हल्दीघाटी। अरावली की वो पहाड़ी जहां महाराणा प्रताप और मुगल सेना के बीच ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया। इस रणभूमि की जितनी शौर्य गाथाएं प्रचलित हैं, उतना ही खास है यहां उगने वाले चैत्री गुलाब से बनने वाला खमनोर का शरबत। अरावली की हल्दीघाटी के करीब बसे खमनोर गांव में किसान चैत्री गुलाब उगाते हैं। उसी गुलाब से गुलाब जल बनाते हैं। और उस गुलाब जल से ऐसा शरबत तैयार करते हैं। जिसका आनंद लेने दुनियाभर के टूरिस्ट पहुंचते हैं। भास्कर टीम राजस्थानी जायका की इस कड़ी में हल्दीघाटी और गांव खमनोर पहुंची जहां रूह को ठंडक पहुंचाने वाला ये जायका तैयार होता है। देशभर में यहीं उगते हैं चैत्री गुलाब दरअसल, खमनोर के शरबत के पीछे सबसे खास चीज है यहां के चैत्री गुलाब के फूल। यह शरबत खमनोर गांव में उगने वाले खास फूलों से ही तैयार होता है। जो 100 फीसदी ऑर्गेनिक खेती से होते हैं। बताते हैं कि आजादी से पहले से हल्दीघाटी के नजदीक खमनोर गांव में चैत्री गुलाब की खेती होती आ रही है। फरवरी मार्च और अप्रैल के पहले सप्ताह तक फूलों का सीजन रहता है। किसान इन दो-तीन महीने में गुलाब तोड़कर उनका गुलाब जल और गुलकंद तैयार कर लेते हैं। फिर उसे स्टॉक कर लिया जाता है। अप्रैल में गर्मी बढ़ते ही गुलाब जल से गुलाब शरबत बनाकर बेचते हैं। खमनोर के एक किसान कृष्णकांत माली ने बताया कि वे पिछले 3-4 दशक से अपने खेत में गुलाब उगाकर उसका शरबत तैयार कर बेच रहे हैं। गुलाब की खेती और उससे शरबत बनाने का काम पहले पिताजी करते थे, उन्हीं की विरासत को आज संभाल रहे हैं। उन्होंने बताया कि चैत्री गुलाब पूरे देश में केवल यहीं हल्दीघाटी की पवित्र जगह पर होते हैं। 20 फरवरी तक फूलों पर कली आ जाती है। मार्च में गुलाब खिलता है। इन दो महीने में ये घाटी गुलाब की महक से महक जाती है। एक जमाने में भगवान श्रीनाथजी को भी गुलाब यहीं से जाते थे। गुलाब की खेती से शरबत तक का सफर एक किसान ने बताया कि गुलाब की खेती तो यहां सदियों से हो रही है। लेकिन गुलाब से शरबत, गुलकंद और गुलाब जल जैसे औषधीय उत्पाद बनाने का सिलसिला आजादी के बाद शुरू हुआ। यहां करीब 100 परिवार इस काम में जुड़े हैं, जो शरबत बनाकर बेचते हैं। खमनोर से आगे शाहीबाग इलाके में करीब 50 शॉप हैं, जहां पर शरबत के लिए बाहर से आने वाले टूरिस्ट की सीजन में भीड़ रहती है। इस काम में खास तौर पर यहां के माली और पालीवाल समाज के लोग जुड़े हैं। शरबत की कई वैरायटी होती हैं तैयार हल्दीघाटी में शरबत की कई वेरायटी तैयार की जाती है। गुलाब, सौंफ, पान, इलायची, खस, अजवाइन और पौदीना का शरबत। लेकिन इसमें सबसे खास चैत्री गुलाब से तैयार होने वाला शरबत है। इसे बनाने का तरीका भी बाकी शरबत से अलग है। गुलाब के फूल की पत्तियों से गुलाब जल तैयार किया जाता है। फिर उसमें शुगर सिरप की जगह मिश्री मिलाकर शरबत बनाया जाता। शरबत की बाकी वैरायटी अर्क से तैयार होती हैं। तांबे के पात्र