तकनीकी-शिक्षा में अहम होने के बाद भी स्पेस साइंस व एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में सीटों की उपलब्धता बहुत कम है। देश की 23 आईआईटी में स्पेस साइंस व एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की 296 सीटें हैं। ये इनमें उपलब्ध कुल सीटों की संख्या का 2% से भी कम है। एजुकेशन एक्सपर्ट देव शर्मा बताते हैं कि स्पेस साइंस व एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में विद्यार्थियों की खासी रुचि रहती है। जोसा-2025 में इन ब्रांचों की सभी सीटें जेईई एडवांस्ड-2025 में कॉमन रैंक लिस्ट (सीआरएल) के तहत 7419 तक आवंटित हुईं। राउंड-6 की ओपनिंग-क्लोजिंग रैंक के आंकड़े भी विद्यार्थियों की रुचि को दर्शा रहे हैं। ऐसे में इन सीटों को 2% से बढ़ाकर 5% तक करने की जरूरत है। एयरोस्पेस : बॉम्बे आईआईटी में 72, कानपुर 69, मद्रास 55, खड़गपुर 70 सहित कुल 266 सीटें हैं। एयरोस्पेस डुएल डिग्री के लिए मद्रास आईआईटी में 10 सीटें। स्पेस साइंस की इंदौर आईआईटी में 20 सीटें। इसलिए जरूरी… देश की सुरक्षा प्रणाली-कृषि क्षेत्र के लिए अहम
आईआईटी संस्थानों में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के 4 वर्षीय बीटेक व 5 वर्षीय बीटेक-एमटेक डुएल डिग्री पाठ्यक्रम और स्पेस साइंस एंड इंजीनियरिंग के 4 वर्षीय बीटेक पाठ्यक्रम संचालित हैं। सीटों की संख्या होने से प्रतिभाएं सामने नहीं आ पातीं। जबकि, विकास व विध्वंस दोनों ही प्रक्रियाओं में स्पेस साइंस का बड़ा महत्व है। देश की सुरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने में स्पेस साइंस व एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का बड़ा महत्व है। सूचना एवं प्रसारण, कृषि और आपदा नियंत्रण जैसे क्षेत्रों के लिए भी स्पेस साइंस एवं टेक्नोलॉजी का महत्व है।

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