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राजस्थान में छात्र संघ चुनाव को लेकर सियासी घमासान बढ़ता जा रहा है। एक ओर जहां सरकार कोई फैसला नहीं कर पा रही है। दूसरी ओर प्रदेशभर में छात्रों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। विपक्ष के नेता सरकार पर उपचुनाव के डर से चुनाव नहीं करने का आरोप लगा रहे हैं। आखिर सरकार छात्रसंघ चुनाव क्यों नहीं करवाना चाहती? एक्सपर्ट के अनुसार इसका बड़ा कारण पिछले चुनाव। दरअसल, 5 बड़ी यूनिवर्सिटी में पिछले 10 साल के छात्रसंघ चुनावों की पड़ताल में सामने आया कि मौजूदा हालात में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ज्यादा मजबूत स्थिति में नहीं है। जयपुर और कोटा में जहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद पिछले 5 साल से अध्यक्ष पद पर खाता तक नहीं खोल पाई है। वहीं, जोधपुर में भी एबीवीपी के हालात ठीक नहीं हैं। जबकि अजमेर और उदयपुर में एनएसयूआई की स्थिति ठीक नहीं है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… राजस्थान यूनिवर्सिटी : 5 साल से निर्दलीय बन रहा अध्यक्ष राजस्थान यूनिवर्सिटी प्रदेश की राजनीति का केंद्र मानी जाती है। यहां पर पिछले 10 साल के छात्र संघ चुनाव की बात करें तो निर्दलीय प्रत्याशियों ने अब तक सबसे ज्यादा 6 बार जीत दर्ज की है। जबकि बड़े-बड़े संगठन होने के बावजूद एबीवीपी और एनएसयूआई के प्रत्याशी अध्यक्ष पद पर महज 2-2 बार जीत हासिल करने में कामयाब हुए हैं। पिछले 5 साल से तो हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि एबीवीपी और एनएसयूआई राजस्थान यूनिवर्सिटी में अध्यक्ष पद पर खाता तक नहीं खोल पाई है। वर्तमान हालात में भी एबीवीपी और एनएसयूआई को टक्कर देने के लिए बड़ी संख्या में निर्दलीय छात्र भी चुनावी मैदान में हैं। कोटा यूनिवर्सिटी : पिछले 5 चुनाव से नहीं खुला एबीवीपी का खाता हाड़ौती में कोटा यूनिवर्सिटी छात्र राजनीति का केंद्र मानी जाती है। पिछले 5 छात्र संघ चुनाव में एबीवीपी यहां खाता भी नहीं खोल पाई है। पांच बार से यहां भी निर्दलीय जीतते आ रहे हैं। पिछले 10 चुनाव की बात करें तो एबीवीपी महज 4 बार ही अपना अध्यक्ष जिता पाई है। एनएसयूआई का रिकॉर्ड तो और भी खराब रहा है। वर्तमान में भी त्रिकोणीय संघर्ष एबीवीपी और एनएसयूआई को परेशान कर सकता है। जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी : SFI दे रही एबीवीपी-एनएसयूआई को चुनौती जोधपुर की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति पिछले 10 सालों में काफी बदल चुकी है। एबीवीपी और एनएसयूआई को जोधपुर में एसएफआई कड़ी चुनौती दे रही है। पिछले 10 चुनाव में जोधपुर में एबीवीपी ने 3, एनएसयूआई ने 3 और एसएफआई ने 3 बार अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की है। वहीं, साल 2019 में जोधपुर यूनिवर्सिटी के इतिहास में पहली बार रविंद्र सिंह भाटी ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की थी। जिसके बाद वह शिव से विधायक बन विधानसभा तक पहुंच चुके हैं। रविंद्र भाटी यूनिवर्सिटी चुनावों में अच्छा प्रभाव रखते हैं। ऐसे में इस बार अगर जोधपुर में छात्र संघ चुनाव होते हैं तो एबीवीपी और एनएसयूआई को फिर से भाटी के समर्थन वाले उम्मीदवार एबीवीपी को सीधी चुनौती देते हुए नजर आ सकते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी : एबीवीपी-एनएसयूआई में बराबर की टक्कर अजमेर की महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी में पिछले 10 चुनाव में एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच सीधी टक्कर रही है। दोनों के प्रत्याशियों ने चार-चार बार जीत दर्ज की है। वहीं, दो त्रिकोणीय संघर्ष में निर्दलीयों ने बाजी मारी है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से छात्र संघ चुनाव जीतने वाले विकास चौधरी (किशनगढ़) अब कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ विधानसभा पहुंच चुके हैं। मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी : बीजेपी के गढ़ में एबीवीपी मजबूत उदयपुर की मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मजबूत स्थिति में है। पिछले 10 चुनाव की बात करें, तो यहां पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उम्मीदवार ने 5 बार अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की है। वहीं एक बार एबीवीपी के प्रत्याशी का निर्विरोध निर्वाचन हुआ है। इसके साथ ही छात्र संघर्ष समिति (CSS) ने दो बार अध्यक्ष पद पर एबीवीपी और एनएसयूआई को शिकस्त देकर जीत दर्ज की है। जबकि महज एक बार एनएसयूआई जीत दर्ज करने में कामयाब हुई है। वर्तमान हालात में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ होने की वजह से सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में एबीवीपी मजबूत स्थिति में नजर आ रही है। एक्सपर्ट बोले- लोकसभा चुनाव के बाद सरकार बचाव की मुद्रा में वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ ने बताया कि छात्र संघ चुनाव के माध्यम से ही जनमत का निर्माण होता है। यही कारण है कि सरकार फिलहाल बचाव की मुद्रा में चुनाव नहीं कराने के मूड में नजर आ रही है। क्योंकि लोकसभा चुनाव में उन्हें हार मिली थी। ऐसे में विपक्ष के नेता प्रदेश में छात्र संघ चुनाव की डिमांड कर रहे हैं। छात्र संघ चुनाव का आम राजनीति पर सीधा और गहरा प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि जो एबीवीपी कांग्रेस राज में छात्र संघ चुनाव कराने की मांग को लेकर आंदोलन कर रही थी वह फिलहाल खामोश है। वहीं जो एनएसयूआई कांग्रेस राज में खामोश बैठी थी, वह बीजेपी सरकार में छात्र संघ चुनाव कराने की मांग को लेकर सड़कों पर संघर्ष कर रही है। क्या उपचुनाव से पहले ABVP की हार का डर! राजस्थान में जल्द पांच सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होंगे। उससे पहले प्रदेश की बड़ी यूनिवर्सिटीज में हार और जीत से ही जनता और युवा वोटर के बीच नैरेटिव बन सकता है। इसलिए सत्ता में रहने वाली पार्टी ऐसे मौके पर जोखिम नहीं उठाती है। पिछली बार जब सत्ता में कांग्रेस सरकार थी। तब उन्होंने चुनावी साल में भारी विरोध के बावजूद छात्र संघ चुनाव पर रोक लगाई थी। ताकि चुनावी साल में आम जनता के बीच किसी भी तरह के परसेप्शन को खराब नहीं हो। वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ का कहना है कि लोकसभा चुनाव में केंद्र में बीजेपी ने ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। राज्य में उन्हें 11 सीटों पर हर का सामना करना पड़ा है। आगे सरकार उपचुनाव में भी जाएगी इसलिए वह राजस्थान में छात्र संघ चुनाव कराने का जोखिम नहीं उठाना चाहेंगे। इसके पीछे वजह है कि अगर छात्र संघ चुनाव में बीजेपी की छात्रसंघ इकाई (एबीवीपी) को हार मिलती है तो विपक्षी दलों को सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का मौका मिलेगा। नेता प्रतिपक्ष बोले- बीजेपी को फिर सता रहा हार का डर राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा कि राजस्थान में बीजेपी सरकार को छात्र संघ चुनाव में ABVP की हार का डर सता रहा है। यही कारण है कि सरकार छात्रसंघ चुनाव नहीं कराना चाहती है। उन्होंने कहा कि बीजेपी़ नेताओं को डर लगता है कि लोकसभा चुनाव के बाद अब अगर छात्रसंघ में भी एबीवीपी हारी तो इनकी असलियत दिल्ली तक पता चल जाएगी। उच्च शिक्षा मंत्री दे चुके इशारा- सरकार चुनाव करवाने के मूड में नहीं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों की धज्जियां उड़ाने को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके थे। उन्होंने कहा था कि छात्रसंघ चुनाव से पहले ही स्टूडेंट इस तरह पैसे खर्च कर रहे हैं। जैसे एमएलए-एमपी के चुनाव लड़ रहे हों। आखिर कहां से पैसा आ रहा है, इतने पैसे क्यों खर्च किए जा रहे हैं। हम इसे पसंद नहीं करते हैं। वहीं उप मुख्यमंत्री डॉ प्रेम चंद बैरवा भी पूर्व सरकार के फैसले पर सहमति जताते हुए फिलहाल छात्रसंघ चुनाव नहीं करने के मूड में नजर आ रहे है। क्या छात्र नेताओं के आक्रोश का डर? राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव मुख्य राजनीति की पहली सीढ़ी माना जाता है। प्रदेश में 24 से अधिक राजनेताओं की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई थी। