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चित्तौड़गढ़ में खेतों में बहकर आए टनों वजनी पत्थर:भारी बारिश से तबाही; मगरमच्छों के बीच से निकल रहे बच्चे, कई गांवों में फसलें तबाह

मानसून की बारिश ने चित्तौड़गढ़ के बस्सी में किसानों की उम्मीदें तोड़ दी हैं। तेज बारिश ने पांच से ज्यादा पंचायतों के गांवों में फसलों को बर्बाद कर दिया। अब किसी को चिंता है कि बेटे की शादी कैसे होगी तो किसी की परेशानी है कि उधार लिए रुपए कैसे चुकाएंगे? भारी बारिश के बीच गोपालपुरा पंचायत का एक गांव पानी से घिर गया है। लोगों को मगरमच्छों वाली नदी नाव में बैठकर पार करनी पड़ रही है। उसी नाव में बच्चे स्कूल जा रहे हैं। बारिश से बिगड़े हालात का जायजा लेने के लिए भास्कर टीम मौके पर पहुंची। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… खेतों में फसलों की जगह पत्थरों की चादर बस्सी में कुछ ही घंटों के भीतर 320 एमएम बारिश हुई। नदी-नाले उफान पर आ गए। भास्कर टीम बस्सी से कुछ दूर स्थित पालका गांव पहुंची। खेतों में फसलों की जगह पत्थरों, कंकड़ों की चादर थी। खेतों के बीच गड्ढे हो गए। जो फसल उगना शुरू हुई थी, वह मिट्टी के अंदर दब गई। यहीं नजारा बस्सी पंचायत के गांव से लेकर अमरपुरा के ज्यादातर खेतों में था। ग्रामीणों की माने तो सौ से ज्यादा गांवों में नुकसान हुआ है। 70 फीसदी फसल बर्बाद हो गई। बेटे की शादी की तैयारी थी, अब बीज के पैसे चुकाना भी मुश्किल बस्सी पंचायत के राम चौक में पहुंचे तो खेत में निराश खड़े अख्तर हुसैन ने बताया- हम दो भाइयों की खेती है। 13 बीघा जमीन है। दोनों आधी-आधी जमीन में बुआई करते हैं। अख्तर ने बताया कि मूंगफली और मक्की के बीज बोए थे। दूसरे ही दिन तेज बारिश ने सबकुछ बर्बाद कर दिया। खेत कंकड़-पत्थर और कीचड़ से भर गया। करीब 80 हजार का खर्चा हुआ था। सब पानी में बह गया। सर्दियों में बेटे की शादी करनी है। सोचा था फसल से कमाएंगे, वो शादी में भी लगा देंगे और उधार भी चुका देंगे। अब तो कुछ नहीं बचा है। बारिश से मुनाफे की आस थी, अब कर्जा चुकाने की चिंता किसान कलीमुद्दीन खेत में बर्बाद फसल को देखकर कभी तो सिर पर हाथ रख रुंआसे हो जाते हैं तो कभी कुदाल (खुरपना) लेकर खेत में जमा हुए पत्थरों को हटाने की कोशिश करते नजर आते हैं। कलीमुद्दीन ने बताया कि उम्मीद थी कि बारिश से फसल अच्छी होगी। ढाई लाख से ज्यादा की पैदावार की उम्मीद थी। उधार में खाद-बीज लाए थे। एक लाख रुपए तो खेत में काली मिट्टी डलवाकर समतल करवाने में लगा दिए। फसल होना तो दूर, बीज जमीन में पके तक नहीं। बीज बोते ही आफत बरस गई। खेत में बड़े-बड़े गड्ढे, दोबारा बुआई की हिम्मत नहीं पालका गांव के सत्यनारण धाकड़ के चार बीघा खेत हैं। खेत में बड़े-बड़े गड्ढे हो गए। खेत में जाने वाले गेट पर ही इतना बड़ा गड्ढा है कि अंदर जा ही नहीं सकते। पानी का बहाव कितना तेज है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 20–30 किलो वजनी पत्थर खेत में आ गए। सत्यनारायण ने बताया कि पास के खेत से अंदर जाकर पत्थर हटवा रहे हैं। 