जवाहर कला केंद्र में हुए एक नाटक के बीच पेरेंट्स बच्चों को उठाकर बाहर ले गए। इनका कहना था कि नाटक में गालियां थी। दरअसल, 11 जुलाई से जेकेके में नटराज महोत्सव के तहत ‘द जंप’ नाम के नाटक का मंचन किया गया। डायरेक्टर मनीष वर्मा के इस नाटक में डिप्रेशन, आत्महत्या और अकेलेपन जैसे गंभीर विषयों के साथ बेहिचक गालियां और आपत्तिजनक संवाद भी थे। ऑडिटोरियम में बैठे लोग ठहाके लगाते रहे, लेकिन गालियों के चलते पेरेंट्स को इस पर आपत्ति हुई और वे बीच में ही नाटक छोड़ जाने लगे। इस मामले में जब प्रोग्रामिंग कंसल्टेंट डॉ. चंद्रदीप हाड़ा से बातचीत की तो उनका कहना था- हमने तो टिकट पर 18+ लिखा था। अगर पेरेंट्स बच्चों को लाते हैं, तो हम क्या करें? शो के बीच की एक लाइन – “बताइए, कम कपड़ों वाले और तौलिया लपेटकर लोग दो-दो लाख कमा रहे हैं।” मंच पर एक्ट्रेस दिलनाज ईरानी और एक्टर संजय सोनू एक सीन में लगातार ऐसी भाषा में संवाद बोलते रहे, जिनसे कई लोग असहज हो गए। गालियों से भरा प्ले, मकसद था गंभीर मुद्दा ‘द जंप’ की कहानी आत्महत्या जैसे नकारात्मक विचारों से शुरू होकर एक पॉजिटिव एंडिंग तक जाती है। कहानी में एक महिला कॉर्पोरेट प्रोफेशनल बिल्डिंग से कूदने का फैसला करती है। तभी एक टैक्सी ड्राइवर उसे रोकता है और बताता है कि उसके पिता ने भी आत्महत्या की थी। ड्राइवर उससे बातचीत में यह समझाने की कोशिश करता है कि जिंदगी में मुश्किलें आती हैं, लेकिन उनसे भागने से हल नहीं निकलता। नाटक का मकसद मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिलाना था, लेकिन इसका प्रस्तुतीकरण कई दर्शकों के लिए असहज बन गया। संवादों में खुले तौर पर अपशब्द, मंच से बोला गया: “अब देखना, लड़का लड़की के इमोशनल होने का फायदा उठाएगा।” “अरे छोड़िए, (गाली), बकवास (गाली), कामचोर हैं।” “बताइए, तौलिया लपेटकर दो-दो लाख कमा रहे हैं!” हर तीसरी-चौथी लाइन में गालियां या आपत्तिजनक संदर्भ थे। जिन दर्शकों ने पूरे नाटक का मकसद समझा, उन्होंने इसे थिएटर की भाषा माना, लेकिन परिवारों के साथ पहुंचे दर्शकों को यह अनुभव चुभ गया। नाटककार बोले- आज का थिएटर रियल बोलता है डायरेक्टर मनीष वर्मा ने प्ले को अपने निजी अनुभवों से प्रेरित बताया। वे 2022 में हिमस्खलन से बाल-बाल बचे थे, जिसमें 29 लोग मारे गए थे। इसी घटना के बाद उन्होंने ‘द जंप’ का खाका तैयार किया। उनका कहना है कि “कोविड के बाद अकेलापन एक वैश्विक संकट बना है और थिएटर को इससे जुड़ी बातों को रियल भाषा में कहने का अधिकार होना चाहिए।” थिएटर से जुड़े दिग्गजों ने रखा पक्ष फेस्टिवल के समापन दिन संवाद सत्र में लेखक पूर्णेन्दु शेखर, अभिनेता-लेखक धीरज सरना और थिएटर आर्टिस्ट स्वप्निल जैन ने हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि रंगमंच संघर्ष सिखाता है और हर कलाकार को समाज से जोड़े रखता है। हालांकि इन सत्रों में नाटक के कंटेंट को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की गई।