kheti kissani cover 2 1752763390 UM7Xmy

जोधपुर का केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान यानी काजरी (CAZRI) संस्थान देश को बताएगा कि देश के किस कोने की मिट्‌टी सोना उगलेगी। जी हां, काजरी संस्थान में मृदा परीक्षण की नई तकनीक पर काम चल रहा है। इसके लिए देशभर से मिट्‌टी के 3600 सैंपल जुटाए गए हैं। इन पर डिजिटल टेक्नीक से रिसर्च के जरिए पता चलेगा कि मिट्‌टी में कितने मिनरल्स हैं। यह कितनी उपजाऊ है या किन तत्वों की कमी है। कौन सी खाद और कौन से तत्व मिलाने पर इसकी गुणवत्ता बढ़ जाएगी। इस मिट्‌टी में कौन सी फसल बोने पर यह सोना उगलेगी। परंपरागत विधि में मृदा परीक्षण की रिपोर्ट किसान को 6 से 7 दिन में मिलती है। लेकिन डिजिटल तकनीक से यह रिपोर्ट कुछ सेकेंड में मिल जाएगी। किसानों का कहना है कि इससे फायदा होगा। पता चलेगा कि खेत में कौन सी फसल बो सकते हैं। म्हारे देस की खेती में इस बार बात काजरी में मृदा परीक्षण के नए रिसर्च की…. भारत के किसान के सामने सबसे बड़ी दुविधा यह रहती है कि वह अपने खेत में कौनसी फसल उगाए, जिससे मुनाफा हो। कई बार जानकारी के अभाव में किसान खेती की शुरुआत तो करता है। लेकिन अच्छा उत्पादन नहीं होने से उसके समय, मेहनत और धन की बर्बादी होती है। लेकिन अब जोधपुर का केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान यानी काजरी संस्थान ऐसे रिसर्च में जुटा है। जिस पर आधारित प्रोजेक्ट मार्च 2026 में पूरा होने वाला है। मिट्‌टी परीक्षण की डिजिटल तकनीक पर यह रिसर्च हो रहा है। इसकी रिपोर्ट कुछ सेकेंड में आ जाती है। इससे किसान को तुरंत पता चल जाएगा कि खेत में वह कौनसी फसल उगा सकता है। काजरी संस्थान कर रहा देश के 6 सेंटर्स को लीड काजरी (CAZRI) के प्राकृतिक संसाधन विभाग के मुख्य वैज्ञानिक डाॅ. पीबी सांतरा ने बताया- काजरी के नेतृत्व में देशभर के 6 प्रमुख कृषि संस्थान (दिल्ली, भोपाल, नागपुर, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, जोधपुर) ने देश के कोने-कोने से मिट्टी के सैंपल जुटाए। ये सभी सैंपल काजरी की लैब में लाए गए हैं। इन पर काजरी में डिजिटल तकनीक से रिसर्च किया जा रहा है। आधे से ज्यादा सैंपल पर रिसर्च हो चुका है। यह प्रोजेक्ट मार्च 2026 में पूरा हो जाएगा। डाॅ. पीबी सांतरा ने बताया- डिजिटल तकनीक से मिट्‌टी जांच का सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि किसान को पता चल जाएगा कि उसके खेत की मिट्‌टी किस फसल के लिए बेहतर है। खेत में कौन सी खाद या मिनरल्स डालने पर उसकी कमी पूरी हो सकती है। उसमें सिंचाई की कितनी जरूरत है। मिट्‌टी में क्या गुण-दोष हैं। यह सब एक मिनट से भी कम समय में पता चल जाएगा। सॉइल हेल्थ कार्ड स्कीम का मकसद होगा पूरा डाॅ. पीबी सांतरा ने बताया- केंद्र सरकार ने देशभर के किसानों के लिए साॅइल हेल्थ कार्ड स्कीम चला रखी है। स्कीम के तहत किसान नजदीकी लैब में मिट्‌टी की फ्री जांच कराते हैं। वर्तमान