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आधी रात को हाथों में तलवारें लिए लोग। आग उगलती तोपें और बारूद के धमाके, बंदूकों की गूंज। माहौल ऐसा, जैसे कोई युद्ध छिड़ गया हो। उदयपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर उदयपुर-चित्तौड़गढ़ नेशनल हाईवे पर स्थित मेनार गांव में शनिवार रात ऐसा ही नजारा था। उदयपुर में करीब 450 साल पहले मुगल चौकी ध्वस्त करने की खुशी में यहां मेनारिया समाज ने बारूद की होली खेली गई। इस दौरान तोपों से लगातार बारूद के धमाके किए गए। ढोल-दुंदुभि बजाए गए। तलवारों से गेर डांस किया गया। मशाल लेकर गांव के रास्तों की मोर्चाबंदी की गई। इसे देखने के लिए महाराष्ट्र, गुजरात और दुबई तक से लोग मेनार गांव पहुंचे। उन्होंने कहा- इस परंपरा पर वैसा ही गर्व है, जैसा बॉर्डर पर युद्ध के समय होता है। तस्वीरों में देखें बारूद की होली… मुगल चौकी ध्वस्त करने की खुशी में हर साल युद्ध जैसा जश्न
होली के बाद दूज तिथि पर हर साल मेनार गांव में बारूद की होली खेली जाती है। गांव के दर्ज इतिहास के मुताबिक- मेवाड़ में महाराणा अमर सिंह के साम्राज्य के दौरान जगह-जगह मुगलों की छावनियां (सेना की टुकड़ियां) बनी हुई थीं। मेनार गांव के पूर्वी छोर पर भी मुगल छावनी थी। छावनी के आतंक से लोग परेशान थे। मेनारिया ब्राह्मण भी मुगल छावनी के आतंक से त्रस्त थे। मेनार वासियों को वल्लभनगर छावनी पर जीत का समाचार मिला तो गांव के लोग ओंकारेश्वर चबूतरे पर जुटे और छावनी पर हमले की रणनीति बनाई। इसके बाद हमला कर मुगल छावनी को ध्वस्त कर दिया गया। चारों तरफ भीड़, धमाके, जोश और गर्व… मेनार गांव में शनिवार रात का माहौल किसी युद्ध स्थल से कम नहीं था। चारों तरफ भीड़। पैर रखने की जगह नहीं। गांव के लोगों ने सेना वाली पोशाक पहनी थी। हाथों में मशाल और तलवारें। टुकड़ियां जब बारूद की होली खेलने गांव के ओंकारेश्वर चौक पहुंचीं तो शोर मच गया। रोम-रोम में रोमांच दौड़ गया। देखते ही देखते तोपें बारूद उगलने लगीं। पटाखों की गूंज हर तरफ फैल गई। गोलियां तड़तड़ाने लगीं। दुंदुभि बजाकर जीत का ऐलान किया गया और फिर तलवारों से गेर डांस शुरू हो गया। मुगल चौकी पर जीत के बाद से मेनारिया समाज हर साल यह होली मना रहा है। खास बात ये है कि इसमें रंग से ज्यादा बारूद का का इस्तेमाल होता है। परंपरा निभाई, जाजम बिछाकर की मेहमान नवाजी शनिवार (15 मार्च) दोपहर ऐतिहासिक बारूद की होली की शुरुआत हुई। सबसे पहले गांव के ओंकारेश्वर मंदिर के चौक में शाही लाल जाजम बिछाई गई। गांव और आसपास के इलाकों से यहां पहुंचे मेनारिया ब्राह्मण समाज के पंचों, मौतवीरों (बुजुर्ग) का स्वागत किया गया। उनकी मेहमाननवाजी की गई। इसके बाद गांव के जैन समाज के लोगों ने अबीर-गुलाल बरसाना शुरू किया। सभी लोग आपस में गले मिले और होली की शुभकामनाएं दीं। इस बारूद की होली को देखने के लिए शनिवार शाम तक राजस्थान के कई शहरों के अलावा मध्यप्रदेश के रतलाम, नीमच, मंदसौर, गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, महाराष्ट्र के मुंबई और दुबई तक से लोग यहां पहुंचे। रात तक उदयपुर-चित्तौड़गढ़ नेशनल हाईवे पर गाड़ियां