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एक्सपर्ट : पौधों की पत्तियों व फलों से बनाते थे रंग, यह थी आला गिला शैली

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थलिया हवेली में मुगल आर्ट, विक्टोरियन आर्ट, हिंदू परंपरा की एक से बढ़कर एक पेंटिंग देखने को मिल जाएगी जो कि आज प्राय लुप्त होती जा रही है। इस पूरी हवेली में वेजीटेरियन जिसमें चूना के साथ पेड़- पौधों की पत्तियां हाथ से पीसकर कलर बनाया जाता था जिसको आला- गिला पद्धति बोला जाता था। इस चित्रकारी को ओपन आर्ट गैलरी भी कहा जाता है जो कि विश्व प्रसिद्ध है। झुंझुनूं | बदलते दौर में फागोत्सव का अंदाज भले ही बदल गया, लेकिन शेखावाटी के भित्ति चित्रों में आज भी फाल्गुनी मस्ती की बयार नजर आ रही है। ये हवेलियां देश-विदेश में हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए हैं। जिले के मंडावा की हवेलियों की चित्रकारी आकर्षण का केंद्र है। यहां पर देश- विदेश से भ्रमण के लिए आने वाले सैलानी इन्हें देखने पहुंचते हैं। इस हवेली की दीवारों पर बनी फ्रेस्को पेंटिंग सैलानियों को आकर्षित करती है। महिलाओं द्वारा ढप बजाते हुए व पास में कृष्ण भगवान खड़े, कृष्ण के राधा संग होली खेलते हुए, राजा- रानी सखियों के साथ होली खेलते हुए चित्रकारी आकर्षण का केंद्र है जो की सैलानियों को लुभाती है। पर्यटन विशेषज्ञ अरविंद पारीक के मुताबिक शेखावाटी में होली के रंगों को चित्रों के जरिए दर्शाने की पूरी शैली प्राकृतिक रंगों के जरिए ही उकेरी जाती थी। इस शैली को आला गिला या आरस शैली कहा जाता है। 18वीं शताब्दी में जापान और इटली में इस शैली का विकास होने पर इसे फ्रेस्को शैली में बदल दिया गया। हवेली में होली की परंपरा को दिखाने के लिए वनस्पतियों के उपयोग से रंग बनाए जाते थे। चूने में मिलाकर पौधों की पत्तियों की मदद से रंग तैयार किए जाते थे। इसके बाद आला गिला शैली में चित्र बनाए जाते थे। प्राकृतिक रंग होने के कारण से 180 साल बाद भी इनकी चमक बनी हुई है। इसीलिए पर्यटक देखने आते हैं।

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