कॉलेज शिक्षा विभाग में कार्यरत अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी को अंतरिम राहत देते हुए हाईकोर्ट ने उसके चयनित वेतनमान के लाभ (इंक्रीमेंट) को वापस लेने और उसके खिलाफ निकाली गई रिकवरी की वसूली पर रोक लगा दी हैं। साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा हैं। जस्टिस सुदेश बंसल की अदालत ने यह आदेश राजकुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अधिवक्ता विजय पाठक ने बताया कि याचिकाकर्ता को विभाग ने 2010 में चयनित वेतनमान का लाभ दिया था। लेकिन बाद में विभाग ने अक्टूबर 2015 के नोटिफिकेशन (दो से अधिक संतान पर 5 साल की देरी से प्रमोशन) का हवाला देते हुए उसे दिए गए चयनित वेतनमान के आदेश को निरस्त कर दिया। वहीं इस अवधि के दौरान उसे दी गई अतिरिक्त राशि की रिकवरी निकाल दी। जिसे कर्मचारी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कार्रवाई से पहले सुनवाई का मौका नहीं दिया
उन्होने बताया कि याचिकाकर्ता कॉलेज शिक्षा विभाग में साल 2000 में कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियुक्त हुआ था। सेवा में नौ साल पूरे होने पर उसे 2010 में चयनित वेतनमान का लाभ दिया गया। साल 2015 में वह वरिष्ठ सहायक के पद पर प्रमोट भी हो गया। लेकिन मई 2024 में विभाग ने उसके चयनित वेतनमान के आदेश को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि जब उसे चयनित वेतमान दिया गया था, तब उसके तीन संतान थी। ऐसे में उसे चयनित वेतनमान का लाभ 2010 की जगह 2015 में दिया हुआ माना जाएगा। इस बीच कर्मचारी को जो भी अतिरिक्त भुगतान हुआ है। उसकी रिकवरी भी कर्मचारी से की जाएगी। सरकार ने प्रमोशन से वंचित करने का नियम हटा लिया
दरअसल, साल 2015 में राज्य सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके 1 जून 2002 के बाद तीसरा बच्चा पैदा होने पर सरकारी कर्मचारी को 5 साल के लिए प्रमोशन से वंचित करने का नियम लागू किया था। साल 2017 में सरकार ने 5 साल की अवधि को घटाकर 3 साल कर दिया था, लेकिन दो साल पहले कार्मिक विभाग ने 16 मार्च 2023 को अधिसूचना जारी करके कहा कि ऐसे सभी कर्मचारी जिनकी पदोन्नति दंड स्वरूप रोकी गई थी। उन्हें उनके पदोन्नति वर्ष से ही प्रमोशन का लाभ दिया जाए।