मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान टोंक ने इतिहास रच दिया है। यहां रखे टोंक रियासत काल के करीब 150 साल पुराने शरा-शरीफ अदालत के 8,471 दस्तावेज और हर विषय के हस्त लिखित 540 दुर्लभ ग्रंथ ऑनलाइन कर दिए है।
इन्हे अब कोई भी व्यक्ति दुनिया में कही से भी राजस्थान ई-आर्काइव मैनेजमेंट सिस्टम पर देख सकता है। यह उपलब्धि संस्थान की निदेशक प्रियंका राठौड़ की कुशल कार्यशैली और उनकी कड़ी मेनहत से संभव हुआ है। संस्थान की निदेशक प्रियंका राठौड़ ने बताया कि इस संस्थान में करीब 28 हजार 755 शरा-शरीफ अदालती दस्तावेज और 9218 सैकड़ों साल पुराने हर विषय के दुर्लभ ग्रंथ है। उनमे से पहले चरण में शरा-शरीफ अदालत के 8471 दस्तावेज और 540 दुर्लभ ग्रंथों का गत दिनों सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग से डिजिटाइज करवाकर इसी सप्ताह (सोमवार 7 जुलाई को) ऑनलाइन कर दिए है। अब दूसरे चरण में 1008 ग्रंथ और 10 हजार शरा शरीफ के दस्तावेज ऑनलाइन होंगे। इस तरह से 5 या 6 चरण में पूरे संस्थान के हर दस्तावेज और ग्रंथों को ऑनलाइन कर दिया जाएगा। इसमें ज्यादा समय नहीं लगेगा। बाकी का काम प्रोसेज में है। 500 साल पुरानी पांडुलिपियां रखी है सुरक्षित
राज्य सरकार की ओर से 4 दिसम्बर 1978 को स्थापित किए गए इस शोध संस्थान में कई देशों के इतिहास, भूगोल और संस्कृति से जुड़ी हस्तलिखित करीब 500 साल पुरानी पांडुलिपियां सुरक्षित हैं। इनमें कई ऐसी हैं, जो दुनिया में कहीं और नहीं मिलतीं। अब तक 50 से अधिक देशों के विद्वान इन दस्तावेजों और ग्रंथों को देखने आ चुके हैं। शोधकर्ता, इतिहासकार और विद्यार्थियों को मिलेगा फायदा
इस संस्थान में दुनिया के प्रसिद्ध दुर्लभ ग्रंथ और टोंक रियासत के 150 साल पुराने अदालती दस्तावेज है। इनके ऑनलाइन होने से इनमें रुचि रखने वाले और देश विदेश के शोधकर्ता, इतिहासकार, विद्यार्थी ऑनलाइन पढ़ सकेंगे और देख सकेंगे। अब इन दस्तावेजों का अध्ययन कहीं से भी किया जा सकता है। संस्थान में आकर इनकी मूल प्रति भी देखी जा सकती है। अभी देश विदेश से यहां शोध करने वाले विधार्थी यहां आते है । यहां के दस्तावेज और ग्रंथ ऑनलाइन होने से संस्थान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिलेगी। 1817 के बाद हुई शरा-शरीफ अदालत की शुरुआत
शरा-शरीफ अदालत की शुरुआत टोंक के पहले नवाब अमीर खां के समय हुई थी। वे 1817 में नवाब बने थे। टोंक राजस्थान की पहली मुस्लिम रियासत थी, जहां इस्लामी कानून पर आधारित अदालत स्थापित हुई थी। यहां इस्लामी शिक्षा के बड़े आलिम मौजूद थे। वे इस्लामी नजरिए से फैसले सुनाते थे। अदालत की पहचान रियासत काल में देश-दुनिया में थी। इस अदालत में मुस्लिमों के साथ अन्य वर्गों के लोग भी न्याय के लिए आते थे। नवाब के खिलाफ भी सुनवाई होती थी। खाड़ी देशों से आए सवालों के जवाब भी दस्तावेजों में दर्ज हैं। तीसरे नवाब ने जमा किए थे ये दस्तावेज
टोंक रियासत के तीसरे नवाब ने बनारस में 1867 के आसपास ये दस्तोवज जमा किए थे। नवाब ने ईरान, इराक, मिस्र, अरब सल्तनतों और देश के कई शहरों से विद्वानों को बुलवाया। उनसे धार्मिक और ऐतिहासिक किताबें लिखवाईं। कई पुस्तकों का अनुवाद भी करवाया। इन सभी किताबों को नवाब ने संग्रहित किया। बाद में यह पूरा संग्रह उनके पुत्र रहीम ख़ाँ टोंक ले आए।
अरबी-फारसी संस्थान के 540 ग्रंथ, 8471 दस्तावेज हुए ऑनलाइन:अब दुनिया में कोई भी कही भी देख सकता है पोर्टल पर
