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कोटा विश्वविद्यालय, कोटा में 23वें स्थापना दिवस के अवसर पर आज शाम नव नियुक्त कुलगुरु प्रोफेसर डॉ. बी.पी. सारस्वत ने कोटा विश्वविद्यालय के कुलगुरु का पदभार ग्रहण किया। गुरुवार को राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागडे द्वारा शिक्षाविद प्रोफेसर भगवती प्रसाद सारस्वत को कोटा विश्वविद्यालय, कोटा (राजस्थान) के कुलगुरु पद पर नियुक्त किया गया था। प्रोफेसर सारस्वत, महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में वाणिज्य विभाग अधिष्ठाता/संकाय अध्यक्ष रह चुके हैं एवं विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार पद का भी लम्बा अनुभव रखते हैं। प्रो. सारस्वत ने महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में रहते हुए अपने सेवाकाल में विभिन्न परीक्षाओं बी.एस.टी.सी., पी.टी.ई.टी. को कई वर्षों तक सम्पन्न भी करवाया एवं विश्वविद्यालय में अकादमिक श्रेष्ठता दर्शाते हुए Centre for Entrepreneurship and Small Business Management (SSI Ministry, Govt. Of India) की स्थापना कर रोजगारोन्मुख अकादमिक पाठ्यक्रमों का संचालन किया था। आज ही के दिन 7 जून 2003 को कोटा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई विश्वविद्यालय के 23वें स्थापना दिवस के अवसर पर नव नियुक्त कुलगुरु प्रोफेसर डॉ. बी.पी. सारस्वत के स्वागत एवं निवर्तमान कुलगुरु प्रोफेसर डॉ. कैलाश सोडाणी के सम्मान में विश्वविद्यालय में शाम को स्वागत एवं सम्मान समारोह का आयोजन रखा गया। प्रो. कैलाश सोडाणी जी ने कहा कि अब तक विश्वविद्यालय ने बहु आयामी प्रगति की है। विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं कर्मचारियों की पदोन्नति अभी भी विश्वविद्यालय के लिए एक अहम मुद्दा बनी हुई है। भविष्य में इस विश्वविद्यालय के शिक्षकों के द्वारा वैश्विक स्तर पर अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए ताकि विश्व के अन्य उच्च स्तरीय विश्वविद्यालयों की वस्तु स्थिति एवं कार्य प्रणाली को समझा जा सके और उनकी अच्छी बातों को हमारे विश्वविद्यालयों में लागू किया जा सके। शिक्षकों को सदैव सकारात्मक सोच के साथ कार्य करना चाहिए एवं सकारात्मक विचारधारा को आगे बढ़ना चाहिए। प्रो. बी. पी. सारस्वत ने कहा विश्वविद्यालय आगामी 3 वर्षों में अपने एडमिशन एवं गुणवत्तापूर्ण रिसर्च में वृद्धि करेगा तथा सभी शैक्षणिक व अशैक्षणिक कर्मचारियों एवं अधिकारियों की समस्याओं का समाधान त्वरित गति से करते हुए विश्वविद्यालय की आय को आगामी 3 वर्षों में दुगना करने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने बताया कि हम सभी को विश्वविद्यालय को केंद्र मानकर उसके हित में मिल जुलकर कार्य संपादित करने होंगे तभी विश्वविद्यालय की चहुमुखी प्रगति हो पाएगी।

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