हर डॉग लवर की अपनी एक अलग कहानी होती है। उनके डॉग्स के साथ बिताए पल, हर लम्हा वो किसी परिवार के सदस्य की तरह अपनी स्मृतियों में कैद रखते हैं। ऐसी ही एक कहानी है अजमेर के तरुण की। जो अब तक 8 डॉग्स पाल चुके हैं, लेकिन उनके सबसे करीब था रॉकी। रॉकी की याद में अजमेर बस स्टैंड पर तरुण एक कैफे भी चलाते हैं। वे इस कैफे से आने वाली कमाई का 40% हिस्सा स्ट्रीट डॉग्स के लिए देते हैं। भास्कर में पढ़िए तरुण के डॉग लवर बनने की कहानी… बड़ी नागफणी निवासी तरुण तुण्डवाल ने बताया कि वह मूल रूप से अजमेर के रहने वाले हैं। उन्होंने बीसीए और एमसीए किया है। उनके पिता महादेव वाटर बॉक्स से स्टोर इंचार्ज के पद से रिटायर्ड हैं। परिवार में सभी सदस्यों को डॉग्स का काफी शौक रहा है। 8 से ज्यादा डॉग्स घर में पाले थे। लेकिन इनमें सबसे ज्यादा खास रॉकी (लेब्रा ब्रीड) था। साल 2020 में हुई थी रॉकी की मौत तरुण ने बताया कि 2007 में रॉकी को परचेस किया था। जब वह 3 महीने का था। रॉकी ने घर पर परिवार के सदस्य की तरह अपनी जगह बना ली थी। 2020 में उसकी उम्र 14 साल 4 महीने हो चुकी थी। जिसकी उम्र कंप्लीट हो गई थी। बीमार होने के चलते उसे एक दिन टोलफा ले गया और वापस घर लाते वक्त उसकी डेथ हो गई। मौत की खबर सुनने के बाद घर में मातम छा गया था। मैं खुद डिप्रेशन में आ गया था। क्योंकि रॉकी मेरा छोटा भाई जैसा था। परिवार का सदस्य होने के चलते उसका हिंदू रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार भी किया था। देर से घर आता तो बचाता था रॉकी तरुण ने बताया कि रॉकी से उसका जुड़ाव काफी हो चुका था। उससे पहले भी उन्होंने 7 डॉग्स को पाला था। लेकिन बाकियों से जुड़ाव नहीं हो पाया था। जब भी उसे भूख लगती थी तो अपना बर्तन खुद उठा कर लाता था। मैं अगर घर नहीं जाता तो रात रात भर घर के बाहर इंतजार करता था। लेट आने पर मुझे पापा-मम्मी की डांट से बचाने के लिए कुंदी सरका कर खुद ही गेट खोल देता था। उसे कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई थी। लेकिन वह घर पर रहकर खुद ट्रेन हो चुका था। उससे इतना लगाव था कि एसकी डेथ के बाद कोई भी डॉग घर पर परचेस करके नहीं लाया। 7 दिन तक घर मे खामोशी रही तरुण ने बताया की रॉकी की मौत के बाद से घर में सन्नाटा छा गया था। वह खुद 7 दिनों तक डिप्रेशन में चला गया था। घर पर अकेला बैठा और किसी से बातचीत नहीं करता था। इसी बीच उसे आइडिया आया कि उसे रॉकी के लिए कुछ करना चाहिए। चाय पीते समय आया आइडिया तरुण ने बताया कि वह अपने दोस्तों के साथ रात में बस स्टैंड पर चाय पीने के लिए जाया करता था। तभी बस स्टैंड पर कई स्ट्रीट डॉग्स भी आया करते थे। उन्हें देखकर उसे रॉकी की याद आती थी। तभी चाय पीते समय उन्हें पता चला कि बस स्टैंड पर एक केबिन का ठेका छूट रहा है। तब उसने सोचा कि वह अपने डॉग रॉकी के नाम से एक खोल सकता है। बाद में उसने इसकी जानकारी ली और ठेके पर केबिन ले लिया था। इसके बाद उसने नवंबर 2022 में दुकान का इंटीरियर किया और रॉकी ड्रीम शेल्टर नाम रखा था। 40 परसेंट मुनाफा स्ट्रीट डॉग्स के नाम तरुण ने बताया कि वह रॉकी की यादों को बरकरार रखने के लिए कुछ ना कुछ करना चाहता था। इसके लिए उसने रॉकी के नाम से बस स्टैंड पर दुकान भी खोल ली। लेकिन वह और भी कुछ करना चाहता था। तब उसने सोचा कि दुकान में होने वाली बचत का 40% स्ट्रीट डॉग्स के फूड पर लगाएगा। इसके बाद से वह अपना प्रॉफिट निकाल कर 40% स्ट्रीट डॉग्स पर खर्च करता है। स्ट्रीट डॉग्स के लिए अलग डाइट बनवाई तरुण ने बताया कि वह जो रॉकी को घर पर खाना देते थे वही खाना तैयार कर स्ट्रीट डॉग्स को रोजाना दिया करते थे। लेकिन उनमें से कुछ डॉग से उसे खाने को नही खाते थे। बाद में उसने डॉग्स के डॉक्टर से जानकारी ली थी। तब पता चला कि स्ट्रीट डॉग्स का खाना अलग ही होता है। अब वह रोजाना 1000 स्ट्रीट डॉग्स की डाइट तैयार करते हैं। गर्मी और सर्दी के हिसाब से ही डाइट तैयार की जाती है। जिसमें आइसक्रीम, कैल्शियम खाना, ओट्स वगैरा तैयार किया जाता है। 1 साल तक घर से ही पैसा लग रहा था। लेकिन जब धीरे-धीरे लोगों को कहानी के बारे में पता चला तो लोगों का जुड़ाव भी होना लग गया।