पोलिंग बूथ पर उपखंड अधिकारी (SDM) को थप्पड़ मारने वाले नरेश मीणा 8 महीने बाद 14 जुलाई को जेल से बाहर आ गए। थप्पड़कांड में जमानत के बाद 11 जुलाई को राजस्थान हाईकोर्ट ने समरावता हिंसा केस में भी उन्हें जमानत दी थी। रिहाई के बाद नरेश सबसे पहले समरावता गांव में पहुंचे थे और इसके अगले दिन खाटू श्याम मंदिर धोक लगाने गए थे। बुधवार को नरेश ने दैनिक भास्कर ऑफिस पहुंचे थप्पड़कांड, सीएम से लेकर अपने पॉलिटिकल करियर पर बात की। पढ़िए- एक्सक्लूसिव इंटरव्यू … सवाल : एसडीएम थप्पड़ कांड और समरावता में हुई हिंसा, क्या अपने किए पर कोई पछतावा होता है? जवाब : देखो लोकतंत्र में इस तरह की चीजें जायज नहीं हैं। लेकिन मेरे चुनाव के उन दो-तीन दिन हालात कुछ ऐसे थे कि मैं बेचैन और हताश हो गया था। कोई भी हमारी बात सुन नहीं रहा था। मेरे कार्यकर्ताओं को परेशान किया जा रहा था। मेरे वोटरों को रोका जा रहा था। बैलेट पेपर को इस तरह से तैयार किया गया था कि मेरा चुनाव चिन्ह ही नजर नहीं आ रहा था। फिर अचानक मुझे समरावता गांव में चुनाव बहिष्कार की जानकारी मिली। वहां पूरा गांव अपनी मांगों को लेकर बैठा था तभी अचानक हल्ला हुआ कि अधिकारी जबरदस्ती वोट डलवा रहे हैं। इसके बाद मैं भी पोलिंग बूथ पर गया और अचानक से ये सब घटना हो गई। हालांकि अब जेल जाने के बाद और 8 महीने अंदर रहने के बाद मैंने काफी आत्म चिंतन किया। सवाल : हर बार नरेश बागी क्यों हो जाता है, कई नेता भी आपको लेकर ऐसा कहते हैं कि ये साथ छोड़ देता है? जवाब : मैं तो जिसके भी साथ रहा हूं, अपनी पूरी ईमानदारी और ताकत से रहा हूं। लेकिन आजकल पॉलिटिक्स में सभी नेता द्रोणाचार्य हैं। उन्हें प्यारा तो अर्जुन लगता है,ृ लेकिन अंगूठा कटवाने के लिए एकलव्य चाहिए। मैंने आज तक सभी को दिया ही है, लेकिन उसके बदले किसी भी नेता ने मुझे आज तक क्या दिया है? अगर कोई ये कहे कि मैंने नरेश को संगठन में पद या चुनाव का टिकट दिलवाया और इसके बाद भी साथ छोड़ दिया तब मैं मेरी गलती मानूं। मेरे पास शायद वो तामझाम नहीं जो बड़े नेताओं को चाहिए होता है। मैंने तो सबको आज तक वफा ही की है। उन पर अपना सब कुछ न्योछावर भी कर दिया था। सवाल : आपको क्यों लगता है कि कोई भी नेता आपका साथ क्यों नहीं देता है ? जवाब : मैंने छबड़ा में विधानसभा का टिकट मांगा, नहीं दिया। इसके बाद मैंने दौसा मांगा, नहीं दिया। आखिर में मैंने देवली-उनियारा में टिकट मांगा, लेकिन वहां पर भी एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया जो दो दिन पहले तक भारतीय जनता पार्टी का प्रचार कर रहा था। उसे अचानक से लाकर टिकट दे दिया गया। वो एक बड़ी कंपनी का सीईओ था, ऐसे में कोई बड़ा ही लेन-देन हुआ था। अब आप ही बताइए