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गुजरात में गिरवी रखे मासूम तक पहुंचा उदयपुर का सरकारी-टीचर:गिरोह के सदस्य गाड़ियां लेकर पीछे पड़े; घबरा कर बच्चों को वापस भेजा

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उदयपुर में एक टीचर ने लीज पर गिरवी रखे मासूम को बदमाशों के चंगुल से छुड़वाया है। जैसे ही बदमाशों को मालूम चला कि टीचर बच्चे को लेने आया है तो उसे जान से मारने के लिए पीछा भी किया। टीचर की मेहनत रंग लाई और घबरा कर बदमाश ने बच्चे को वापस लौटाने के लिए पिता को फोन किया। टीचर ने बताया- उदयपुर के ग्रामीण इलाके के कई ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें माता-पिता ने लीज पर दे रखा है। ऐसे में आगे और जानकारी जुटा कर इसे खत्म करने का काम किया जाएगा। मामला उदयपुर के कोटड़ा के अम्बादेह इलाके का है। अब सुनिए टीचर की जुबानी पूरी कहानी… 45 हजार में गिरवी रखा सरकारी टीचर दुर्गाराम मुवाल उदयपुर शहर के रेलवे ट्रेनिंग राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में तैनात हैं। उन्हें सूचना मिली थी कि अम्बादेह में एक परिवार ने अपने नाबालिग बच्चे को गिरवी रखा है और उसे गुजरात के ईडर भेज दिया है। दुर्गाराम इस परिवार से मिलने वहां पहुंचे तो पूरी कहानी पता चली। यहां आम्बादेह निवासी मिरखा ने तेमी नामक महिला से सगाई की थी और दोनों साथ रहने लग गए। समाज के पंचों ने उनको सामाजिक रीति रिवाज के तहत विवाह करने के लिए कहा। जिसके तहत पंचों ने एकत्रित होकर दापा की रकम (दूल्हे पक्ष को शादी के लिए विभिन्न प्रकार के टैक्स चुकाने) लगभग 45 हजार तय की। इतनी रकम मिरखा के पास नहीं होने से उसने अपने 9 वर्षीय बेटे को 10 महीने पहले किसी रेवड़ रखने वाले के पास 45 हजार रुपए में गिरवी रख दिया और रकम जुटा ली। बच्चे को लेने अकोदरा पहुंचा टीचर दुर्गाराम ने बताया- पिता मिरखा के पास न तो व्यक्ति का पता था न ही कोई जानकारी। सिर्फ एक फोन नंबर था, जिसके जरिए उस व्यक्ति से बात होती थी। ऐसे में, मैंने अपने एक साथी कुणाल चौधरी के साथ बच्चे को लाने का प्लान बनाया। दुर्गाराम ने अपनी टीम के साथी कुणाल चौधरी के साथ बच्चों को लीज पर लेकर जाने वाले व्यक्ति की तलाश शुरू की। किसी और तरीके से फोन करके उस बच्चे के बारे में बातचीत शुरू करके उससे मिलने की इच्छा जताई। तो वो व्यक्ति तैयार हो गया। इसके बाद ईडर (गुजरात) से भी लगभग 100 किलोमीटर दूर अकोदरा गांव में बच्चे से मिलने के लिए बुलाया। सामने वाली आवाज ने उन्हें जंगल में अंदर आने को कहा। जंगल में गुमराह कर भागा युवक दुर्गाराम ने बताया कि वहां जाने के बाद जब वो उस व्यक्ति से मिले तो उसने कहा कि मुझे पहले उस बच्चे के पिता से बात करवाओ। तो मैं आपको उस बच्चे से मिलवा सकता हूं। इस पर दुर्गाराम ने कहा कि हमे उस बच्चे के आपके पास होने की जानकारी मिली है। इसलिए हम बच्चे से मिलने आए हैं। जब दुर्गाराम ने उस व्यक्ति से उसका नाम पूछा तो उसने थोड़ी देर सोचने के बाद अपना नाम मेहुल बताया और अपनी पहचान छुपाने के लिए टोपी और मास्क लगा रखे थे। हाथ में लाठी भी थी। इस दौरान कुणाल ने इसका वीडियो बना लिया था, जब दुर्गाराम ने बार बार उस बच्चे से मिलने