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धर्म का मार्ग छोड़ने वाले के जीवन का उद्धार नहीं हो सकता: आचार्य

भीलवाड़ा | धर्म के मार्ग पर चलने वाला कभी नहीं बिगड़ सकता है और जो धर्म को छोड़ देता है वह जीवन में कभी नहीं सुधर सकता। दूसरों को सुधारने का प्रयास करने पर खुद से दूर हो जाएंगे। खुद को सुधारने का प्रयास करने पर दृष्टि समीचीन एवं सुंदर हो जाएगी। वीतराग मुद्रा को देखने पर पूरा ध्यान उसे निहारने पर केन्द्रित करो। आंखों से आंसू आने लगते हैं मध्य की दूरियां मिट जाती हैं यही आपके भावों की परिणति है। जितना निहारेंगे उतनी ही दृष्टि निखरेगी। ये विचार शहर के शास्त्रीनगर हाउसिंग बोर्ड स्थित सुपार्श्वनाथ पार्क में श्री महावीर दिगंबर जैन सेवा समिति के तत्वावधान में चातुर्मासिक (वर्षायोग) प्रवचन के तहत मंगलवार को राष्ट्रीय संत दिगंबर जैन आचार्य सुंदरसागर महाराज ने व्यक्त किए। इससे पूर्व प्रवचन में क्षुल्लिका सुजेयमति माताजी ने कहा कि संसार में दो प्रकार के सुख लौकिक ओर अलौकिक हैं। इनमें से लौकिक सुख सांसारिक वासनाओं की ओर ले जाता है जबकि मोक्ष की तरफ ले जाने वाला अलौकिक सुख गिने चुने जीव ही चुनते हैं। आत्मा के कल्याण की कामना रखने वाले मुमुक्षु अलौकिक सुख चुनते है। जो वीतरागी होते हैं इनकी शरण लेकर जीवन का कल्याण कर लेते हैं। सभा के शुरू में श्रावकों द्वारा मंगलाचरण, दीप प्रज्वलन, आचार्य का पाद प्रक्षालन कर उन्हें शास्त्र भेंट व अर्ध समर्पण किया गया। संचालन पदमचंद काला ने किया। मीडिया प्रभारी भागचंद पाटनी ने बताया कि वर्षायोग के नियमित कार्यक्रम श्रृंखला के तहत प्रतिदिन सुबह 6.30 बजे भगवान का अभिषेक शांतिधारा, सुबह 8.15 बजे दैनिक प्रवचन, सुबह 10 बजे आहार चर्या, दोपहर 3 बजे शास्त्र स्वाध्याय चर्चा, शाम 6.30 बजे शंका समाधान सत्र के बाद गुरू भक्ति एवं आरती का आयोजन हो रहा है।

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