उस स्थिति में मैं क्या करता? राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए बागी होने की जरूरत है तो बागी तो होना ही पड़ेगा। मैं अगर छबड़ा और देवली-उनियारा के चुनाव लड़कर इतना जन समर्थन नहीं जुटाता तो नरेश को कौन जानता? ये 45 हजार और 60 हजार वोट पहचान के गवाह हैं। सवाल : इतनी लंबी जेल की वजह क्या मानते हैं, कोई साजिश थी क्या? जवाब : देखो इसमें कई चीजें हैं। शुरुआत में तो वहां के सांसद और पूर्व डीजीपी हरीश मीणा का बढ़िया आशीर्वाद मिला (तंज कसते हुए), उनकी पुलिस में भी पकड़ थी। दूसरा हाड़ौती के वो धन्नासेठ जो राजनीति का व्यापारीकरण करने में लगे हैं और उनके खिलाफ मैं लड़ रहा था तो उन सब ने अपनी पूरी एनर्जी लगा दी। उन्होंने ही ये तय किया कि नरेश पर कौन सी धारा लगानी है और किस-किस पर मुकदमे दर्ज करने हैं और किस तरह नरेश की हालत कर दी जाए कि ये कभी चुनाव ही नहीं लड़ पाए। ये पूरी स्क्रिप्ट पहले से लिखी हुई थी। एक ही घटना के चार मुकदमे दर्ज किए गए और 60 दिन के अंदर ही चालान पेश कर दिया। उनका प्लान था कि नरेश के जेल में रहते-रहते ही कोर्ट से इसकी सजा का फैसला भी हो जाए। ताकि ये कभी बाहर ही नहीं आ पाए। सवाल : अब 8 महीने बाद जमानत मिली है, कहीं सरकार से कोई समझौता तो नहीं हुआ? जवाब : धन्यवाद दूंगा प्रह्लाद गुंजल को जिनके नेतृत्व में बड़ा आंदोलन हुआ। इसके बाद 25 फरवरी को जो विधानसभा घेराव होना था, उसका इनपुट जब सुरक्षा एजेंसियों ने सरकार को दिया कि घेराव में 5 लाख लोग आ सकते हैं। इससे सरकार बैकफुट पर आई। मेरे पिता काफी विचलित थे, उन्हें लगता था कि नरेश की हत्या का षड्यंत्र हो रहा है। लोगों को पता नहीं होगा कि समरावता घटना के बाद इन लोगों ने मेरा पेट्रोल पंप बंद कर दिया। मेरी मां सरपंच हैं, उनके खिलाफ कई जांच बैठा दी। इन परिस्थतियों में जब मुख्यमंत्री के यहां से समझौते की पेशकश हुई तो मेरे पिता वहां गए। CM भजनलाल ने उन्हें सम्मान सहित 45 मिनट तक बात की। सीएम साहब ने तब उन्हें कहा कि सभी मुकदमे वापस ले लेंगे, समरावता में पीड़ितों को पैकेज देंगे और नरेश को भी हम 30 मार्च से पहले रिलीज करा देंगे। इसके बाद उन्होंने मुआवजा भी बनवा दिया और मुआवजा बंटा भी है। अब वो कम ज्यादा है तो उसके लिए फिर उनसे बात कर लेंगे। सवाल : कोर्ट ट्रायल के दौरान आपने मीडिया से ये क्यों कहा कि भजनलाल शर्मा वादाखिलाफी कर रहे हैं? कौनसा वादा किया था? जवाब : मेरे पिताजी के सीएम साहब से मिलने के बाद 30 मार्च की डेडलाइन निकल गई थी। मुझे रिलीज नहीं किया गया और न ही मुकदमे वापस हुए। मुझे लगा कि मेरे साथ धोखा हो रहा है। तब ही मैंने ऐसा कहा था। आज जब मैं इंटरव्यू दे रहा हूं और मैं अपनी रिहाई के