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, विधायक कालीचरण सराफ, सांसद हनुमान बेनीवाल से लेकर कई दिग्गज छात्र राजनीति से ही चमके हैं। कई बार देखा गया है कि चुनाव में जीतने वाले छात्रनेता भीड़ जुटाकर अपने क्षेत्रों से टिकटों के लिए दावेदारी करते हैं। अगर उन्हें टिकट नहीं दे तो वो पार्टी नेताओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। बताया जा रहा है कुछ विधायकों ने भी उच्च शिक्षा मंत्री से छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने की अपील की थी। शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने कहा कि छात्रसंघ चुनाव का आयोजन होना बहुत जरूरी है। मैं खुद छात्र संघ चुनाव की राह पर चलकर ही आज विधानसभा तक पहुंचा हूं। इसलिए मैं सदैव छात्र संघ चुनाव के आयोजन का पक्षधर रहूंगा। लेकिन सरकार युवाओं की आवाज को दबाने और युवा नेतृत्व को खत्म करने के लिए चुनाव पर रोक जारी रखना चाहती है। जबकि युवाओं को राजनीति में लाने का छात्र संघ चुनाव सबसे बेहतर माध्यम है। आज विधानसभा में बड़ी संख्या में ऐसे विधायक हैं, जो छात्र संघ के माध्यम से सदन तक पहुंचे हैं। इसलिए मैं सरकार से गुजारिश करता हूं कि वह राजस्थान में फिर से छात्रसंघ चुनाव का आयोजन करें। युवा बोले- सरकार को सता रहा पेपर लीक का डर राजस्थान यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले रमेश ने कहा कि यूजीसी नेट और नीट की परीक्षा में हुई धांधली ने देश के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है। जिसका आक्रोश आज भी प्रदेश के लाखों युवाओं के मन में है। यही कारण है कि सरकार फिलहाल छात्रसंघ चुनाव टालने के मूड में है। ताकि नीट और नेट जैसे मुद्दे को पूरी तरह खत्म किया जा सके। राजस्थान यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले कमल चौधरी का कहना है कि सरकार तानाशाही रवैया अपना कर युवाओं की आवाज को दबाना चाहती है। मैंने पिछले कई सालों से छात्रों की आवाज उठाई है। अब जब मेरी उम्र चुनाव लड़ने की आई है, तब सरकार ने इसे स्थगित कर रही है। हम चुप नहीं बैठेंगे, छात्रों के साथ मिलकर सरकार के खिलाफ आर पार की लड़ाई लड़ेंगे। NSUI के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश भाटी ने कहा कि भाजपा सरकार राजस्थान में युवा विरोधी नीति पर काम कर रही है। हमारी पार्टी ने युवाओं की आवाज को मजबूत करने के लिए छात्र संघ चुनाव फिर से शुरू किए थे। लेकिन बीजेपी सरकार ने चुनाव बंद कर आम छात्रों की आवाज को कुचलने का काम किया है। लेकिन NSUI आम छात्रों की आवाज बनकर न सिर्फ राजधानी जयपुर बल्कि, प्रदेशभर में बीजेपी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे और प्रदेश में फिर से छात्र संघ चुनाव शुरू कराकर ही दम लेंगे। राजस्थान यूनिवर्सिटी एबीवीपी के इकाई अध्यक्ष रोहित मीणा ने कहा कि अधिकारियों और यूनिवर्सिटी प्रशासन की लापरवाही की वजह से अब तक एडमिशन प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। एडमिशन प्रक्रिया जब तक पूरी नहीं होगी। तब तक छात्र संघ चुनाव का आयोजन नहीं किया जा सकेगा। हम सरकार से मांग करते हैं कि एडमिशन प्रक्रिया पूरी करने के साथ ही छात्र संघ चुनाव का आयोजन भी करवाया जाएं। ये भी पढ़ें- भाकर बोले- उपमुख्यमंत्रीजी, युवा आपको मुख्यमंत्री मान लेगा:आप तो छात्रसंघ चुनाव करवा दीजिए; कांग्रेस MLA ने कहा- राज-बीवी आने के बाद जाने नहीं चाहिए विधानसभा में उच्च शिक्षा की अनुदान मांगों पर बहस के दौरान कांग्रेस के कई विधायकों ने छात्रसंघ चुनाव करवाने की मांग उठाई। विधायक मुकेश भाकर ने कहा- आज प्रदेश का युवा छात्रसंघ चुनावों की मांग कर रहा है। (पूरी खबर पढ़ें)

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