हनुमानगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की ओर से जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस 23 जून से लेकर जन्मदिवस 6 जुलाई तक बूथ स्तर तक अभियान चलाया जा रहा है। अभियान के जरिए जन-जन को यह बताया जाएगा कि डॉ. मुखर्जी का देश के विकास में, लोकतंत्र की रक्षा में कितना बड़ा योगदान रहा। आपातकाल में किस प्रकार की यातनाएं लोगों ने झेंली, इसके बारे में भी जनता को बताया जाएगा। मंगलवार को भाजपा जिला कार्यालय में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व सांसद सुमेधानंद सरस्वती ने बताया कि देश के आजाद होने के बाद जब 1947 में सरकार बनी। उस सरकार में लगभग सभी दलों के लोग शामिल हुए थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस समय हिन्दू महासभा के अध्यक्ष थे। इस नाते उन्हें मंत्रिमंडल में लिया गया और उन्हें उद्योग मंत्री बनाया गया। उस समय जब संसद में कानून को स्वीकृति दी जा रही थी तो धारा 370 और 35ए से डॉ. मुखर्जी सहमत नहीं थे। तब डॉ. मुखर्जी ने संसद में साफ कहा था कि जिस भारत माता के लिए हजारों-लाखों लोगों ने कुर्बानी-बलिदान दिया। कुछ लोगों की गलती के कारण उसके टुकड़े हो गए। फिर भी जो हिस्सा बचा है उस हिस्से के अन्दर भी कश्मीर जैसा प्रांत, उस प्रांत के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री का नाम देना, वहां अपना अलग से भारत के ध्वज के अतिरिक्त झंडा होना और वहां का अपना अलग विधान होना, यह भारत के लिए उचित नहीं है। भारत अखण्ड भारत बनना चाहिए। कई बिन्दुओं पर डॉ. मुखर्जी का विरोध हुआ और उन्होंने उद्योग मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और यह कहकर निकल पड़े कि वे धारा 370 को तोड़ेंगे। जब वे समर्थकों के साथ कश्मीर में पहुंचे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को उनका 52 साल की उम्र में जिन परिस्थितियों में जेल में निधन हुआ। आज तक उसकी जांच नहीं हुई। इस तरह की तीन-चार घटनाएं घटित हुई हैं, लेकिन फिर भी कांग्रेस कहती है कि हम निष्पक्ष काम करते हैं। सुमेधानंद सरस्वती ने कहा कि डॉ. मुखर्जी ने एकत्व का दर्शन दिया था कि सारा भारत एक हो। इसलिए भाजपा के लोग यह नारा देते थे कि कश्मीर हमारा है।

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