जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में ‘लोकमाता अहिल्या बाई’ नाटक का मंचन किया गया। स्वाति अरु-अजयकरण के निर्देशन में होने वाले नाटक की कहानी उमेश चौरसिया ने लिखी है जिसकी मंच परिकल्पना शिव प्रसाद तूमू ने की। यह नाटक ऐसी अदम्य साहस वाली महिला के जीवन पर आधारित है जिन्होंने लगभग 300 साल पहले राष्ट्रहित में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया और सदैव अपने राज्य और वहां के लोगों के साथ न्याय, प्रेम का दया का व्यवहार किया। नाटक में कलाकारों ने प्रदर्शित किया कि कैसे अहिल्या बाई होलकर ने कम उम्र में पति, ससुर और पुत्र को खोने के बाद भी अपने साहस और धैर्य से जीवन और शासन की बागडोर को संभाले रखा। उनकी प्रत्येक चुनौती का सामना करने की ताकत और न्यायप्रियता ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। निर्देशक स्वाति अरु-अजयकरण ने बताया कि इस नाट्य प्रस्तुति के माध्यम से लोकमाता अहिल्या बाई के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने का प्रयास किया गया जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। कलाकारों ने यह दर्शाया कि अहिल्या बाई ने किस प्रकार सुख सुविधाओं का त्याग कर अपना जीवन आमजन के प्रति समर्पित कर दिया। नाटक की शुरुआत में मंच पर नदियों की कल-कल सुनाई पड़ रही है। होलकर परिवार नर्मदा मईया को प्रणाम कर शिव की स्तुति करता नजर आता है। इसके बाद राजदरबार लगता है और अहिल्या दरबार में पहुंचती है और कहती है, ‘ शिव, शिव, शिव किसी को पद मिल जाए तो खुद को भगवान समझने लगते हैं। पद का इस्तेमाल भलाई के लिए किया जाना चाहिए न कि अत्याचार के लिए।’ जाहिर है अहिल्या के लिए मालवा की सुरक्षा प्रथम कर्तव्य है। अहिल्या का किरदार दो कलाकारों द्वारा निभाया गया। युवावस्था का किरदार निभा रही स्वरू ने दर्शाया कि कैसे कम उम्र में ही विधवा हो जाने के बाद भी अहिल्या ने धैर्य का साथ नहीं छोड़ा, वह हमेशा अपने लोगों से जुड़ी रही। नाटक के दौरान अहिल्या के राज्य के प्रति प्रेम व निष्ठा को प्रदर्शित करते हुए दिखाया गया कि उन्होंने कारीगरों के लिए घर बनवाए, उनका जीवन बेहतर बनाने में मदद की। माहेश्वरी साड़ी का व्यापार शुरू किया जो न केवल एक व्यवसाय बना बल्कि संस्कृति और परंपरा को बढ़ावा देने का माध्यम भी बना। इस नाटक का मंचन आधुनिक संसाधनों के माध्यम से किया गया।निर्देशक का कहना है कि ऐतिहासिक किरदार को युवाओं तक पहुंचाने के लिए नाटक में विभिन्न सेट एलिमेंट और म्यूजिक का प्रयोग किया गया। पिछले १ महीने से तैयारी कर रहे 25 कलाकारों ने मंच पर यह नाटक सफल बनाया। नाटक के माध्यम से अहिल्या बाई के राजघराने से घाट तक के सफर को दृश्यों में पिरोकर दर्शाया गया। उन्होंने राष्ट्र के उद्धार के लिए स्वयं का जीवन इतना सरल व आम बना लिया कि लोग उनके पास आकर अपनी समस्त सुख संपत्ति को सौंप देना चाहते थे लेकिन उन्होंने सभी को प्रेरणा दी कि वह यह वैभव आमजन के लिए कुएं, बावड़ी, मंदिर बनवाने में उपयोग करें। सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार करने के दृश्य ने दर्शकों को संवेदनशील कर दिया। इतने वर्षों पूर्व महिलाओं में स्वयं के प्रति इतना स्वावलंबी व स्वतंत्र होना कोई आम बात नहीं थी ऐसे में यह दृश्य देखने वालों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया। नाटक के दूसरे हिस्से में अहिल्या का किरदार कलाकार पूजा ने निभाया। यह प्रस्तुति अभिनय गुरुकुल, जोधपुर की ओर से दी गई। नाटक: अहिल्याबाई होलकर
डायरेक्टर: स्वाति व्यास, अजयकरण जोशी
सेट डिजायनर: शिम्भू जी
स्टेज मैनेजर: तनुज ताक
कॉस्ट्यूम: राहुल सेन, ख़ुशी व्यास
प्रॉप्टी: द्रवित सिंह, स्वरू व्यास
म्यूजिक: यश, अनिरुद्ध, राघव मंच पर कलाकार:
अहिल्याबाई – पूजा जोशी
तूकोगी – कमल
मल्हारराव – कृष्ण कांत
गंगोबा – मुकुंद जांगिड
छोटी अहिल्या/बुनकर महिला – स्वरू व्यास
दरबारी/सैनिक – योगेश विश्नोई
मालेराव – लवजीत शर्मा
भील/सूत्रधार/बुनकर पुरुष – अंश बंसल
भील/सेनापति – राहुल सेन
बूढ़ा आदमी/दरबारी/हरबा/बुनकर पुरुष – द्रवित सिंह
राघोबा/सूत्रधार/बुनकर पुरुष – पंकज पुरोहित
पंडित/ब्राह्मण – आदित्य व्यास
नन्नूआ/सूत्रधार/कवि फंदी – लक्ष्मण चौहान
गांव महिला/विधवा महिला – ख़ुशी व्यास
गांव पुरुष/सैनिक – विशाल
गांव पुरुष/सैनिक – प्रशांत
गांव महिला/बुनकर महिला – शैलजा
सेविका/सैनिक अहिल्याबाई – प्रियंका
सेविका/सैनिक अहिल्याबाई – लिपक्षी
गांव पुरुष/सैनिक अहिल्याबाई – कृष्णा प्रजापत
विधवा महिला/बुनकर महिला – हर्षा जी
हरकुंवर/बुनकर महिला – वसुंधरा