झालावाड़ में होली के मौके पर गुरुवार को भद्रा काल समाप्त होने के बाद रात 11 बजकर 26 मिनट से होलिका दहन की रस्में शुरू हुईं। शहर के बस स्टैंड, बड़ा बाजार, मूर्ति चौराहा, सर्राफा बाजार और मंगलपुरा समेत कई स्थानों पर होलिका दहन का आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं ने होलिका की पूजा-अर्चना की और मन्नतें मांगी। होलिका दहन के बाद महिलाओं और युवाओं ने परिक्रमा की। उन्होंने नारियल और तिल की आहुतियां दीं। आग शांत होने के बाद फाग गीत गाए गए। स्थानीय लोगों ने गोबर, उपले और लकड़ियों से होलिका तैयार की। इस वर्ष भद्रा काल के कारण होलिका दहन के समय को लेकर लोगों में असमंजस था। इस वजह से कुछ स्थानों पर पहले ही होलिका दहन कर दिया गया। कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस बल तैनात रहा। पंडित रमेश शर्मा ने होलिका दहन की धार्मिक महत्व को समझाया। उन्होंने बताया कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठी थी। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए। होलिका जलकर भस्म हो गई। तब से हर वर्ष बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है।