कुन्दनलाल सहगल भारतीय सिनेमा के शुरुआती स्टार्स में गिने जाते हैं। कुन्दन को 1935 में आई फिल्म ‘देवदास’ के लीड रोल से फेम मिला था। एक्टर के साथ वो सिंगर भी थे। हालांकि, उनका निजी जीवन शराब पर निर्भर हो गया था। इससे उनकी तबीयत बिगड़ गई, और उनका लिवर इतना खराब हो गया कि वो कभी ठीक नहीं हो सका। जनवरी 1947 में उनकी मौत हो गई। उस समय उनकी उम्र 42 साल थी। यह भी बताया जाता है कि उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे। वे अपने होमटाउन जालंधर लौट आए थे और वहां अपनी सिंगिंग और एक्टिंग करियर को फिर से शुरू करने की कोशिश कर रहे थे। बता दें कि कुन्दन ने देशभर में कई छोटे-मोटे काम किए। वे साड़ियों और टाइपराइटर बेचते थे। शिमला के एक होटल में भी उन्होंने काम किया, लेकिन उनका गाने का शौक उन्हें कोलकाता ले गया क्योंकि उस समय कोलकाता फिल्म और मनोरंजन का बड़ा केंद्र था। कोलकाता में न्यू थिएटर्स ने उन्हें ₹200 महीने की नौकरी दी थी
कोलकाता में उन्हें न्यू थिएटर्स नाम की प्रोडक्शन कंपनी ने 200 रुपए महीने पर साइन किया था। उनकी शुरुआती कुछ फिल्में नहीं चलीं, लेकिन 1934 उनके करियर के लिए अहम साल बना। फिल्म ‘चंडीदास’ का गाना ‘प्रेम नगर’ हिट हो गया। इसके अगले ही साल उन्होंने ‘देवदास’ में काम किया, जिससे उनका करियर और ऊंचाई पर पहुंचा। द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार कुन्दन ने एक बार किदार शर्मा से कहा था –”मैं तो एक साधारण आदमी हूं। मुझे एक्टिंग का कोई अनुभव नहीं। मैं पहले सेल्समैन था। गाना मेरा शौक है।” किदार शर्मा ने अपनी आत्मकथा में लिखा था- “सहगल के दो शौक थे- संगीत और शराब। एक ने उन्हें बनाया और दूसरे ने उन्हें बर्बाद किया।” किदार शर्मा ने अपनी किताब में ये भी लिखा था कि संगीतकार नौशाद ने सहगल से कहा था कि एक गाना नशे में और एक होश में गाओ। बाद में नौशाद ने होश में गाया हुआ गाना चुना। बिना शराब पिए गाने की रिकॉर्डिंग नहीं करते थे 1941 में रंजीत मूवीटोन के साथ काम करने के लिए सहगल मुंबई आ गए थे। रंजीत मूवीटोन के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट उन्होंने साइन किया था जिसके मुताबिक हर एक फिल्म का उन्हें एक लाख रुपए मिलना था। उस समय के हिसाब से ये एक बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। यहां पर उन्होंने कई हिट फिल्मों के गाने गाए, लेकिन शराबी बन गए। ऐसा कहा जाता था कि वो शराब के नशे में ही गाना रिकॉर्ड करते थे। वहीं, कुन्दन के व्यक्तित्व की संवेदनशीलता का एक किस्सा किदार शर्मा ने अपनी किताब में लिखा था। उस समय सहगल साड़ियां और टाइपराइटर बेचते थे। वे एक गरीब लड़की के घर से गुजरते थे जिसे उनकी पेटी में रखी हरी साड़ी पसंद थी, लेकिन वह उसे खरीद नहीं सकती थी। एक दिन लड़की ने कहा -“कल मेरे पास दस रुपए होंगे, आप आना।” अगले दिन सहगल वहां गए तो पता चला लड़की मर चुकी थी। उन्होंने वह हरी साड़ी उसके भाई को दे दी ताकि वह उसके अंतिम संस्कार में इस्तेमाल हो सके। इस घटना से वे इतने दुखी हुए कि साड़ियां बेचना छोड़ दिया। एक बार एक पार्टी में कुन्दन ने किदार शर्मा से कहा था – “चलो बाहर चलते हैं, ताजी हवा खा लें।” शर्मा ने देखा कि सहगल दूर से किसी की आवाज सुनना चाहते थे। वहां एक नेत्रहीन भिखारी गाना गा रहा था। सहगल उसकी गायकी से इतने प्रभावित हुए कि जेब में जो भी था उसे दे दिया। बाद में उन्होंने शर्मा से कहा था– “मैंने उसे पांच हजार रुपए दे दिए।” जब शर्मा ने हैरानी जताई तो सहगल ने कहा –”तुम सोचते हो देने वाला कभी गिनकर देता है?”