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अजमेर में डॉक्टरों ने जिसे मरा बताया वो हुआ जिंदा:झुंझुनूं में चिता पर लेटे शख्स की चलने लगी थी सांस; जानिए- मुर्दों के दिल धड़कने का सच

11 मार्च, ब्यावर के कोटड़ा गांव से खबर आई हॉस्पिटल में डॉक्टर ने जिस शख्स को मृत घोषित कर दिया था, वो फिर से जिंदा हो उठा। अंतिम संस्कार से ठीक पहले घर वाले उसे श्मशान घाट ले जाने की तैयारी कर रहे थे, अचानक बॉडी में हलचल होने लगी। राजस्थान में यह पहली घटना नहीं है, करीब 4 महीने पहले झुंझुनूं से भी एक ऐसी ही खबर आई थी। श्मशान घाट में चिता पर लेटा व्यक्ति जिंदा हो गया। उसका शरीर हिलने लगा और सांसें चलने लगी थी। जबकि उसे भी डॉक्टर्स ने ही मृत घोषित किया था। हालांकि दोनों ही घटनाओं में फिर से जिंदा हुए व्यक्तियों की कई घंटों बाद मौत हो गई। दोनों ही घटनाओं में बड़ा सवाल ये है- क्या सांस थमने के बाद भी कोई मौत को मात दे सकता है? क्या कोई मरकर दोबारा वापस जिंदा हो सकता है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए भास्कर टीम ने दोनों ही मामलों में सामने आई पड़ताल का एक्सपर्ट के जरिए एनालिसिस किया। संडे बिग स्टोरी में पढ़िए ‘मुर्दों के दिल धड़कने का सच’… सबसे पहले जानिए अजमेर के ब्यावर में शख्स के जिंदा होने के दावे की कहानी 7 मार्च 2025 को ब्यावर के समीप कोटड़ा में दाणा का थान के पास में रहने वाले नारायण सिंह (40) को लकवा (पैरालिसिस) का अटैक आया, वो पहले से ही बीमार रहते थे। इस बार तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर परिवार वालों ने इलाज के लिए अजमेर के जवाहरलाल नेहरू (JLN) हॉस्पिटल में एडमिट कराया। वहां 3 दिन इलाज चला। 11 मार्च दोपहर 12.59 बजे डॉक्टरों ने नारायण सिंह को डेड घोषित कर दिया। बाकायदा शव को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करने की स्लिप और डेथ सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया गया। इसके बाद परिजन शव को घर लेकर आ गए थे। सोशल मीडिया पर सभी जान-पहचान वालों और सगे-संबंधियों तक 11 मार्च शाम 5 बजे उनके अंतिम संस्कार करने की सूचना भेज दी गई। इधर घर पर अंतिम संस्कार की तैयारी की जा रही थी। रिश्तेदार और गांव के लोग भी पहुंच गए थे। तभी शाम को नारायण सिंह के शव को स्नान कराने के लिए ले जाया गया। इस दौरान अचानक नारायण सिंह के शरीर में हलचल हुई। इससे वहां मौजूद परिजन हैरान हो गए। वहां मौजूद लोगों को यकीन नहीं हुआ तो कुछ ग्रामीणों को अंदर बुलाया गया। कई लोगों ने नब्ज और धड़कन चेक देखा तो नारायण सिंह के शरीर में धड़कन चल रही थी। जो कुछ हुआ, वो वहां मौजूद हर किसी को हैरान कर देने वाला था। आनन-फानन में परिजनों ने अंतिम संस्कार कैंसिल कर दिया। रिश्तेदारों की सलाह पर परिवार वाले उसे एक धाम पर ले गए। वहां दावा किया गया कि जल्दी ही नारायण सिंह ठीक हो जाएगा। हालांकि करीब 12 घंटे बाद ही 12 मार्च की सुबह नारायण सिंह के शरीर की हलचल बंद हो गई। दोपहर में 2 बजे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया। अब जानिए सच क्या? मृतक नारायण सिंह के बड़े भाई हेम सिंह से बात की तो वे ऑन कैमरा कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए। ऑफ रिकॉर्ड बताया कि उनका भाई नारायण सिंह गांव में किराना स्टोर चलता था। उसके दो बेटे और दो बेटियां हैं। सभी अविवाहित हैं। 