22 मार्च 1989 की दोपहर करौली जिले के ढिंढोरा गांव में सब कुछ सामान्य था। गांव के बुजुर्ग रामभरोसी प्रजापत अपने बेटे विजय सिंह के साथ कुएं पर मवेशियों को पानी पिलाने गए थे। उसी वक्त वहां गांव के ही रणवीर जाट और उसका साथी नानगा जाट पहुंचे। दोनों ने रामभरोसी से झगड़ा शुरू कर दिया। वजह थी– जातिगत टिप्पणी। रणवीर ने जातिगत टिप्पणी करते हुए कहा- रामभरोसी इस कुएं का इस्तेमाल नहीं कर सकता। रणवीर को रामभरोसी का कुएं के पास आना इतना बुरा लगा कि उसने उसे धक्का मारते हुए दूर कर दिया। इसके बाद रामभरोसी को भी गुस्सा आ गया। रामभरोसी ने रणवीर की बात पर नाराजगी जाहिर करते हुए उसे यहां कह दिया कि ये सरकारी कुआं है, किसी के बाप का कुआं नहीं है। इसके बाद कहासुनी बढ़ती गई और गांव वाले इकट्ठे होने लगे। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, रणवीर और नानगा वहां से चले गए। सबने सोचा, बात खत्म हो गई। …और फिर कर दी हत्या
कुएं पर हुई कहासुनी के सिर्फ दस मिनट बाद ही रणवीर, नानगा, दिगंबर, करन और कुछ अन्य लोग रामभरोसी के घर पहुंच गए। रणवीर के सिर पर खून सवार था। रणवीर और उसके साथियों के हाथों में फरसा, गंडासी और लाठियां थीं। आते ही रणवीर ने रामभरोसी के सिर पर गंडासी से वार किया। वे जमीन पर गिर पड़े। उसके बाद पूरे परिवार पर हमला कर दिया गया। परिवार के लोग चिल्लाते रहे, लेकिन कोई बचाने नहीं आया। रामभरोसी को घायल अवस्था में हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। गांव में लोग डरे-सहमे थे। रामभरोसी के परिवारजनों ने हिण्डौन के कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई। एफआईआर नंबर 181 दर्ज हुई। धाराएं थीं – 147, 148, 307 और 302 आईपीसी के तहत हत्या और दंगे का मामला। पुलिस कार्रवाई हुई… पर असली कहानी तब शुरू हुई जब आरोपी जमानत पर छूटा
पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया। इस दौरान मुख्य आरोपी रणवीर भी पकड़ा गया था। 1991 में उसे जमानत मिल गई। कोर्ट से बाहर आने के बाद रणवीर गायब हो गया। रणवीर ने एक ऐसी चाल चली, जिसमें पुलिस वाले भी फंस गए। रणवीर जमानत पर बाहर आने के बाद से लेकर 2025 तक– यानी पूरे 35 साल तक फरार रहा। अदालत में उसकी अनुपस्थिति को देखते हुए उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया। इस बीच 31 अक्टूबर 2017 को कोर्ट ने हत्या के मामले में उसे दोषी करार दिया, लेकिन सजा नहीं सुनाई जा सकी, क्योंकि वह मौजूद ही नहीं था। पुलिस ने रणवीर की तलाश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिला। उसके खिलाफ इनाम घोषित किया गया, पर उसकी कोई खबर नहीं मिली। पुलिस फाइलों में उसका नाम बस एक फरार आरोपी के रूप में दर्ज होकर रह गया। वक्त बीतता गया, गवाह बूढ़े हो गए, कुछ मर गए। पीड़ित परिवार ने उम्मीद छोड़ दी थी। उन्हें लगने लगा था कि शायद इंसाफ अब कभी नहीं मिलेगा। लेकिन एक फाइल जो सूरौठ थाना में धूल खा रही थी, वह फिर से खोली गई। एसएचओ महेश कुमार मीणा और डीएसपी गिरधर सिंह ने तय किया कि वे इस केस को अंजाम तक पहुंचा कर ही दम लेंगे। उन्होंने पुराने रिकॉर्ड निकाले, गवाहों से दोबारा संपर्क किया और टेक्नोलॉजी की मदद से रणवीर को ढूंढ़ने की योजना बनाई। और यहीं से कहानी ने नया मोड़ लिया। कहानी में जुड़ा एक नया नाम और वो था साधु बाबा रामकिशन…. आखिर कौन था बाबा रामकिशन और कैसे एक साधु ने इस 35 साल पुराने हत्या के मामले को नया मोड़ दिया देखिए क्राइम फाइल के अगले पार्ट में…..