के बारे में पूछा तो उसने बोला की आप मेरे साथ चलिए। चरवाहे से पता चला यहां मेहुल नाम का कोई नहीं दुर्गाराम और कुणाल को वह व्यक्ति कई किलोमीटर तक सुनसान कांटों भरे जंगलों में घुमाकर गुमराह करता रहा, जहां दूर दूर तक कोई भी मकान एवं व्यक्ति नजर नहीं आ रहे थे। काफी किलोमीटर चलने के बाद एक झोंपड़ी नजर आई जहां उस बच्चे का होना बताया। इसके बाद दुर्गाराम और उनके साथ कुणाल को वहीं रुकने का इशारा किया। जब काफी देर तक कोई नहीं आया तो दुर्गाराम और उनके साथी झोपड़ी की तरफ गए तो वहां कोई भी नजर नहीं आया। वो व्यक्ति कहीं जाकर छिप गया, काफी देर तलाशने के बाद वहां एक रेवड़ आता दिखाई दिया। तो रेवड़ वाले से मेहुल के बारे में पूछा तो मालूम हुआ की इस क्षेत्र में मेहुल नाम का कोई भी नहीं है। उस शख्स का वीडियो दिखाया तो पहचान लिया दुर्गाराम को अपने साथ धोखा होने का आभास हुआ तो यह अपनी टीम के साथ आसपास के इलाकों में उस व्यक्ति की तलाश में घूमे, जहां उसका वीडियो दिखाकर उसकी पहचान करने की कोशिश को तो उस व्यक्ति की पहचान करणा भाई निवासी अकोदरा बताई और उसके घर का रास्ता बताया। घर तक पहुंचा टीचर दुर्गाराम एवं कुणाल ने उसके बताए पते पर जाकर गाड़ी रोकी, घर के बाहर खड़ी महिला ने उनकी स्थानीय भाषा में बोला की छोकरों को कहीं छिपा दो। दुर्गाराम और कुणाल ने वहां जाकर करणा भाई के बारे में पूछा तो महिला ने कहा कि हम इस नाम के किसी आदमी को नहीं जानते। हमने बच्चों के बारे में पूछा तो महिला बोली की यहां सिर्फ हमारे बच्चे रहते हैं। गाड़ियां लेकर पीछा किया, हमले की कोशिश की दुर्गाराम ने बोला की हम सिर्फ बच्चे से मिलने आए है उसे लेकर नहीं जाएंगे, लेकिन उसने बच्चे से मिलाने से साफ मना कर दिया। जब यह वापस जाने लगे तब तक उसने कुछ और लोगों को बुला लिया जिनके पास लाठियां थी। दुर्गाराम एवं कुणाल लोगों से पुलिस थाने जाने की बोल कर निकले तो उन लोगों ने करीब 10 से 15 किलोमीटर तक गाड़ियों से दुर्गाराम एवं कुणाल की गाड़ी का पीछा किया, इनके ऊपर हमला करने की कोशिश की। बच्चों को लेकर आ रहा हूं, डेढ़ लाख तैयार रखो दुर्गाराम के पास बच्चे के पिता मिरखा का फोन आया कि उस व्यक्ति (करणा भाई) का फोन आया है और बच्चे को लौटाने की बात कह रहा है। दुर्गाराम ने आगे जाकर ऐसे और बच्चों की जानकारी जुटाई तो पता चला की इस तरह के कई आदिवासी बच्चे हैं जिनको उनके माता पिता ने गिरवी रख रखा है।, जिनके साथ गिरवी लेने वाले व्यक्ति बदसलूकी करते हैं उनके साथ मारपीट करते हैं। दुर्गाराम एवं इनके साथी कुणाल ने जांच पड़ताल की तो पता चला की बच्चों के माता पिता को जब और पैसों की जरुरत होती है तो इन बच्चों से मिले बिना ही गिरवी रखे व्यक्ति से ऑनलाइन फोन पर मंगवा लेते हैं। बच्चों को गिरवी रखने के बदले मिली रकम 1500 रुपए महीने के हिसाब से किश्त के रूप में चुकती रहती हैं तब तक बच्चों को वहीं बन्धक बनाकर रखा जाता हैं। दुर्गाराम के इस कार्य की हलचल गिरवी रखने वाले व्यक्ति एवं बच्चों के अभिभावकों तक हो जाने से बच्चों को घर भेजने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इनपुट : दुष्यंत पूर्बिया,ओगणा

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