7 मार्च को उसे अजमेर के JLN हॉस्पिटल में एडमिट करवाया लेकिन वहां कोई सुधार नहीं हुआ। इसके बाद 11 मार्च को दोपहर में डॉक्टर ने हमें बताया कि उसे बचाया नहीं जा सका और उसकी मौत हो गई है। हम बॉडी लेकर गांव आ गए थे। यहां शाम में अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे थे। इस दौरान पहले बच्चों और कुछ महिलाओं ने बताया कि बॉडी गर्म है, उसमें हलचल है। इसके बाद वहां मौजूद कई लोगों ने इसे चेक किया। सभी को यही लगा कि नारायण सिंह जिंदा है। हम आनन-फानन में हमारी मान्यता अनुसार माताजी के धाम पर गए। वहां बताया गया कि 12 घंटे बाद वो ठीक हो जाएगा। लेकिन 12 घंटे इंतजार करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। 12 मार्च की सुबह 5 बजे सभी ने उसे मृत मान लिया और दोपहर में अंतिम संस्कार भी कर दिया है। शायद जो हुआ वो हमारा वहम ही था। मृतक नारायण सिंह की डेथ डिक्लेयर करने वाले डॉक्टर हिम्मत सिंह यादव ने हमें बताया कि वो मरीज 7 तारीख को स्ट्रोक विद हार्ट फेल्योर के साथ एडमिट हुआ था। उसकी ECG, प्यूपिल और हार्ट साउंड के अलावा भी प्रोटोकॉल फॉलो करते हुए सभी जांच करने के बाद ही डेड घोषित किया गया था। पड़ताल में एक चीज साफ हो गई थी कि मृत नारायण के जिंदा होने के दावे में काफी विरोधाभास था। महज कुछ लोगों के वहम और दैवीय चमत्कार के भरोसे की आशा के साथ ही नारायण सिंह के दुबारा जिंदा होने का दावा किया जा रहा था। अब पढ़िए- झुंझुनूं में चिता पर लेटे शख्स के फिर जिंदा होने की कहानी झुंझुनूं जिले में मां सेवा संस्थान के बगड़ स्थित आश्रय गृह में रहने वाले अनाथ और मूक बधिर रोहिताश (25) की 21 नवंबर 2024 में दोपहर को तबीयत बिगड़ गई थी। उन्हें झुंझुनूं के बीडीके अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया, जहां डॉ. योगेश जाखड़ ने नब्ज चेक की और ईसीजी करने के बाद दोपहर 2 बजे उसे मृत घोषित कर दिया। इसके बाद उसकी बॉडी का मॉर्च्युरी के डीप फ्रीजर में रखवाया गया। करीब 4.30 बजे मेडिकल ज्यूरिस्ट डॉक्टर नवनीत मील वहां पहुंचे। तभी बाहर मौजूद बगड़ थाना पुलिस के हेड कांस्टेबल महेंद्र कुमार ने पंचनामा तैयार किया। इसके बाद डॉक्टर नवनीत महज 15 मिनट में मॉर्च्युरी से बाहर आ गए। कुछ ही मिनट में डेड बॉडी संस्था को सौंप दी गई। बताया गया कि पोस्टमॉर्टम हो गया है। एंबुलेंस की मदद से झुंझुनूं में ही पंच देव मंदिर के पास स्थित श्मशान घाट ले जाया गया था। यहां रोहिताश की बॉडी को चिता पर रखा तो उसकी आंखें खुली हुई थी। सांस चलने लगी और शरीर हिलने लगा। यह देखकर वहां मौजूद सभी लोग तुरंत एंबुलेंस बुलाकर रोहिताश को दुबारा हॉस्पिटल ले गए। आनन-फानन में डॉक्टरों ने उसे आईसीयू में शिफ्ट किया और उसका उपचार शुरू कर दिया। रात में 1 बजे उसे जयपुर रेफर किया गया, जहां एसएमएस अस्पताल में शुक्रवार सुबह 5.30 बजे उसकी