लिए सीएम साहब को धन्यवाद दूं तो जनता मुझे गालियां निकालेगी। वो कहेंगे कि इसने भी सत्ता से समझौता कर लिया है। पर मैं सच्चा और ईमानदार हूं। सीएम साहब ने मेरी मदद की और इसी वजह से मैं जेल से बाहर आया हूं। सीएम ने अपना वादा निभाया। वो मुख्यमंत्री को मीणा समाज में बदनाम करने गए थे। लेकिन मैं ईमानदारी और सच्चाई से कह रहा हूं कि भजनलाल जी ने अपना धर्म निभाया। इस मामले में मेरी मदद बीजेपी के एक मर्द विधायक शत्रुघ्न गौतम ने भी की। सवाल : आपके हिसाब से कौनसे नेता अधर्म कर रहे थे? जवाब : सारी राजनीति हाड़ौती और कोटा से जुड़ी हुई है। मैंने प्रह्लाद गुंजल का साथ दिया था। मेरे ही प्रयास थे कि स्पीकर साहब (ओम बिरला) जहां कोटा में 5 लाख से जीत रहे थे वो इस बार 40 हजार के मार्जिन पर ही अटक गए। उसी का ये परिणाम था। यही कारण है कि स्पीकर साहब नहीं चाहते थे कि नरेश राजनीति में रहे। मेरे समाज के भी कई लोग थे, 2 अभी सांसद बने हुए हैं। उन लोगों ने मुझे खत्म करने का प्रयास किया। मीणा समाज में नए लोगों को मौका मिल रहा है। यहां तो उन्हीं जमे हुए नेताओं का ठेका है कि बस उनके बच्चे ही नेता बनेंगे। उन्हें इस बात की ही टेंशन है। इतने बड़े समाज में सिर्फ ओम प्रकाश हुडला और इंदिरा मीणा ने ही मेरी मदद की है। इसके अलावा प्रह्लाद गुंजल, प्रताप सिंह खाचरियावास, विजय बैंसला, करनी सेना के महिपाल सिंह, सत्यपाल सिकरवाल, बाबूलाल झंडेवालान, अतुल प्रधान और कई एडवोकेट्स ने भी मेरी मदद की। बिना फीस लिए हाईकोर्ट में मेरा केस लड़ा। सवाल: आपकी रिहाई की टाइमिंग और अंता में संभावित उपचुनाव इन दिनों चर्चा में हैं? इसको लेकर क्या सोचते हैं? जवाब : नरेश मीणा समझौतावादी नहीं है। आंदोलन था, इसी के चलते सरकार ने जन दबाव के बाद मेरे पिता और मेरे लोगों को बातचीत के लिए बुलाया था। सीएम ने वादा किया और प्रयास किया। इसके लिए उन्हें धन्यवाद देता हूं। रही बात राजनीति कि तो इसमें तो मैं वहीं करूंगा जो जनता मुझ से चाहेगी। अभी बाहर आया हूं, लोगों से मिलूंगा। समरावता में भी अभी पूरा न्याय नहीं मिला है। वहां की समस्याओं को लेकर सीएम साहब से समय लूंगा। वो समय देते हैं और उन्हें सुलझाते हैं तो ठीक, नहीं तो नरेश मीणा एक बार फिर उसी ताकत और तेवर के साथ सड़कों पर उतरेगा। अंता में फिलहाल तो उपचुनाव को लेकर कोई निर्णय हुआ नहीं है। ये तय है कि अब अंता का चुनाव कहीं न कहीं नरेश मीणा के ही इर्द-गिर्द रहेगा। किसी भी पार्टी के पास नरेश मीणा अब भीख मांगने नहीं जाएगा। सवाल : प्रमोद जैन भाया से आपकी अदावत किसी से छुपी हुई नहीं है। अब भाया, अंता उपचुनाव व हाड़ौती की राजीनीति को लेकर आपके दिमाग में क्या चल रहा है? जवाब : राहुल गांधी