चित्तौड़गढ़ की अदालत ने 19 साल पुराने बैंक धोखाधड़ी के मामले में फैसला सुनाया है। यह मामला साल 2006 का है, जिसमें एक व्यक्ति ने खुद को सरकारी अधिकारी बताकर बैंक में फर्जी खाता खुलवाया और 10 लाख रुपए जमा किए। इसके बाद अलग-अलग लोगों को भुगतान करने के नाम से निकाल भी लिए। इस मामले में कोर्ट ने एक आरोपी को दोषी मानते हुए 7 साल की सजा और 10 लाख 10 हजार रुपए का जुर्माना सुनाया है, जबकि दूसरे आरोपी को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया। यह फैसला अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-1 के पीठासीन अधिकारी इंद्र सिंह मीणा ने सुनाया। अभियोजन अधिकारी सीमा मालवीय ने बताया कि यह पूरा मामला 3 जुलाई 2006 को शुरू हुआ, जब इलाहाबाद बैंक शाखा चित्तौड़गढ़ के प्रबंधक विश्वंभर दयाल गुप्ता ने कोतवाली थाना चित्तौड़गढ़ में रिपोर्ट दर्ज करवाई। अलग ऑफिस का हवाला देकर खुलवाया खाता उन्होंने बताया कि 17 मार्च 2006 को आरोपी वीरेंद्र सिंह बैंक में आया और खुद को सीईओ (मुख्य शिक्षा अधिकारी) बताया। उसने कहा कि वह जिला परिषद चित्तौड़गढ़ के सीईओ हैं और अपने नाम से एक बचत खाता खुलवाना चाहते हैं। उसने अपना नाम राम नारायण मीणा बताया। जब बैंक अधिकारियों ने कहा कि जिला परिषद का खाता तो पहले से ही है, तो उसने कहा कि मुख्य शिक्षा अधिकारी का अलग दफ्तर होता है और उसके लिए अलग खाता होना जरूरी है। उस समय बैंक की शाखा नई थी और मार्च का महीना था, जब बैंक में जमा रकम बढ़ाने का दबाव भी रहता है। इसलिए बैंक अधिकारियों ने उसकी बातों पर भरोसा कर लिया और उसके नाम से एक खाता खोल दिया। इस दौरान एक खाताधारक नारायण लाल माली ने उस व्यक्ति की पहचान भी की, जिससे बैंक को भरोसा और बढ़ गया। 3 अप्रैल 2006 को अजमेर के सेंट्रल बैंक से एक 10 लाख रुपए का चेक “सीईओ जिला परिषद चित्तौड़गढ़” के नाम से आया, जो इस फर्जी खाते में जमा हो गया। इसके बाद लगातार अलग-अलग नाम से रुपए निकाले गए इसके बाद 29 जून 2006 को जिला परिषद के असली अधिकारियों ने बैंक को सूचित किया कि यह चेक तो हमारी संस्था के नाम से आया था, लेकिन वह हमारे असली खाते में जमा नहीं हुआ, बल्कि किसी और फर्जी खाते में जमा कराकर पैसा निकाल लिया गया। फर्जी पहचान और फर्जी दस्तावेज का खेल जांच में सामने आया कि आरोपियों ने अजमेर की तत्कालीन सांसद डॉ. प्रभा ठाकुर के फर्जी लेटर पैड तैयार किए थे। इस लेटर पर चुन्नीलाल नाम के व्यक्ति के लिए सीईओ अजमेर के सरकारी विभाग से 10 लाख की राशि की सिफारिश की गई थी। इसी फर्जी दस्तावेज के जरिए 10 लाख रुपए का चेक हासिल किया गया। फिर चित्तौड़गढ़ की इलाहाबाद बैंक शाखा में फर्जी सरकारी खाता खोलकर वह पैसा जमा कर निकाला गया। पुलिस ने इस मामले में भिंडर हाल बड़ीसादड़ी निवासी वीरेंद्र सिंह चारण पुत्र जगदीश चारण और अजमेर निवासी केलेंद्र कुमार पुत्र रिखब चंद्र जैन को गिरफ्तार किया। अदालत में चली लंबी सुनवाई अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 38 गवाह और 77 दस्तावेजी सबूत अदालत में पेश किए गए। इन सबूतों और गवाहों के आधार पर अदालत ने वीरेंद्र सिंह चारण को मुख्य आरोपी मानते हुए दोषी करार दिया। वहीं, केलेंद्र कुमार के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिलने के कारण उसे दोषमुक्त कर दिया गया। अदालत का फैसला, 7 साल की मिली सजा जज इंद्र सिंह मीणा ने अपने फैसले में कहा वीरेंद्र सिंह ने सरकारी अधिकारी बनकर बैंक को धोखा दिया। फर्जी कागजात के जरिए खाता खुलवाया और 10 लाख रुपए हड़प लिए। यह एक गंभीर अपराध है जिसमें जनता की मेहनत की कमाई और सरकारी धन की धोखाधड़ी से हानि की गई है। इसलिए आरोपी वीरेंद्र सिंह को 7 साल की सजा और 10 लाख 10 हजार रुपए का जुर्माना सुनाया गया। अगर वह जुर्माना नहीं देता है तो उसे अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।
धोखाधड़ी मामले में 19 साल बाद सजा:जिला परिषद CEO बन खाता खुलवाया, 10 लाख की ठगी करने वाले को 7 साल की सजा
