जिले में लगातार गहराते भूजल संकट और खारे पानी की बढ़ती समस्या से जूझ रहे किसानों के लिए फार्म पौंड (खेत तलाई) आशा की नई किरण बनकर उभरे हैं। सिंचाई के पारंपरिक स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता और गिरते भूजल स्तर के बीच, वर्षा जल संचयन की यह पहल किसानों को सूखे की चुनौती से निपटने और खेती को टिकाऊ बनाने में महत्वपूर्ण मदद कर रही है। जल संरक्षण का स्थायी समाधान: बढ़ता रूझान मानसून के दौरान वर्षा जल को इकट्ठा करने के उद्देश्य से बनाए जा रहे ये फार्म पौंड न केवल सूखे के समय फसलों को जीवनदान दे रहे हैं, बल्कि जल संरक्षण की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इससे फसलों की सिंचाई समय पर हो पा रही है और खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि फार्म पौंड जल प्रबंधन का एक स्थायी, किफायती और प्रभावशाली उपाय है। यह सूखे की स्थिति से निपटने के साथ-साथ अधिक बारिश में जलभराव की समस्या से भी राहत दिलाता है। यही कारण है कि झुंझुनूं जिले में इस योजना के प्रति किसानों का रूझान तेजी से बढ़ा है। जागरूकता का असर: निर्माण में उल्लेखनीय वृद्धि पिछले कुछ वर्षों में जिले में फार्म पौंड के निर्माण में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। जहां योजना की शुरुआत में सालभर में महज 15 से 20 फार्म पौंड बनाए जाते थे, वहीं अब यह संख्या बढ़कर प्रति वर्ष दो सौ से ढाई सौ तक पहुंच गई है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, अब तक जिले में एक हजार से अधिक किसान अपने खेतों में फार्म पौंड का निर्माण कर चुके हैं। यह बदलाव किसानों में बढ़ती जागरूकता और सरकार की ओर से मिल रही सहायता का सीधा परिणाम है। सरकारी मदद से मिल रही गति: पात्रता मानदंड कृषि विभाग द्वारा किसानों को फार्म पौंड निर्माण के लिए अनुदान दिया जा रहा है, जिससे यह योजना जमीनी स्तर पर गति पकड़ रही है। कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. राजेंद्र लाबा के अनुसार, जल संकट के समाधान के लिए फार्म पौंड एक कारगर विकल्प साबित हो रहे हैं। विभाग की योजना के तहत पात्र किसानों को अनुदान दिया जा रहा है, ताकि वे अपने खेतों में यह संरचना बना सकें और खेती को टिकाऊ बना सकें। अनुदान पाने के लिए किसान के पास न्यूनतम 0.3 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि होना आवश्यक है। यदि भूमि संयुक्त खातेदारी में है, तो प्रत्येक हिस्सेदार के पास इतनी ही भूमि होना जरूरी है। इसके अलावा, एक ही खसरे में अलग-अलग फार्म पौंड के बीच कम से कम 50 फीट की दूरी रखना अनिवार्य है। आत्मनिर्भरता की ओर कदम जिले के कई किसानों का मानना है कि फार्म पौंड ने उनकी खेती को संकट से बाहर निकालने में मदद की है। कम पानी में अधिक उत्पादन संभव हो पाया है, जिससे उनकी आय में भी इज़ाफा हुआ है। वर्षा जल को खेत में ही रोककर भविष्य के लिए सहेजने की यह पहल अब जिले में एक आंदोलन का रूप लेती नजर आ रही है। सरकार और कृषि विभाग की यह पहल न केवल जल संकट से निपटने में मदद कर रही है, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी एक सशक्त कदम साबित हो रही है।