जातीय जनगणना और जातीय संख्या के आधार पर ही प्रतिनिधित्व की बात करते हैं। लेकिन जो वो चाह रहे हैं वो राजस्थान कांग्रेस में हो रहा है क्या? राजस्थान में 13 फीसदी आदिवासी हैं लेकिन जब राहुल यहां आते हैं तो उनके मंच की फ्रंट लाइन में एक भी आदिवासी नेता नहीं होता है। दूसरी तरफ वो प्रमोद जैन भाया झालावाड़-बारां में 7 टिकट बांटता है जिसके पास अंता में खुद के 500 वोट भी नहीं है और उसका पूरा समाज बीजेपी का वोटर हैं। वहां नरेश मीणा भीख मांगता है जिसका 30 सीटों पर असर है और जिसकी कौम 90 फीसदी से ज्यादा कांग्रेस को वोट देती है। मेरा पूरी राजस्थान कांग्रेस को चैलेंज है जिन्होंने उस भाया को वहां मुखिया बना रखा है- वो अपना मंच लगा लें और नरेश अपना मंच लगाएगा, वहीं बता दूंगा कि बारां में जन समर्थन और ताकत किसके पास है। राजकुमार रोत एनएसयूआई का अध्यक्ष रहा है। अगर कांग्रेस मालवीया और रघुवीर मीणा जैसों के चक्कर में नहीं पड़ती और राजकुमार को समय से पहचान कर टिकट दे देती तो आज वहां कांग्रेस जिंदा रहती। भाया की मेहरबानी से छबड़ा चुनाव लड़ने से पहले ही मेरे पर राजपासा लगा हुआ था। इस मामले में मुझे साल भर अंदर रहना पड़ता था। कोई जमानत भी नहीं मिलनी थी। ये हाड़ौती के उन धन्ना सेठों का ही प्लान था कि मैं राजपासा से बचने के लिए फरारी काट रहा था और तभी मैं फॉर्म भरने छबड़ा आता हूं। मुझे पुलिस नहीं पकड़ती है और आराम से फॉर्म भरने दिया जाता है। चुनाव भी हो जाता है। यहां ये गौर करने वाली बात थी कि जब राजपासा मेरे पर थी और मैं वांटेड था तो मुझे पकड़ा क्यों नहीं गया था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तब मेरे चुनाव लड़ने में भाया और प्रताप सिंह का फायदा था। इनका प्लान था कि नरेश के चुनाव लड़ने से कांग्रेस वहां हारेगी और प्रताप सिंह चुनाव जीत जाएगा। इसके बाद जो भी सरकार आएगी उसमें भाया या प्रताप सिंह दोनों में से एक मंत्री बनेंगे और नरेश को रगड़ देंगे। लेकिन लोगों ने 45 हजार वोटों का आशीर्वाद मुझे दिया। इसके बाद किसी की ऐसी हिम्मत नहीं हुई कि कोई नरेश मीणा को हाथ भी लगा दे। सवाल : नरेश मीणा चप्पल कब पहनेंगे? जवाब : मैंने एक मन्नत मांग रखी है और जिस दिन ईश्वर उस मन्नत को पूरा कर देगा तभी मैं चप्प्पल को पहन लूंगा। …. नरेश मीणा से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए… थप्पड़कांड पर नरेश मीणा बोले-आवेश में आकर घटना हुई,अफसोस है:25 साल से राजनीति में हूं, बड़ा पद नहीं मिलने से निराश था SDM को थप्पड़ मारने वाले नरेश मीणा ने कहा- वह घटना (थप्पड़कांड और समरावत हिंसा) जो हुई थी, वह तात्कालिक थी। उस समय वहां जो कंडीशन बनी, वह दुर्भाग्यपूर्ण थी। पूरी खबर पढ़िए…