20 ट्रॉली मिट्टी बह गई। अब खेत में सिर्फ ओर सिर्फ हमारी बर्बाद मेहनत नजर आती है। पंद्रह दिन से लगातार खेत में काम कर रहा था। अब तो हिम्मत भी नहीं कि वापस बुआई करें। क्योंकि बारिश का कोई भरोसा नहीं है। जेसीबी से हटा रहे मलबा पत्थर, खेत में बिखरी खराब फसल पालका के ही यूसुफ अली के आधे खेत में फसल बर्बाद हो गई। 14 बीघा खेत में मक्की और मूंगफली बोई थी। बारिश ने सब बर्बाद कर दिया। यूसुफ ने बताया कि डेढ़ लाख का तो बीज ही आया था। खेत के चारों तरफ बाउंड्री करवाई थी। दो खेत हैं। तेज बहाव में खेत से मिट्टी, बीज सब बह गए। बाउंड्री टूट गई। उसके पत्थर खेतों में आ गए। पुलिया भी क्षतिग्रस्त हो गई। तीन चार लाख से ज्यादा का नुकसान हो गया। यूसुफ ने बताया कि इन गांवों से दो नाले निकलते हैं। इस बार बारिश के कारण बहाव तेज था, जिसकी वजह से ये नुकसान हुआ। अधिकारी बोले– नुकसान तो हुआ लेकिन भरपाई की गुंजाइश नहीं मामले में तहसीलदार गजराज मीणा ने बताया कि किसानों का नुकसान हुआ है, लेकिन अभी तक बुआई ही की थी। फसलें बड़ी हुई नहीं थी। गिरदावरी रिपोर्ट तो बनी ही नहीं है कि कितनी फसल हुई थी। ऐसे में खराबे का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। इधर, मानसून में नाव से करनी पड़ती है नदी पार अब बात बेगूं के गोपालपुरा पंचायत के गांव सालरिया की। उरई डैम का कैचमेंट एरिया। यहां मानसून में पानी की जमकर अवाक होती है। इसी एरिया के एक छोर पर बसा है सालरिया गांव। चालीस परिवारों की आबादी वाला ये गांव बारिश में दूसरे इलाकों से कट जाता है। मानसून में पानी की इतनी आवक होती है कि 6 महीने नाव चलानी पड़ती है। बारिश में 10 किलोमीटर का पगडंडी का रास्ता बंद हो जाता है। सालरिया के पास ही 23 परिवारों वाला रामपुरिया गांव है। यहां भी मानसून में नाव चलानी पड़ती है। बच्चे स्कूल भी इसी से जाते हैं
सालरिया गांव के रतन सिंह ने 15 हजार रुपए में नाव खरीदी है। बोले- तीन तरफ पानी है। एक पगडंडी है जो दस किलोमीटर की है और हाईवे की तरफ उतरती है। ऐसे में नाव से सफर करते हैं। नदी के दूसरी ओर आमजरिया गांव है। इस गांव में स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र हैं। ऐसे में चिकित्सा और बच्चों को पढ़ने के लिए इसी गांव में नाव से आना पड़ता है। रतन ने बताया कि उनके गांव में पांचवीं तक का एक स्कूल है, लेकिन कोई टीचर ही नहीं आता। मगरमच्छ का भी खतरा
गांव की ख़ेमी बाई ने बताया कि बारिश में जब यहां नदी बहती है तो मगरमच्छ पानी में तैरते हैं। उनके खतरे के बीच आना-जाना पड़ता है। गांव और आमजरिया के बीच पहले एक पुलिया बनाने की बात चली थी, लेकिन कभी वो पूरी नहीं हो पाई क्योंकि उसमें खर्चा ज्यादा था और हमारे गांव की आबादी कम है।

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