में यह जांच करवाने के लिए किसान को एक सप्ताह या उससे अधिक समय लग जाता है। मिट्‌टी का सैंपल लैब लाने से लेकर एनालिसिस करने तक में काफी समय लग जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए नेशनल एग्राीकल्चर सांइस फंड (NASF) की ओर से डिजीटल जांच को बढ़ावा देने पर विचार हुआ। देश को अलग-अलग जोन में बांटा पूरे प्रोजेक्ट को काजरी लीड कर रहा है। मिट्‌टी के सैंपल जुटाने के लिए देश को अलग-अलग जोन में बांटा गया। हर कृषि संस्थान ने मिट्‌टी के सैंपल जुटाकर काजरी भेजे। काजरी में देशभर से 3600 सैंपल पहुंचे। इसके बाद नेशनल एग्राीक्लचर सांइस फंड (NASF) से मिले फंड से सॉइल टेस्ट के लिए डिजिटल उपकरण और मशीनरी के साथ लैब के लिए जरूरी उपकरण खरीदे गए। इनसे मिट्‌टी को स्कैन कर रिफ्लेक्शन के जरिए मिट्‌टी के तत्वों की जांच की जाती है। स्कैन होते ही लैपटॉप पर 5 से 10 सैकेंड में मिट्टी की रिपोर्ट का ग्राफ तैयार हो जाता है। इस तकनीक से किया जा रहा मृदा परीक्षण काजरी के सीनियर रिसर्च फैलो तुषार बंदेर ने बताया-हमारे पास मिट्‌टी के जो सैंपल आते हैं उन्हें हम एक कोड देकर रख लेते हैं। इस मिट्‌टी को डायरेक्ट स्कैन नहीं किया जाता। मिट्‌टी में मोटे कण, कंकड़ और दूसरे पदार्थ अलग कर लेते हैं। मिट्‌टी की नमी को पूरी तरह सुखा लिया जाता है। इसके बाद लकड़ी की खरल (ओखली) में कूट कर बारीक किया जाता है। इसके बाद चलनी से छानकर मिट्‌टी का सैंपल जार में भर दिया जाता है। इसके बाद इस जार से ढक्कन में मिट्‌टी को लेकर स्कैन किया जाता है। उन्होंने लैब में रखे सैंपल दिखाते हुए कहा- ये देखिये, ये सैंपल सिक्किम तक से आए हैं। देश के बड़े 6 कृषि संस्थाओं की ओर से जुटाए गए ये सभी सैंपल यहां जार में रखे हैं। उन्होंने- स्कैन का तरीका समझाते हुए कहा- स्पेक्ट्रम रेडियोमीटर मशीन के ट्रायपॉड के नीचे सैंपल रखा जाता है। सैंपल के ऊपर मशीन से लाइट गिरती है। कमरे में पहले ही अंधेरा कर लिया जाता है ताकि स्कैन सही ढंग से हो। यह स्कैन कुछ सेकेंड में लैपटॉप में कनेक्ट ऐप के जरिए ग्राफ पर आने लगता है। मिट्‌टी में क्या तत्व, तुरंत पता चलेगा ये सब उपकरण ब्लूटूथ के जरिए आपस में जुड़े हैं। स्पेक्ट्रम रेडियोमीटर में जो रीड़िंग आएगी वो ब्लूटूथ के जरिए ऐप से लैपटॉप में पहुंचेगी। सैंपल की रीडिंग से एक स्पैक्टर (ग्राफ) बन जाएगा। अलग-अलग मिट्‌टी की अलग-अलग रेखाएं बनती हैं। ग्राफ के आधार पर सभी कंटेंट (तत्व) लिखे होते हैं। वर्टिकल माप पर तत्व की मात्रा को दर्शाया जाता है। इससे पता चल जाता है कि मिट्‌टी में लवण की मात्रा कितनी है, जिंक-फास्फोरस कितना है, किस तत्व की कितनी कमी है। मिट्‌टी में कौन सी खाद डाली जाए। या किस खेती के लिए यह मिट्‌टी सबसे उपयुक्त है। ये मानिये कि यहां मिट्‌टी के एक एक कण की जांच हो जाती है। उन्होंने बताया- हर डेटा को हमें कंप्यूटर में सेव करना होगा। इसके बाद मॉडल बनाया जाएगा और एक रिपोर्ट अटैच कर दी