मौत हो गई। अब जानिए सच क्या? भास्कर पड़ताल में सामने आया था कि रोहिताश के फिर से ज़िंदा होने और अगली सुबह मरने के पीछे कोई चमत्कार या साइंस नहीं बल्कि डॉक्टर्स के स्तर पर हुई लापरवाही जिम्मेदार थी। पहली लापरवाही : डॉक्टर ने ईसीजी नहीं जांची मेडिकल एक्सपर्ट की मानें तो कई बार मरीज की नब्ज चली जाती है और कई बार 2 घंटे तक नहीं लौटती। चाहे कितनी भी नब्ज चली जाए, किसी बॉडी में मामूली भी हरकत है, सांस बची है, वह ईसीजी रिपोर्ट में आएगा ही। अगर ईसीजी रिपोर्ट को ढंग से चेक कर लिया जाता तो रोहिताश को डेड डिक्लेयर करने की यह नौबत ही नहीं आती। दूसरी लापरवाही : पोस्टमॉर्टम हुआ ही नहीं और रिपोर्ट दे दी हॉस्पिटल में पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया होती है तो उसमें सभी नियमों को फॉलो किया जाता है। बॉडी के सभी अंगों का निरीक्षण किया जाता है। जैसे सिर को खोलकर, पेट को खोलकर। जैसे-जैसे फाइंडिंग्स सामने आती हैं, उसे पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ओपिनियन के तौर पर लिखा जाता है। लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर ने सिर्फ रिपोर्ट तैयार कर दी। जबकि हकीकत में पोस्टमॉर्टम जैसा कुछ हुआ ही नहीं। यही वजह रही कि इस मामले के सामने आने के बाद जिला कलेक्टर रामअवतार मीणा ने रोहिताश की नब्ज देखने वाले डॉक्टर योगेश, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बनाने वाले डॉक्टर नवनीत और हॉस्पिटल पीएमओ डॉक्टर संदीप पचार को सस्पेंड कर दिया था। अजमेर और झुंझुनूं में हुई दोनों ही घटनाओं अभी भी ये सवाल बना हुआ है कि क्या मुर्दों के दिल दुबारा धड़क सकते है? SMS अस्पताल के सीनियर प्रोफेसर कार्डियोलॉजी डॉ. एस.एम. शर्मा ने बताया कई बार किसी व्यक्ति को मृत घोषित करने के बाद वह फिर से जीवित होने जैसा लगता है। ऐसा डॉक्टर के अनुभव और जांच के तरीके पर निर्भर करता है। ब्रेन डेड होने पर भी दिल धड़कता रहता है, लेकिन हार्ट फेल में दिल पूरी तरह बंद हो जाता है। मृत्यु तभी मानी जाती है जब दिल काम करना बंद कर दे और इसे ईसीजी (ECG) से पुष्टि करना जरूरी होता है। अब किसी भी डेथ को सर्टिफाइड करने के लिए ईसीजी अनिवार्य कर दिया गया है। गलती कहां होती है? जब डॉक्टर सिर्फ नब्ज देखकर मृत्यु का अंदाजा लगाते हैं, तो गलती हो सकती है। कई बार दिल बहुत तेज (300-400 BPM) धड़कता रहता है, जिसे फिब्रिलेशन (Fibrillation) कहते हैं, और यह नब्ज से पकड़ में नहीं आता। अगर ECG नहीं की जाए, तो ऐसे मामले सामने आते रहेंगे। दो तरह से घोषित होती है व्यक्ति की मौत, एक में जिंदा होने की गुंजाइश कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. जयेश दूबे यूके की हेल्थ न्यूज एजेंसी मेडिकल न्यूज टुडे की रिपोर्ट के हवाले से बताते हैं चिता पर लिटाने के बाद अचानक से मुर्दे की सांसें चलना कोई चमत्कार नहीं साइंस है। अमूमन किसी भी व्यक्ति की मौत दो तरह से होती है… क्लीनिकल मौत में जिंदा होने की वजह ‘लाजारस सिंड्रोम’ क्लीनिकल मौत में कुछ व्यक्ति दोबारा जिंदा हो जाते हैं। इसकी वजह लाजारस सिंड्रोम है। 