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देसी तकनीक से रोग पर काबू:खीरा व अमरूद की फसल में लग रहा था नेमाटोड रोग, हींग से किया उपचार

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फसलों में नेमाटोड (सूत्रकृमि) रोग से किसानों को काफी नुकसान होता है। यह रोग फलों, सब्जियों, अनाज, दालों सहित कई फसलों में लगता है। लेकिन सवाई माधोपुर जिले के सुनारी गांव के किसान बसराम मीणा ने देसी तकनीक से इस रोग पर काबू पाकर खीरा व अमरूद की बागवानी बचा ली। एमए तक पढ़े बसराम ने बताया, मैंने 2018 में अमरूद के 800 पौधे लगाए थे। ये बड़े हुए तो नेमाटोड रोग लग गया। इस रोग में पेड़ की जड़ में गांठें हो जाती हैं। गांठें बढ़ने के साथ पत्ते पीले पड़ने लगते हैं। आखिर पैदावार चौपट हो जाती है। रोग पर काबू पाने के लिए मैंने क्षेत्र के एक जैविक किसान से रोगोपचार की विधि सीखी। हींग पीसकर पानी में मिलाई, बाद में पेड़ की जड़ों तक ड्रिप सिंचाई के साथ हींग मिला पानी दिया। इससे रोग काबू में आ गया। साथ ही 5 लीटर गोमूत्र, 5 किलो नीम की निंबोली, 5 किलो धतूरा, 5 किलो गुड़ को पीसकर मिश्रण बनाया। उबालकर ठंडा करने के बाद बूंद-बूंद सिंचाई की। इससे भी जड़ों की गांठें खत्म होने लगी। सवाई माधोपुर जिले में अमरूद खूब होते हैं, लेकिन विल्ट नामक कीड़ा लग जाता है। यह तने में छेद कर घुसता है, पौधा बाहर से स्वस्थ दिखता है लेकिन अंदर से कीड़ा इसे खोखला कर देता है। इस पर काबू के लिए तनों पर दवा पोतते हैं। मैंने तने में इंजेक्शन से दवा डालकर इस पर काबू किया। बसराम ने बताया, हाल ही 3 हजार वर्ग मीटर के पॉली हाउस में 30 टन खीरा हुआ है। इसमें भी नेमाटोड रोग लगता है। पौधे लगाने के साथ ही मैंने खीरा की जड़ों में हींग मिला पानी व गोमूत्र-गुड़, नीम की निंबोली वाले मिश्रण छिड़क दिया। इससे रोग नहीं लगा। खेत में गेंदा फूल के बीज डालने से भी नेमाटोड नहीं लगता। गेंदा रोग को बढ़ने नहीं देता। खीरा में देसी वर्मी कम्पोस्ट का भी उपयोग किया। बसराम बताते हैं, फसल बढ़वार के लिए देसी तकनीक अपनाता हूं। 200 लीटर पानी में 15 किलो गुड़, 4 किलो बेसन, 200 एमएल वेस्ट डीकंपोजर डालकर घोल बनाता हूं। इसे कुछ दिन ढककर रखता हूं। बाद में सिंचाई के साथ फसल में देता हूं। इससे बढ़वार अच्छी होती है, कीट नियंत्रण होता है। मैंने दो फसलें एक साथ लेने के लिए भी तरीका निकाला।अमरूद के पौधे लगाने के दो साल बाद फल आते हैं, इसलिए साथ में ताइवानी पपीते बो दिए। पपीते का पौधा दो-ढाई साल तक ही फल देता है। अमरूद पर फल आने से पहले तो मैंने पपीते की फसल ले ली।

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