photo gif 1752406248 1kTwIY

चित्तौड़गढ़ जिले में भगवान शिव का ऐसा मंदिर हैं निसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं। मान्यता है कि यहां जो मांगा जाता है, वह पूरा होता है। मंदिर के महंत राम कृपा दास महाराज के अनुसार यह स्थान केवल भक्ति ही नहीं, बल्कि मनोकामना पूर्ति के लिए भी जाना जाता है। नेतावलगढ़ पांछली ग्राम पंचायत में केलझर महादेव मंदिर में दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां चारों तरफ फैली अरावली पर्वतमाला की हरी-भरी पहाड़ियां और शांत वातावरण किसी का भी मन मोह लेता है। प्रकृति की गोद में बसा यह मंदिर भक्तों और पर्यटकों दोनों के लिए एक ऐसा स्थल है, जहां आकर आत्मा को सुकून मिलता है और मन को शांति। ऋषि-मुनियों की भी है यह तपोभूमि केलझर महादेव मंदिर बहुत पुराना है। यह मंदिर उस समय का है जब आस-पास कोई गांव भी नहीं था। बताया जाता है कि प्राचीन काल में यहां गुफाएं थीं, जिनमें ऋषि-मुनि तपस्या करते थे। आज भी इन गुफाओं के निशान देखे जा सकते हैं। यही कारण है कि इस जगह को तपोभूमि कहा जाता है और यहां का वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ लगता है। स्वयं चट्टान से प्रकट हुए शिवलिंग और नंदी मंदिर के महंत राम कृपा दास महाराज ने बताया कि इस मंदिर में जो शिवलिंग है, वह किसी ने स्थापित नहीं किया है। ना ही प्राण प्रतिष्ठा हुई है। वह शिवलिंग स्वयं चट्टानों से प्रकट हुआ था। इसी तरह नंदी महाराज की मूर्ति भी खुद प्रकट हुई मानी जाती है। ये दोनों मूर्तियां अपने आप से वहां प्रकट हुई हैं, जो इसे एक चमत्कारी और दिव्य स्थान बनाती हैं। शिवलिंग एक गुफा के अंदर ही है। मंदिर का विकास और ट्रस्ट की स्थापना सन 1993 से 1994 तक चित्तौड़गढ़ के तत्कालीन एसडीएम रामराय बांगड़ ने मंदिर क्षेत्र का काफी विकास करवाया। मंदिर की सीढ़ियां, दीवारें, रेलिंग, सराय और अन्य सुविधाएं उसी समय बनीं। जीर्णोद्घार के दौरान मंदिर परिसर में बने अन्य गुफाओं में भगवान लक्ष्मीनारायण और भगवान हनुमान जी की मूर्तियों को स्थापित कर मंदिर स्वरूप दिया गया। इसके बाद मंदिरों के शिखर पर कलश स्थापना की गई। यह सब होने के बाद यह स्थान धीरे-धीरे लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया। फिर साल 1995 में देवस्थान विभाग उदयपुर ने इसे पंजीकृत कर श्री केलझर महादेव सार्वजनिक प्रन्यास ट्रस्ट की स्थापना की, जो आज तक मंदिर की सारी देखरेख करता है। महंत राम कृपा दास महाराज के अनुसार देवस्थान विभाग के प्राचीन मंदिरों में इसका 13वां स्थान प्राप्त है। महाशिवरात्रि और हरियाली अमावस्या पर होते है आयोजन हर साल महाशिवरात्रि और हरियाली अमावस्या पर यहां बड़े स्तर पर भजन संध्या, भंडारा और मेला आयोजित होता है। इन आयोजनों में आसपास के कई गांवों से सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं। भक्त दूर-दूर से यहां आकर भगवान शिव के दर्शन करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। पूरा वातावरण भक्ति से भर जाता है और हर कोई शिवनाम में डूब जाता है। जलकुंड: कभी नहीं सूखने वाले जलस्रोत मंदिर के ऊपर दो और नीचे तीन पानी के कुंड बने हुए हैं। यह कुंड पूरे साल पानी से भरे रहते हैं, चाहे गर्मी हो या सर्दी। यहां की एक खास परंपरा है कि जब आसपास के 12 गांवों में शादियों के समय भोजन पकाने की बारी आती है, तो लोग इन कुंडों से ही पानी ले जाते हैं। यह कुंड न केवल जल का स्रोत हैं बल्कि श्रद्धा और चमत्कार की मिसाल भी हैं। नरसिंह दास महाराज की चमत्कारी कथा मंदिर की सीढ़ियों के पास एक समाधि बनी हुई है, जो लगभग 60 साल पहले यहां पूजा करने वाले नरसिंह दास महाराज की है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे बहुत ही चमत्कारी संत थे। एक बार भंडारे में घी की कमी हो गई, तो उन्होंने रसोइए से कहा- “कुंड से जल निकालो और उसी से मालपूए बनाओ।” रसोइए ने वैसा ही किया और वह पानी घी में बदल गया! उसी जल से मालपूए बने और भंडारा सफल हुआ। यह कथा आज भी श्रद्धालुओं के मन में जीवित है। प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन की दृष्टि से विशेष अरावली की हरी-भरी पहाड़ियों में स्थित यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। हरे-भरे जंगल, पक्षियों की मधुर आवाजें और ठंडी हवा इस स्थान को और भी रमणीय बना देती हैं। इतना ही नहीं, ऊपर पहाड़ियों से निकलने वाला झरना सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। यहां का शांत वातावरण ध्यान, योग और आत्मिक शांति के लिए आदर्श है। बहुत से लोग यहां आकर ध्यान लगाते हैं और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। पहुंचने की सुविधा, पक्का सड़क मार्ग बना हुआ है केलझर महादेव मंदिर तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क बनी हुई है। चित्तौड़गढ़ शहर से यह स्थान ज्यादा दूर नहीं है। यहां वाहन से आसानी से पहुंचा जा सकता है। रास्ते में हरी-भरी पहाड़ियां और सुंदर दृश्य यात्रियों को एक अलग ही शांति का अनुभव कराते हैं। आस्था और प्रकृति का मिलन केलझर महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक जीवंत आस्था, प्राकृतिक सौंदर्य, और चमत्कारी अनुभवों का अद्भुत संगम है। यहां आकर न केवल शिव के दर्शन होते हैं, बल्कि प्रकृति की गोद में बैठकर आत्मा को भी शांति मिलती है। फोटो-वीडियो क्रेडिट – मुरली कुमावत और विनोद शर्मा

Leave a Reply