1982 में इसे पहली बार मेडिकल रिसर्चर के. लिंको ने पहचाना था। 11 साल बाद मेडिकल साइंटिस्ट जे. जी. ब्रे ने मौत के बाद दोबारा जिंदा होने की प्रोसेस को ‘लाजारस सिंड्रोम’ नाम दिया था। मेडिकल न्यूज वेबसाइट ‘हेल्थ लाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, लाजारस सिंड्रोम कई वजहों से होता है… 1. एयर ट्रैपिंग: यानी फेफड़ों में हवा का फंसना। जब CPR के दौरान किसी व्यक्ति के फेफड़ों में बहुत तेजी से हवा जाती है, तो उसे बाहर निकलने का समय नहीं मिलता। हवा फेफड़ों में जम जाती है, जिसे एयर ट्रैपिंग कहा जाता है। जैसे-जैसे फेफड़ों में हवा बढ़ती है, छाती पर दबाव बढ़ता जाता है। इससे खून को छाती की नसों से होते हुए दिल तक पहुंचने में मुश्किल होती है। इस वजह से व्यक्ति की नब्ज और दिल की धड़कन बंद हो जाती है। शरीर मृत व्यक्ति की तरह कोई भी हरकत बंद कर देता। जब धीरे-धीरे ये हवा बाहर निकलती है, तो शरीर नॉर्मल होने लगता है। छाती पर दबाव कम होने पर हार्ट फिर से शरीर में ब्लड पंप करना शुरू कर देता है, जिससे मरा हुआ व्यक्ति जिंदा हो जाता है। 2. डिफिब्रिलेशन के रिएक्शन में देरी: जब किसी व्यक्ति की क्रिटिकल कंडीशन होती है, तो ऐसे में हार्ट को दोबारा एक्टिव करने के लिए छाती पर डिफिब्रिलेटर मशीन के जरिए से करंट के झटके दिए जाते हैं। कई बार हार्ट पर इन झटकों का असर होने में घंटों का समय लग जाता है। ऐसे में जब शरीर दोबारा रिएक्ट करता है तो इसे ‘लाजारस सिंड्रोम’ कहते हैं। ऐसा एक मामला मई 2021 में सामने आया था। तब पुणे में 78 साल की शकुंतला गायकवाड़ को कोरोना की वजह से मृत घोषित कर दिया गया था। अंतिम संस्कार के दौरान वे अचानक उठीं और चिता पर बैठकर रोने लगीं। डॉक्टरों ने बताया कि यह CPR और दवाओं के धीमे रिएक्शन की वजह से हुआ होगा। ज्यादा दिन तक नहीं रह पाते जीवित लाजारस सिंड्रोम से दोबारा जिंदा होने वाले लोग ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाते। यहां तक कि CPR के बाद जिंदा होने वाले लोगों की उम्र भी ज्यादा नहीं होती। इन मामलों में ब्रेन ज्यादा डैमेज हो जाता है। कई जगहों पर लोग इसे देवीय चमत्कार मान लेते हैं। लेकिन यह पूरी तरह से साइंस है। एसएमएस अस्पताल जयपुर के डॉ. विशाल गुप्ता ने बताया कि किसी मरीज के मृत्यु घोषित होने के बाद उसके अचानक जीवित हो जाने की घटना बेहद दुर्लभ होती है। डॉक्टर सभी जरूरी पैरामीटर की जांच करने के बाद ही मृत्यु की पुष्टि करते हैं, लेकिन कभी-कभी मानवीय त्रुटि या ECG जैसे उपकरणों में सही गतिविधि दर्ज न होने के कारण ऐसी घटनाएं सामने आ सकती हैं। …. फिर जिंदा हुआ व्यक्ति…से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए… चिता पर रखी बॉडी में हलचल, फिर जिंदा हुआ युवक:सरकारी हॉस्पिटल में मृत घोषित हुआ था, 2 घंटे मॉर्च्युरी के डीप फ्रीजर में रखा गया झुंझुनूं में श्मशान घाट में चिता पर लेटा व्यक्ति जिंदा हो गया। उसका शरीर हिलने लगा और सांसें चलने लगी। इस पर तुरंत एंबुलेंस बुलाकर उसे वापस जिला अस्पताल पहुंचाया गया। पूरी खबर पढ़िए…

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