में तैयार होता है गुलाब जल खेत से तोड़े गए ताजा गुलाब के 45 किलो के करीब फूल को तांबे मटकेनुमा बड़े पात्र में डालकर भट्टी पर चढ़ाते हैं। इसमें करीब 40 किलो पानी मिलाकर उबाला जाता है। वाष्पन विधि से इससे उठने वाली भाप को एकत्रित कर ठंडा किया जाता है, जिससे गुलाब जल बनता है। शरबत बनाने के लिए धागे वाली मिश्री से चाशनी तैयार की जाती है। तैयार चाशनी को ठंडा कर अलग रख लिया जाता है। अब सिरप में गुलाब जल डालते हैं। इसके अलावा कोई भी तीसरा प्रोडक्ट नहीं मिलाते। इस शरबत को 100% शुद्ध माना जाता है। ‘ए’ कैटेगरी शरबत मतलब कुछ मिलावट नहीं शरबत की डिमांड बढ़ने के साथ ही इसकी कई कैटेगरी भी बन गई हैं। ‘ए’ कैटेगरी शरबत का मतलब होता है कि उसमें गुलाब जल और मिश्री की चाशनी के अलावा कोई मिलावट नहीं है। ‘बी’ कैटेगरी की शरबत में गुलाब जल के साथ कलर डाला जाता है। क्योंकि कई ग्राहक लाल या गुलाबी कलर में शरबत की डिमांड करते हैं। इस शरबत में मिश्री की जगह चीनी की सिरप मिलाते हैं। सबसे ज्यादा गुणकारी तो गुलाब जल वाला ही होता है। आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब टर्न ओवर सालाना 6 करोड़ एक दुकानदार उमेश कुमार माली ने बताया कि परिवार इस काम में लगे हैं उनके लिए फरवरी से अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक का समय महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान चैत्री गुलाब की खेती होती है और उसके बाद शरबत का स्टॉक तैयार कर लिया जाता है। खमनोर और हल्दीघाटी के आस-पास करीब 100 से ज्यादा शॉप्स हैं जहां शरबत, गुलाब जल और गुलकंद तैयार कर बेची जाती है। क्षेत्र में इसका सालाना कारोबार करीब 6 करोड़ रुपए का है। शरबत के अलावा अलग अलग अर्क और इत्र भी यहां बनाते है। महाराष्ट्र-गुजरात तक जाता है शरबत यहां का शरबत महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश के कुछ शहरों से लेकर राजस्थान में जाता है। यहां सबसे ज्यादा श्रीनाथजी के दर्शन करने नाथद्वारा आने वाला टूरिस्ट हल्दीघाटी आता है। यहां के शरबत का स्वाद लेने के बाद साथ भी लेकर जाता है। शरबत की सबसे ज्यादा दीपावली के बाद के करीब दस दिन और समर वेकेशन में रहती है। इसके अलावा ऑर्डर पर होम डिलीवरी भी करते हैं। सूरत से आई मीरल जरीवाला ने बताया कि उन्होंने हल्दीघाटी घूमने के बाद जब शरबत का स्वाद लिया तो अलग ही स्वाद था। वे कहती हैं यह शरबत नेचुरल था। एक अन्य ग्राहक जिया ने बताया कि ऐसा यूनिक स्वाद वाला शरबत मैंने आजतक नहीं पिया। इसका स्वाद बहुत ही नेचुरल है। पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर ये है जयपुर का दिलखुश पनीर। राजस्थान में पहली बार पनीर पर इनोवेशन के बाद शेफ ने एक नई रेसिपी तैयार की है। खास बात यह है कि पनीर की इस रेसिपी को पेटेंट भी करवाया जा रहा है। यानी कि वो सर्टिफिकेट जो यह बताएगा कि राजस्थानी शेफ ने ही इसे तैयार किया है….(CLICK कर पूरा पढ़ें)