राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) में फर्जी क्लेम पास करने वाली प्राइवेट एजेंसी मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य (मां) योजना में भी 4 साल से काम कर रही है। भास्कर पड़ताल में सामने आया कि 31 जनवरी, 2025 तक थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर (टीपीए) रही एमडी इंडिया कंपनी ‘मां’ योजना में अस्पतालों की ओर से आने वाले बिलों को जांच रही है। हालांकि, इसमें 3 और कंपनियां शामिल हैं। यहां से बिल पास होने के बाद इंश्योरेंस कंपनी जांच करती है और उसी की ओर से भुगतान होता है। बीते 4 साल में करीब 10 हजार करोड़ के क्लेम पास हो चुके हैं। बता दें कि पूर्ववर्ती गहलोत सरकार की ओर से लागू की गई मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना को भजनलाल सरकार ने नए कलेवर के साथ ‘मां’ योजना के नाम से लागू किया है। इसमें कवर होने वाले लोगों को 25 लाख रुपए तक के कैशलेस उपचार की सुविधा है। इसमें ओपीडी और फार्मेसी कवर नहीं होते हैं। मां योजना में सरकार क्लेम का भुगतान तो नहीं करती है, लेकिन इसके लाभार्थियों के बड़े हिस्से के प्रीमियम का भार वहन करती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम व सामाजिक आर्थिक जनगणना-2011 के लाभार्थियों के परिवारों का 850 रुपए सालाना प्रीमियम सरकार की ओर से जमा करवाया जाता है। लघु व सीमांत कृषक और संविदाकर्मियों के प्रीमियम का खर्च भी सरकार उठाती है। बाकी परिवारों को प्रीमियम खुद देना होता है। योजना पर सरकार पिछले 4 साल में 8,100 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर चुकी है। एजेंसी की गड़बड़ी पकड़ी फिर भी ब्लैकलिस्ट नहीं किया वित्त विभाग की क्वालिटी कंट्रोल एंड परफोरमेंस ऑडिट (क्यूसीपीए) सेल ने टीपीए एमडी इंडिया का ओपीडी, आईपीडी और फार्मेसी के बिल पास करने में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा पकड़ा है। विभाग के सचिव (व्यय) ने राजस्थान स्टेट हेल्थ एश्योरेंस एजेंसी के सीईओ और आरजीएचएस की प्रोजेक्ट डायरेक्टर को सरकार को चूना लगाने वाले टीपीए को हमेशा के लिए योजना में ब्लैकलिस्ट करने के लिए लिखा था, लेकिन उन्होंने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। कंपनी ने बाकायदा टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा लिया। गनीमत रही कि दूसरी कंपनी की रेट कम भरी इसलिए एमडी इंडिया को काम नहीं मिला। योजना में फर्जीवाड़ा पकड़ने के लिए अलग से कोई सेल ही नहीं बड़ा सवाल यह है कि क्या आरजीएचएस में फर्जीवाड़ा करने वाली एमडी इंडिया मां योजना में ईमानदारी से काम कर रही है? स्वास्थ्य विभाग के पास फिलहाल इसका जवाब नहीं है, क्योंकि उसके पास गड़बड़ी पकड़ने के लिए वित्त विभाग जैसी क्यूसीपीए सेल ही नहीं है। इस सेल के एआई टूल्स ने ही आरजीएचएस में फर्जीवाड़ा पकड़ा है। योजना में निजी अस्पतालों के क्लेम खारिज होने की दर मात्र 3.76% है। हेल्थ कवर देने वाली इंश्योरेंस कंपनियों में यह दर 5 से 10% तक रहती है। आरजीएचएस में मात्र 0.8% है।
जांच-पड़ताल:RGHS में फर्जी क्लेम पास करने वाली प्राइवेट एजेंसी मां योजना में भी काम कर रही
