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खेती वाले मंत्री ही क्यों देते हैं इस्तीफा?:महिला अफसर के रसूख से IAS तक खौफ में; विपक्षी मुखिया की राज्यपाल ने थपथपाई पीठ

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पिछले दिनों एक आलीशान होटल में विपक्षी पार्टी के विधायक दल की बैठक चल रही थी। बैठक में सरकार को घेरने की रणनीति पर संगठन मुखिया और विधायकों के मुखिया से लेकर बड़े नेता टिप्स दे रहे थे। कई इधर-उधर की बातें भी हुईं। इसी बीच शेखावाटी के एक विधायक ने संगठन मुखिया से पूछ लिया- सदन में इशारा किसका मानना है। संगठन मुखिया का या विधायकों के मुखिया का? इस दुखती रग पर हाथ रखते ही बैठक में कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। इस बात को संभाला गया, लेकिन विपक्षी पार्टी के हिलोरे मारते आंतरिक लोकतंत्र में कभी कुछ छिपता थोड़े ही है। दोनों विपक्षी मुखियाओं की राज्यपाल ने क्यों थपथपाई पीठ?
प्रदेश के बजट वाले दिन विधानसभा में राज्यपाल गैलरी सबसे ज्यादा चर्चा में रही। अब राज्यपाल बन चुके फायरब्रांड नेताजी बजट भाषण सुनने राज्यपाल गैलरी में थे। सबसे दुआ सलाम हुई। सबसे गौर करने वाला जेस्टर विपक्षी पार्टी के संगठन मुखिया और विपक्षी विधायकों के मुखिया को लेकर रहा। दोनों ने जितने आदर से अभिवादन किया, बदले में डबल आशीर्वाद मिला। दोनों की पीठ थपथपाई। अब विपक्ष के दो बड़े पदों पर बैठे नेताओं की पीठ थपथपाने के मायने तलाशे जा रहे हैं। सामान्य शिष्टाचार के साथ ये विधानसभा की परफॉर्मेंस पर शाबासी भी तो हो सकती है। संवैधानिक पद पर बैठे नेताजी जब विधानसभा में थे तो कई सरकारों को अपने तर्कों से नाकों चने चबवा चुके हैं। राज्यपाल बनने के बावजूद नेताजी का विधानसभा और प्रदेश के प्रति लगाव देखते ही बनता है। महिला अफसर के रसूख से खौफ
पावर गेम में कब कौन भारी पड़ जाए यह देश, काल परिस्थितियों पर निर्भर करता है। शहरी महकमे के बड़े अफसरों पर इन दिनों महिला अफसर के रसूख का खौफ है। बड़े-बड़े अफसर नाम सुनते ही टेंशन में आ जाते हैं। कुछ दुखी अफसरों ने आपस में दर्द साझा किया तो बात पावर कॉरिडोर्स तक पहुंच गई। महकमे के जिम्मेदार अफसरों के पास अब बड़ी जगहों से दनदनाते हुए फोन पहुंच रहे हैं। अब कुछ दिन महिला अफसर की राजधानी में तैनाती की तैयारी है। लेकिन महकमे के अफसरों को इतनी सी बात के लिए इतना परेशान होते हुए कभी नहीं देखा गया। कोई तो राज है। विधायक ने सरकारी आशियाने को राममय बनाया, अब देखने का न्योता
सत्ता वाली पार्टी को आगे बढ़ाने में राम नाम का बड़ा योगदान है। यह बात हर कोई जानता है। सत्ता वाली पार्टी के एक विधायक की रामभक्ति इन दिनों चर्चा में है। विधायक ने अपने सरकारी फ्लैट को राममय बनाया है। फ्लैट को राममय बनाने में खुद लाखों खर्च किए हैं। पिछले दिनों विधायकजी ने अपना फ्लैट देखने के लिए कई बड़े मंत्रियों, नेताओं को न्योता दिया तो मामला और चर्चा में आया। अब तक कई प्रभावशाली लोगों को निमंत्रण मिल चुका है। विधायक की रामभक्ति की चर्चा मुखिया से लेकर टॉप तक भी पहुंच गई है। अब सियासत में भक्ति के पीछे कुछ न कुछ राजसी मकसद भी छिपे होते हैं। राम नाम की महिमा विधायक को सियासी भवसागर पार करवा सकती है। इसके लिए आगे इंतजार है। दूध से नहीं छाछ से जलने का डर
कहावत है कि दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है, लेकिन विधानसभा में तो कई बार छाछ भी वो काम कर जाती है जो गर्म दूध नहीं कर सकता। पिछले राज में पूर्व मुखिया ने बजट के दौरान पुरानी घोषणा पढ़ दी थी। उस गलती का खौफ अब तक बजट बनाने वाले महकमे पर हावी दिख रहा है। इस बार भी बजट भाषण को लेकर हर तरह की सावधानी बरती गई, कहीं कोई पुराना पैरा तो नहीं रह गया, कोई गलत पन्ना तो नहीं जुड़ गया, इसलिए फाइनल बजट भाषण को थ्री टीयर स्क्रीन किया गया तब जाकर विधानसभा तक पहुंचा। जानकार इस खौफ को अच्छा बता रहे हैं। राजधानी के विधायक विपक्ष के अघोषित सचेतक
सियासत में परसेप्शन बनाने की कला हर किसी में नहीं होती। जिनमें ये कला होती है, वे बिना पद भी धाक जमाने में कसर नहीं छोड़ते। विपक्षी पार्टी के एक विधायक इन दिनों फ्लोर मैनेजमेंट से लेकर मुद्दे उठाने तक में साथी विधायकों की मदद करते हुए दिखते हैं। सदन में अच्छा बोलने वालों की मुक्तकंठ से तारीफ करते भी नहीं थकते। यही नहीं कई को ये सलाह भी देते हैं कि कब कौन सा मुद्दा उठाना है। विधायक ने अपने किसी नजदीकी को बताया कि विपक्ष के सचेतक की जिम्मेदारी उन्हें ही मिलनी है। अब आदेश कब होंगे पता नहीं, लेकिन जिम्मेदारी तो पहले ही संभाल ली है। फिलहाल तो मान न मान मैं तेरा सचेतक फाॅर्मूला ही चल रहा है। खेती-किसानी के मंत्री ही क्यों लेते हैं लोकसभा हार की जिम्मेदारी?
बाबा के मंत्री पद से इस्तीफे के बाद सियासी हलकों में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। सत्ता वाली पार्टी से लेकर विपक्ष के हलकों तक में इसी इस्तीफे के समीकरणों पर बातें चल रही हैं। पिछले दिनों एक नेताजी ने इसे पुराना संयोग करार दिया। बाबा से पहले विपक्षी पार्टी के पिछले राज में भी खेती-किसानी वाले मंत्रीजी ने लोकसभा चुनावों के नतीजों की नैतिक जिम्मेदार लेते हुए इस्तीफा दिया था। नेताजी इस्तीफा देकर आध्यात्मिक आश्रम चले गए थे। बाद में वे मान गए थे। अब वे नेताजी सत्ता वाली पार्टी में आ चुके हैं। बाबा के मामले में नतीजों का इंतजार है। सुनी-सुनाई में पिछले सप्ताह भी थे कई किस्से, पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें विधायक ने क्यों जताई दिमाग हैक होने की आशंका:अंधविश्वास के शिकार एमडी बनने के इच्छुक अफसर; मंत्रीजी घर पर, स्टाफ बोला- बाहर गए

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