पथरीली जमीन पर विकेट गाडकर बनी 22 गज की पिच। 15 कदम का रनअप और कोच के इशारे मिलते ही दौड़ी। बल्लेबाज उस गेंद को समझ पाता उससे पहले लेदर की लाल बॉल ने गिल्लियां उखाड़ फेंकी। ब्यावर के बदनोर के खेडेला जैसे छोटे से गांव की कविता भील (13) है, जो अपनी घातक गेंदबाजी से हर मैच में ऐसा ही कमाल दिखाती है। कविता ऑस्ट्रेलियाई पेसर मिशेल स्टार्क जैसी गेंदबाजी करती है। विरोधी टीम के धुरंधरों को अपने स्विंग से पस्त कर देती है। उसे अपनी टीम में लेने के लिए होड़ लगती है। चुनौतियों और रोजमर्रा की परेशानियों से जूझती कुआं खोदने वाले की बेटी कविता के हुनर को तराश रहे हैं उनके कोच मनोज सुनारिया। विदेश में नौकरी छोड़कर गांव में रहते हैं। सुबह बकरियां चराने जाते हैं और स्कूल खत्म होते ही कविता के साथ ग्राउंड में पहुंच जाते हैं। कविता के जुनून और संघर्ष की यह अनोखी कहानी आकार जानने हम उनके गांव पहुंचे…. तीन साल पहले थामी बॉल, पहले मैच में 4 को किया बोल्ड 2022 में खेडेला गांव के सरकारी स्कूल में मनोज सुनारिया सीनियर कक्षा (10वीं-12वीं) की लड़कियों को क्रिकेट की प्रैक्टिस करवा रहे थे। तभी 5वीं कक्षा में पढ़ने वाली कविता (13) ने मनोज से कहा कि उसे भी खेलना है। इस पर उन्होंने कविता को एक ओवर डालने के लिए बॉल दी। कविता ने पहली बार बॉल थामी, विकेट से कुछ दूर जाकर दौड़ लगाई और हाई आर्म एक्शन के साथ पहली बॉल डाली। सामने खेल रही खिलाड़ी को उम्मीद नहीं थी कि जूनियर लड़की इतनी तेज गेंद डालेगी। जब तक वह बॉल को पढ़ पाती उसके विकेट उड़ चुके थे। कोच मनोज को पहले लगा की यह तुक्का है। लेकिन इसके बाद अगली तीन और गेंदों में कविता ने तीन लड़कियों को बोल्ड कर दिया। तब मनोज को एहसास हुआ कि कविता में भरपूर टैलेंट है। अगर सही दिशा मिले तो वह पूरे राजस्थान का नाम रोशन कर सकती है। तब से मनोज ने कविता को क्रिकेट की बारीकियां समझाना शुरू किया। 100 किमी/घंटा की स्पीड, मिचेल स्टार्क सा एक्शन कोच मनोज ने बताया कि 3 साल की प्रैक्टिस के बाद आज कविता के 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से बॉलिंग करती है। हमारे पास इसका कोई प्रमाण नहीं है, क्योंकि स्पीडोमीटर पर मापने का कभी मौका नहीं मिला। लेकिन विभिन्न राज्य स्तरीय टूर्नामेंट में आने वाले निरीक्षकों ने उसकी स्पीड देखकर ऐसा अंदाजा लगाया है। 15 कदम का रनअप और हाई आर्म एक्शन हू-ब-हू ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज मिचेल स्टार्क जैसा है। बॉलिंग के लिए कविता ने अपने लंबे बाल तक कटवा लिए। बॉलिंग करते समय कविता का सिर सामने स्टेडी रहने की बजाय नीचे रहता था जिसके कारण उसका रिदम नहीं बन पता था। तीन साल में उसके एक्शन, रनअप और लाइन-लेंथ पर खूब काम किया है। यही हर मैच में अपनी घातक गेंदबाजी से सामने वाली टीम को धराशायी कर देती है। स्थानीय टूर्नामेंट में कविता 5 विकेट लेने का कारनामा 2 बार चुकी है। डिस्ट्रिक्ट लेवल पर वह कई बार प्लेयर ऑफ द मैच रही है। जसप्रीत बुमराह की बॉलिंग पहली पसंद जब हमने कविता को भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह सबसे अधिक पसंद है। कविता कहती हैं कि उन्हें बुमराह का एक्शन और विकेट लेने के बाद जश्न मनाने का अंदाज बहुत शानदार है। लेकिन वह अपनी बॉलिंग से खुद की पहचान बनाना चाहती हैं। इसके लिए वह रोज कई घंटे प्रैक्टिस करती है। टुकड़े जोड़कर बनाया प्रैक्टिस नेट गांव में खेलने के लिए सरकारी स्कूल में बना एक ही ग्राउंड है। वह भी कंकड़-पत्थरों से भरा पड़ा है। अक्सर बॉलिंग के दौरान कविता चोटिल हो जाती है। कंकड़ होने के कारण लाइन और लेंथ बनाए रखने में परेशानी आती है। 