अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल के अंतिम 6 महीनों के फैसलों को लेकर मौजूदा सरकार ‘क्लीन चिट’ देने की तैयारी कर रही है। कैबिनेट सब कमेटी ने गहलोत सरकार के करीब 40 बड़े निर्णयों की समीक्षा कर ली है। जल्द ही यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री भजनलाल को सौंपी जा सकती है। पिछली गहलोत सरकार में अडाणी ग्रुप सहित 441 संस्थाओं को रियायती दरों पर जमीन आवंटन सहित कई बड़े मामलों पर विपक्ष में रहने के दौरान बीजेपी ने सवाल उठाए थे। सूत्रों के अनुसार, कुछ छोटे-मोटे फैसलों को छोड़ दें तो किसी बड़े मामले में कोई खास अनियमितता सामने नहीं आई है। सत्ता में आने के बाद भजनलाल सरकार ने 2 फरवरी 2024 को गहलोत सरकार के अंतिम 6 महीने में लिए गए निर्णयों की समीक्षा के लिए कैबिनेट सब कमेटी का गठन किया था। बीजेपी ने कौन-कौन से फैसलों पर सवाल उठाए थे? किस तरह के निर्णयों की समीक्षा की गई है? पढ़िए मंडे स्पेशल स्टोरी में…. डेढ़ साल में भी पूरी नहीं हो सकी समीक्षा
स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की अध्यक्षता में गठित कैबिनेट सब कमेटी में संसदीय कार्यमंत्री जोगाराम पटेल, खाद्य मंत्री सुमित गोदारा और पीडब्ल्यूडी राज्य मंत्री मंजू बाघमार शामिल हैं। कमेटी को गहलोत सरकार के 1 अप्रैल 2023 से 14 दिसंबर 2023 के बीच मंत्रिमंडलीय और विभाग स्तर पर लिए गए निर्णयों की समीक्षा करने का काम सौंपा था। निर्देश थे कि ये कमेटी तीन महीने में सीएम भजनलाल को अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। लेकिन सरकार बने डेढ़ साल हो गया। हाल ही में कमेटी का कार्यकाल 3 महीने और बढ़ा दिया गया है। संसदीय कार्य मंत्री व कमेटी सदस्य जोगाराम पटेल का कहना है कि रिपोर्ट तैयार है, कमेटी इसे पढ़ रही है और जल्द सरकार को सौंप दी जाएगी। ये निर्णय भी जांच के दायरे में… नाराजगी-निवेश को लेकर कमेटी पर दो तरफा दबाव
सूत्रों के अनुसार, कमेटी को गहलोत सरकार के फैसलों की समीक्षा के दौरान दो तरफा दबाव झेलना पड़ रहा है। कमेटी ने छोटे स्तर पर एक्शन लेते हुए करीब 30 संस्थाओं का आवंटन निरस्त किए। लेकिन एक तरफ इस बात का भी दबाव है कि समाजों-संस्थाओं को दी जमीनों के आवंटन यदि निरस्त कर दिए, तो उनकी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। विपक्ष भी इसे मुद्दा बनाकर समाज-संस्थाओं का साथ पा लेगा। अडाणी सहित अन्य बिजनेस समूह को दी गई जमीन का आवंटन निरस्त करने से निवेश को झटका लगेगा। राजस्थान में काम करने को लेकर अन्य निवेशकों के मन में भी आशंकाएं घर कर जाएंगी। अडाणी समूह को प्रदेश के अलग-अलग जिलों में सस्ती दर पर 75 हजार बीघा जमीन दी थी। 25 हजार बीघा जमीन का आवंटन तो कैबिनेट की बैठकों में किया गया। सिर्फ जयपुर जिले में 300 से अधिक संस्थाओं को जमीन अलॉट की गई थी। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सितंबर 2023 में विभिन्न संस्थाओं को जयपुर में 29, जोधपुर में 44 सहित दो दर्जन जिलों में दर्जनों प्लॉट (भूखंड) आवंटित कर दिए गए थे। संसदीय कार्य मंत्री व सब कमेटी के सदस्य जोगाराम पटेल से तीन सवाल भास्कर : रिपोर्ट का काम कहां तक पहुंचा है? मंत्री जोगाराम पटेल : रिपोर्ट तैयार है और अंतिम समीक्षा की जा रही है। बहुत जल्द सबमिट होने वाली है। भास्कर : फिर भी कितनी तैयार है 80-90 प्रतिशत? मंत्री जोगाराम पटेल : कमेटी के मेंबर तैयार की गई रिपोर्ट को पढ़ रहे हैं। कमेटी ने जो भी निर्णय लिए हैं, वह एक बार देखे जा रहे हैं। भास्कर : क्या गहलोत सरकार के फैसलों को क्लीन चिट देने की तैयारी है? मंत्री जोगाराम पटेल : हमारे यहां ऐसा कोई विषय नहीं है। अब हम बहुत जल्द रिपोर्ट सरकार को भेज देंगे। गहलोत सरकार ने 1059 फैसलों की समीक्षा की थी, 2 साल बाद क्लीन चिट दी
