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होली का अगला दिन यानि की धुलंडी। यह दिन पूरे साल में जन्मी बेटियों के लिए खास होता है। पूरा गांव ढोल-नगाड़ों के साथ बेटियों के घर पहुंचता है। बेटियों के जन्म की खुशी पूरा गांव मनाता है। बेटियों के घर पर गांव वालों को गुड़-मिठाई खिलाकर मुंह मीठा कराया जाता है। सालों से चली ही आ रही यह परम्परा आज उदयपुर जिले के मावली ब्लॉक के धारता गांव में आज भी कायम है। उदयपुर से करीब 55 किलोमीटर दूर धारता गांव खेमपुर के पास है। वहां पर होली के अगले दिन अनोखी ढूंढ़ोत्सव परम्परा होती है। यह दिन बेटियों के लिए ही होता है, जिनका पिछली धुलंडी के बाद हुआ है। उनकी पहली होली के अगले दिन पूरा गांव मिलकर बेटियों का ढूंढ़ोत्सव मनाता है। ये है परम्परा गांव में
ढूंढ़ोत्सव के मौके पर पूरा गांव ढोल नगाड़ो के साथ सबसे पहले जिनके घर बेटी का जन्म हुआ है, उनके घर पहुंचते है। बेटी बचाने की बरसों पुरानी ढूंढ़ोत्सव परम्परा आज भी कायम है। धारता गांव में बेटियों के जन्म के ​बाद की पहली होली पर खुशियां मनाते हुए ढोल-नगाड़ों के साथ सामूहिक रूप से पूरा गांव उस घर जाता है। यह दिन गांव के साथ-साथ उस घर में भी उत्सव का माहौल रहता है। गांव वाले पीली मिट्टी से मांडना बनाते है और जिस बेटी की पहली होली होती है उसको उनकी रिश्तेदार बेटी ही गोदी में लेकर बैठते है। पहली होली वाली बेटी की लम्बी उम्र के लिये सब प्रार्थना करते हैं। वहीं लड़की के परिवार द्वारा गांव के सभी लोगों को गुड़-मिठाई खिलाकर सबका मुंह मीठा कराया जाता हैं। उसके बाद फिर दूसरी जगह गांव वाले आगे बढ़ते रहते है। गांव के भुवनेश आमेटा कहते है कि हमारे गांव में बेटियां बेटों से कम नहीं है, उनको खूब पढ़ाने और आगे बढ़ने के लिये पूरा गांव प्रेरित करता है। गांव के ही मुकेश चंद्र आमेटा कहते है कि बेटी बचाओ को लेकर गांव में सबमें जागरूकता है। धुलंडी के दिन माताजी के चौक में जश्न मनाया जाता है और वहां से पूरा गांव आगे बेटियों के घर पहुंचने का क्रम शुरू कर देता है। गांव में अगर किसी बेटी का जन्म नहीं होता है तो पास ही रोडी पर जाते है और वहां लक्ष्मी को बेटी का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। गांव के जगदीश आमेटा और महेंद्र सिंह दधवाड़िया कहते है कि 50 साल से मैं तो देखते आ रहा हूं कि यहां पर सबसे पहले बेटियों को ही प्राथमिकता देते आ रहे है। गांव की ज्योतिरानी शर्मा कहती है कि ढूंढ़ोत्सव की परम्परा 15 साल से तो मै भी देख रही हूं। यह परम्परा बहुत ऐतिहासिक है और बेटी बचाओ का संदेश सब देते है।

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