (किरायेदारी, बंटवारा, सुखाधिकार, निषेधाज्ञा, घोषणा, क्षतिपूर्ति एवं विनिर्दिष्ट पालना के दावे), अन्य राजीनामा योग्य ऐसे मामले जो अन्य अधिकरणों, आयोगों, मंचों, अथॉरिटी एवं प्राधिकारियों के समक्ष लंबित मामले शामिल हैं। उन्होंने आमजन से अपील करते हुए कहा कि जिनके भी प्रकरण उक्त विषयों से संबंधित है, वे शनिवार को आयोजित होने वाली राष्ट्रीय लोक अदालत में प्रातः 10 बजे से सांय 4 बजे के मध्य अपने प्रकरण लोक अदालत की भावना तथा आपसी समझाइश के माध्यम से निस्तारित करवा सकते है ताकि न्यायालयों में चलने वाली कार्यवाहियों से बचा जा सके और अदालतों की प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत की मूल भावना का प्रचार-प्रसार अधिकाधिक हों सके।