पार्क की गईं। करीब एक किलोमीटर पैदल चलकर लोग आयोजन स्थल तक पहुंचे। शनिवार रात 10:15 बजे के बाद रस्में शुरू हुईं। पूर्व रजवाड़ों के सदस्य सैनिकों की पोशाक धोती-कुर्ता और कसुमल पाग (साफा) बांधे तलवारें और बंदूकें लेकर घरों से निकले। अलग-अलग रास्तों से ललकारते हुए वे गोलियां दागते-तलवारें लहराते हुए ओंकारेश्वर चौक पहुंचे। यहां चबूतरे पर गांव के 5 रास्तों की मोर्चाबंदी का आदेश दिया गया। पांच टुकड़ियां 5 मशालें लेकर ढोल की थाप पर गांव की मोर्चाबंदी करने के लिए रवाना हो गईं। पांचों दलों ने शोर करते हुए जब एक साथ कूच किया तो रोमांच चरम पर पहुंच गया। हजारों लोग इस नजारे के गवाह बने। इसके बाद महिलाएं सिर पर मंगल कलश रखकर और पुरुष आतिशबाजी करते हुए बोचरी माता की घाटी पहुंचीं। वहां मुगल चौकी पर जीत की शौर्य गाथा का वाचन किया गया। यहां थंभ चौक पर महिलाओं ने मुख्य होली को ठंडा करने की रस्म निभाई। इसके बाद ढोल-नगाड़ों के साथ आगे टुकड़ियां और पीछे महिलाएं ओंकारेश्वर चौक की तरफ रवाना हुई। इस दौरान तलवार और लकड़ी लेकर गेर नर्तकों ने डांस किया। हैरतअंगेज करतब दिखाए गए। महिलाएं वीर रस के गीत गा रही थीं। सभी के ओंकारेश्वर चौक पहुंचने पर बारूद की होली शुरू हुई। पांचों टुकड़ियों के योद्धाओं ने एक साथ हवाई फायर किए। आतिशबाजी की गई। तोपों में बारूद भरकर धमाके किए गए। इस वक्त ऐसा नजारा सामने था जैसे युद्ध का क्षेत्र हो या फिर बॉर्डर पर आ गए हों। गुजरात, मध्यप्रदेश और मुंबई से आए लोग मेनार की बारूद की होली में हिस्सा लेने लोग देश के अलग-अलग हिस्सों से पहुंचे। दुबई में रहने वाले मेनारिया समाज और गांव के लोग भी यहां पहुंचे थे। गुजरात से आए हरलीन सिंह ने बताया- इंटरनेट पर मेनार की बारूद की होली का वीडियो देखा। मन किया कि जाकर देखेंगे। इसके बाद हम यहां आ गए। यहां बहुत आनंद आया। इस आयोजन को करने के लिए अच्छा मैनेजमेंट किया गया है। अहमदाबाद से आए मयंक पंचाल ने बताया- हम 3 दिन पहले ही आ गए थे। बाद में पता चला कि यह तो शनिवार को होगा। फिर हम उदयपुर रुके। आज (शनिवार) इस आयोजन में शामिल हुए तो बहुत आनंद आया। मुंबई से आए सांवलाराम चौधरी ने बताया- मैंने पहली बार यह होली देखी। लगातार आतिशबाजी, बंदूकों का शोर और तोपों से गोले दागने का नजारा किसी युद्ध से कम नहीं था। इस गांव के लोग खानदानी शेफ, दुबई से आयोजन के लिए आते हैं मेनार के कई लोग और युवा विदेशों में और देश के कई राज्यों में खानदानी शेफ हैं। शेफ का काम करने वाले युवाओं ने बताया कि होली का त्योहार आते ही वे गांव लौट आते हैं। लोगों ने बताया कि आयोजन में भाग लेकर वे गौरवान्वित महसूस करते हैं। दुबई से आए कालूलाल मेनारिया ने बताया- मैं स्पेशल इस दिन के लिए यहां आता हूं। सारा काम छोड़कर यहां आना ही होता है। यहां आने के लिए एक महीने पहले ही तमाम तैयारियां कर लेते हैं। स्थानीय निवासी पुष्कर मेनारिया ने बताया- जब से समझ विकसित हुई है, तब से जोश से यह त्योहार मनाते हैं। इस दिन को लेकर बहुत गर्व महसूस करते हैं। लगता है बॉर्डर पर हैं। सहयोग : सुरेश मेनारिया, मेनार

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