पूर्ववर्ती सरकार के आखिरी समय के निर्णयों की समीक्षा पहली बार नहीं है। अशोक गहलोत-वसुंधरा राजे ने चुनाव से पहले एक-दूसरे पर कई गंभीर आरोप जड़े। सत्ता में आने पर एक-दूसरे की सरकार के फैसलों की समीक्षाएं भी करवाई गईं। हकीकत यह है कि इनकी समीक्षा में कभी किसी सरकार की अनियमितता उजागर ही नहीं हुई है। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए वसुंधरा राजे सरकार पर सामाजिक संस्थाओं को जमीन आवंटन पर करप्शन के आरोप लगाए थे। इसके साथ ही 28 लाख किसानों की 50 हजार तक की कर्जमाफी में अनियमितता सहित कई मामले शामिल थे। चुनाव जीतकर कांग्रेस सत्ता में आई। आते ही गहलोत सरकार ने वसुंधरा राजे के कार्यकाल के आखिरी छह महीने के निर्णयों की समीक्षा करवाई। खास बात यह है कि गहलोत द्वारा गठित कमेटी ने सभी को क्लीन चिट दे दी। जबकि विपक्ष में रहते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता शांति धारीवाल ने बीजेपी नेताओं को जेल भेजने तक की बात कही थी। कांग्रेस की गहलोत सरकार बनने के बाद 2019 में धारीवाल की अध्यक्षता में गहलोत सरकार ने कैबिनेट सब कमेटी का गठन किया था। कमेटी में ऊर्जा मंत्री बीडी कल्ला, शिक्षामंत्री गोविंद सिंह डोटासरा, खाद्य आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा को भी शामिल किया गया था। कमेटी की एक साल में करीब एक दर्जन से अधिक बैठकें हुई थीं। 2020 में कमेटी ने वसुंधरा सरकार के 1059 फैसलों को क्लीन चिट दे दी थी। कमेटी के सदस्य मंत्री रमेश मीणा बीजेपी के वरिष्ठ नेता किरोड़ी लाल पर दर्ज मुकदमे खुलवाने की मांग करते रहे, लेकिन इसे भी गहलोत ने खारिज कर दिया था। कई आंदोलनों के दौरान किरोड़ी लाल पर मुकदमे दर्ज हो गए थे। वसुंधरा सरकार ने धारीवाल को पहले क्लीन चिट दी, फिर कहा- मामला बनता है
गहलोत सरकार के दूसरे कार्यकाल (2008 से दिसंबर 2013) में लिए गए अहम निर्णयों की बीजेपी की वसुंधरा सरकार ने भी जांच कराई थी। बीजेपी ने विपक्ष में रहते हुए गहलोत सरकार पर करप्शन के आरोप लगाए थे। विधानसभा चुनाव 2013 के प्रचार के दौरान बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। सत्ता में आने के बाद सख्त कार्रवाई करने के लिए कहा था। चर्चित एकल पट्टा प्रकरण में गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। यह मामला एसीबी कोर्ट, हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक गया। इस मामले में एसीबी ने शांति धारीवाल से भी पूछताछ की थी। 22 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट में जवाब पेश करते हुए राजस्थान सरकार ने इस मामले में सभी को क्लीन चिट दे दी थी। सरकार ने कोर्ट में कहा था कि एकल पट्टा प्रकरण में कोई मामला नहीं बनता है। लेकिन बीजेपी पर दबाव बना कि जिस मुद्दे को लेकर इतना शोर मचाया गया, वह उसमें पीछे क्यों हट रही है। ऐसे में फिर सुप्रीम कोर्ट में अपना स्टैंड बदलते हुए कहा गया कि जो एफिडेविट अप्रैल 2024 में सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया था। उसमें वरिष्ठ अधिकारियों और उनसे सलाह नहीं ली गई थी। कहा कि कांग्रेस विधायक शांति धारीवाल समेत तीन लोगों के खिलाफ मामला बनता है। फिलहाल यह मामला कोर्ट में चल रहा है। 29 जून 2011 में जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने गणपति कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर शैलेंद्र गर्ग के नाम एकल पट्टा जारी किया था। इसकी शिकायत रामशरण सिंह ने 2013 में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में की थी। तत्कालीन वसुंधरा सरकार के समय 3 दिसंबर 2014 को एसीबी ने इस प्रकरण में मामला दर्ज किया। बाद में तत्कालीन एसीएस जीएस संधू, डिप्टी सचिव निष्काम दिवाकर, जोन उपायुक्त ओंकारमल सैनी, शैलेंद्र गर्ग और दो अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी। इनके खिलाफ एसीबी कोर्ट में चालान पेश किया था। एक्सपर्ट बोले- समीक्षा के नाम पर सरकार टाइमपास करती है
राजनीतिक एक्सपर्ट नारायण बारेठ कहते हैं- सत्ता में आते ही पार्टी पिछली सरकार के अंतिम 6 महीने के कार्यकाल के फैसलों की समीक्षा करवाना दस्तूर सा बन गया है। लेकिन इसमें अब तक कुछ भी खास नहीं निकला है। इस समीक्षा से सत्ताधारी का उद्देश्य अपने कार्यकर्ताओं और समर्थन देने वाले मतदाता को बांधे रखा जाए, बस। इससे 6-8 महीने निकाल दिए जाते हैं और अन्य मुद्दों पर लोगों का ध्यान चला जाता है।’