400 रुपए की लेदर बॉल 5 दिन भी नहीं चल पाती है। जूते भाग-भाग कर नीचे से घिस गए हैं। इन्ही फटे पुराने जूतों के सहारे कविता रोज प्रैक्टिस कर रही है। हमारे लिए जब उन्होंने एक ओवर डाला तब भी उसने नहीं बताया की उसके दाएं पाँव के अंगूठे में पत्थर चुभ जाने से चोट लगी हुई है। वह मुस्कुराती हुई 10 मिनट तक लगातार बॉल करती रही। कोच मनोज के एक दोस्त ने नेट के कुछ टुकड़े दिए थे, जिन्हें जोड़कर कविता ने अपने घर पर एक बड़ा नेट तैयार किया। उसी नेट में कविता रोज बॉल करने की प्रैक्टिस करती है। मेहनत को देखकर बदनोर के तहसीलदार ने एक बैट-बॉल और कपड़े दिए थे। सिमरन शेख की तरह चाहती हैं किस्मत बदलना 2023 में राजस्थान रॉयल्स ने भीलवाड़ा जिले में टूर्नामेंट ऑर्गेनाइज करवाया था। वहां 10 टीमों में खेडेला टीम फाइनल रही थी। अगले दौर के मुकाबलों के लिए कविता अपनी टीम के साथ जयपुर खेलने गई थी। जहां दो मुकाबलों में उसने दो बार 5 विकेट लेने का कारनामा किया। अभी ब्यावर में कविता ने बॉयज के साथ भी एक टीम से खेला और 6 मैच में 8 विकेट लिए। कविता ने बताया कि वह गुजरात टाइटंस की सिमरन शेख की तरह अपनी किस्मत बदलना चाहती है। इस साल आईपीएल की वुमंस लीग में गुजरात टाइटंस ने सिमरन शेख को सबसे महंगी बोली लगाकर 1.9 करोड़ में अपनी टीम में शामिल किया था। दोपहर 1 बजे तक बकरियां चराते हैं, शाम को प्रैक्टिस करवाते हैं मनोज ने बताया कि वो पहले कुवैत में नौकरी करते थे। 2020 में भारत लौटे। अहमदाबाद और हरियाणा में नौकरी की लेकिन मन नहीं लगा। खुद क्रिकेटर बनना चाहता था, डिस्ट्रिक्ट लेवल तक खेला भी लेकिन आर्थिक मजबूरियों के चलते ट्रेनिंग नहीं ले पाया। वही सपना बच्चियों के ट्रेनिंग देकर पूरा करने की ठानी। गांव आकर 2022 में स्कूली लड़कियों को क्रिकेट सिखाना शुरू किया। एक स्कूल में 3000 मासिक कोच की नौकरी कर रहा हूं। सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक बकरियां चराने पहाड़ों और जंगलों में जाता हूं। स्कूल टाइम के बाद बच्चों को 3-4 घंटे क्रिकेट सिखाते हूं। मनोज ने बताया कि वो जो कुछ भी कमाते हैं उसे बच्चियों की कोचिंग पर खर्च देते हैं। कविता की डाइट, टूर्नामेंट खेलने की फीस और क्रिकेट के सामान का सारा खर्चा मनोज खुद ही उठाते हैं। पिता कुआं खोदते हैं, घरवालों को मनाना आसान नहीं था कविता के पिता हरिलाल भील और बड़ा भाई कुआं खोदने का काम करते हैं। भास्कर टीम जब कविता के घर पहुंची तो पता चला कि दोनों गुजरात गए हैं। घर के पीछे थोड़ी जमीन है, जिसमें खाने के लिए अनाज उगाते हैं। छोटा भाई दुकान पर काम करता है। मां मीरा देवी घरेलू कामकाज संभालती हैं। एक लड़की का क्रिकेट खेलना, बाल कटवाना, इसके लिए परिवार को मनाना आसान नहीं था। कविता के क्रिकेट के शौक को शुरू में घरवालों ने नकार दिया था। कोच मनोज ने लगातार समझाया। बताया कि कविता की खेल प्रतिभा को निखारने के लिए उसे 10 साल चाहिए। तबतक आप न तो इसकी पढ़ाई रोकेंगे न ही इसकी शादी करेंगे। बड़ी मुश्किल के बाद परिवार राजी हुआ। फास्ट फूड से दूरी, देसी डाइट और खान पान से स्टैमिना कोच मनोज बताते हैं कि उनके पास अभी गांव की 15 लड़कियां ट्रेनिंग ले रही हैं। सभी बच्चियों को फास्ट फूड, गोलगप्पे, खट्टे-मीठे और तले-भुने से दूर रहने की सख्त हिदायत दी है। स्टैमिना बनाने के लिए सुबह अंकुरित चना मूंग खाती हैं। लंच में अपने घर दही-छाछ लेती हैं। देसी ज्वार, बाजरी और सब्जियां रोटी खाती हैं। रात को दूध और हल्का खाना लेती हैं।