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जोधपुर में निकली 633 साल पुरानी रावजी की गेर:तीन किलोमीटर का रास्ता पार करने में लगे पांच घंटे, माली समाज के हजारों लोग हुए शामिल

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शहर के मंडोर क्षेत्र में 633 साल से चली आ रही परंपरा के तहत धूलंडी के दिन ‘रावजी की गेर’ निकली, तो इसमें माली समाज के 8 बेरों के हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। हर बार की तरह इस बार भी रावजी की गेर में सदियों पुरानी परंपरा के साथ अनुशासन का संगम भी बरकरार दिखा। इसमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत ने भी शिरकत की और समाज के माली युवाओं के साथ ढोल बजाकर परंपराओं का निर्वहन कर रहे लोगों को भी इसके लिए बधाई दी। शुक्रवार दोपहर बाद मंडावता बेरा मंदिर चौक से पूजा अर्चना के साथ शुरू हुई रावजी की गेर, मंडावता चौराहा, भियांली बेरा, गोपी का बेरा, फतेहबाग होते हुए मंडोर गार्डन काला-गोरा भैरूजी मंदिर के पास नागकुंड तक निकाली गई। करीब तीन किलोमीटर की यह दूरी पूरी करने में तकरीबन पांच घंटे लगे। इसमें चंग की थाप पर थिरकते गेरियों की टोलियां और फाग गीतों में युवाओं का जोश व उत्साह देखते ही बन रहा था। इस दौरान मंडावता बेरा के युवाओं में जगदीश गहलोत, रविंद्र गहलोत, कुलदीप गहलोत, मुकेश गहलोत सहित वरिष्ठजनों की टीम ने रावजी के चारों ओर सुरक्षा घेरा बनाए रखा और रावजी को सुरक्षित मंडोर कुंड तक पहुंचाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाते चले। पुलिस नहीं, अनुशासन से बनी रहती है व्यवस्थाएं सदियों से चली आ रही इस पारंपरिक गेर में हजारों लोगों की मौजूदगी रहती है, लेकिन इस दौरान व्यवस्थाएं बनाए रखने में समाज का अनुशासन सबसे अहम रहता है। मंडोर खास के वीरेंद्र देवड़ा कहते हैं कि इस मेले में समाज के लोगों का स्वप्रेरित अनुशासन और आयोजन से जुड़े युवाओं की टीम को समाज के वरिष्ठजनों से मिलने वाला मार्गदर्शन अहम भूमिका निभाता है। यही वजह है कि इस मेले के दौरान पुलिस या प्रशासन को कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ती। 8 बेरों के समाजसेवी व्यवस्था करते हुए आगे-पीछे चलते हुए पूरे आयोजन पर नजर रखते हैं। परंपरा के अनुसार बेरों के लोग आगे रहते हैं, वे आज भी आगे ही चलते हैं, कोई भी युवा दूसरे बेरों से आगे नहीं जाते।

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