जाएगी। किसान को आसान भाषा में समझ आ जाएगा कि उसकी मिट्‌टी की रिपोर्ट कैसी है। सीनियर रिसर्च फैलो तुषार बंदेर ने दीवार पर लगे दो मैप दिखाते हुए बताया- मैप पर अंकों के जरिए एक एक तत्व के बारे में डिटेल दी गई है। मिट्‌टी के पीएच मान के अंकों को स्पष्ट किया गया है। इससे पता चल जाएगा कि पीएच मान कम है या ज्यादा। सूक्ष्म कार्बन कण कितने हैं। कंप्यूटर इसे रीड करेगा और मिट्‌टी के गुण-दोष बता देगा। वर्तमान में मृदा जांच में लगते हैं 7 दिन डाॅ. पीबी सांतरा ने बताया- वर्तमान में जो साॅइल टेस्टिंग देशभर में चल रही है उसमें किसान खेत में पांच जगह से गहराई से मिट्टी लेता है। इसका वजन करीब 500 ग्राम होता है। इसके बाद उसे नजदीकी मिट्‌टी परीक्षण लैब में लेकर जाता है। जहां मिट्‌टी की लवणता, फाॅस्फोरस, नाइट्रोजन आदि की जांच अलग-अलग की जाती है। इसके अलावा मिट्टी का पीएच मान, ईसी सहित कुल 6 पैरामीटर पर जांच होती है। इस पूरी प्रक्रिया में किसान को लगभग सप्ताह भर इंतजार करना पड़ता है। जोधपुर कृषि विभाग की सॉइल टेस्टिंग लैब के ही ये हाल हैं कि किसानों की भीड़ लग जाती है। जरूरत पर तुरंत जांच नहीं होने से कई किसान मृदा जांच से बचते हैं। बारिश के दिनों में बड़ी तादाद में किसान लैब पहुंच जाते हैं। ऐसे में मिट्‌टी की जांच के लिए कतारें लग जाती हैं। ऐसे में प्रोसेस और लंबी हो जाती है। काजरी संस्थान में अब हम पुराने और नए मैथड की एक्यूरेसी पर रिसर्च कर रहे हैं। देख रहे हैं कि दोनों तकनीक की एक्यूरेसी में क्या फर्क आ रहा है। रिसर्च का काम जारी है। भविष्य में किसानों को होगा बड़ा फायदा डाॅ. पीबी सांतरा ने बताया- प्रोजेक्ट की रिपोर्ट आने के बाद भविष्य में किसानों को अपने खेत में किस तरह की मिट्टी है, इसकी जांच रिपोर्ट सेकेंड्स में मिल जाएगी। किसान को हाथों-हाथ पता चल जाएगा कि खेत में कितनी मात्रा में खाद डालें, कौन सी फसल उगाना बेहतर रहेगा-गेहूं, कपास, बाजरा, मूंग या कुछ और। मान लीजिए मिट्‌टी में लवण की मात्रा ज्यादा है तो वह खजूर की खेती में हाथ आजमा सकता है। खास तौर पर उन किसानों को फायदा होगा जो खेती बारिश के भरोसे करते हैं। उन्हें अब तकनीक के जरिए यह पता लग सकेगा कि उनके खेत में किस तरह की फसल बोई जाए जो उनके लिए फायदेमंद रहेगी। जोधपुर के किसान भलाराम पटेल (52) ने बताया- मैं 20 साल से खेती कर रहा हूं। बारिश के भरोसे रहता हूंं। काजरी का यह प्रोजेक्ट सफल हुआ तो किसानों को बहुत फायदा होगा। —————- खेती-किसानी से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें आम ने बदली किसान की किस्मत,हर साल लाखों की कमाई:आंध्र प्रदेश से लाए 7 किस्म के 800 ग्राफ्टेड पौधे, सरकार से मिल चुका पुरस्कार चित्तौड़गढ़ में परंपरागत खेती करने वाले 12वीं पास किसान ने बागवानी खेती करने का विचार किया। इसके बाद आम की बागवानी खेती को लेकर रिसर्च किया। कृषि वैज्ञानिकों से सलाह ली। (पढ़ें पूरी खबर)

Leave a Reply