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बूंदी जिले के नैनवां में होली के बाद परंपरागत हडूडा उत्सव का आयोजन किया गया। यह 95 वर्ष पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है। शाम 5 बजे शुरू हुए इस कार्यक्रम में करीब 400 लोगों ने हिस्सा लिया। इस लोक उत्सव में नायक मालदेव और नायिका मालदेवनी की शादी की रस्में निभाई गईं। बैंड-बाजों के साथ दूल्हा-दुल्हन की बारात निकाली गई। धुलंडी के दिन दोपहर तक लोगों ने रंग-गुलाल से होली खेली। इसके बाद सभी नहा-धोकर, अच्छे कपड़े पहनकर हडूडा में शामिल हुए। कार्यक्रम के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एडिशनल एसपी जसवीर सिंह, डीएसपी राजू लाल और थानाधिकारी कमलेश कुमार शर्मा पुलिस टीम के साथ मौजूद रहे। उनकी उपस्थिति में कार्यक्रम सुचारू रूप से संपन्न हुआ। समय के साथ हडूडा के स्वरूप में बदलाव आया है, लेकिन इसकी मूल परंपरा आज भी बरकरार है। इस दौरान होने वाले मनोरंजक प्रदर्शनों को देखकर लोग हंसी से लोटपोट हो जाते हैं। यह आयोजन बिना किसी पूर्व तैयारी के होता है। दो पक्ष होते हैं आमने-सामने
झंडे की गली पर दोनों पक्ष आमने-सामने आ जाते हैं। युवक लंबे बांसों (लकड़ी की बल्लियों) पर खड़े होकर एक-दूसरे की ओर इशारे करते हुए प्रदर्शन करते हैं। इसे देखकर दर्शक हंसी से लोट-पोट हो जाते हैं। इसी दौरान दोनों पक्षों में खींचतान शुरू हो जाती है। स्थिति बिगड़ने से पहले पुलिस और प्रमुख लोग बीच-बचाव कर दोनों पक्षों को अलग कर देते हैं और बारातों को वापस लौटा दिया जाता है। करीब ढाई दशक पहले इस आयोजन को बंद कराने के प्रयास हुए थे। एक-दो साल तक यह नहीं हुआ, लेकिन फिर परंपरा दोबारा शुरू हो गई। ऐसे आयोजित होता है हडूडा
शहर के मुख्य बाजार में झंडे की गली के उत्तर दिशा में मालदेव चौक और दक्षिण दिशा में मालदेवणी चौक स्थित है। मालदेव चौक पर मालदेव की आदमकद बैठी अवस्था में प्रतिमा लगी है। मालदेवणी चौक को ही उसका स्थान माना जाता है। होली से पहले इन स्थानों की सफाई, रंग-रोगन और आकर्षक सजावट की जाती है। मालदेव की प्रतिमा को रंगकर उसे अश्लील जामा पहनाया जाता है। हडूडा के दौरान शहर दो भागों में बंट जाता है। झंडे की गली की उत्तर दिशा के लोग नायक मालदेव के पक्ष में रहते हैं, जबकि दक्षिण दिशा के लोग नायिका मालदेवणी के समर्थन में होते हैं। गाजे-बाजे के साथ निकलती हैं अ‌द्भुत बारातें
शाम 5 बजे मालदेव चौक से नायक मालदेव और मालदेवणी चौक से नायिका मालदेवणी की बारातें गाजे-बाजे के साथ निकलती हैं। बाराती नाचते हैं, इस दौरान हंसाने वाले गीत गाते हैं और पताशे-फूले लुटाते चलते हैं। दोनों बारातें अपने-अपने साथ बड़े बांस में सतरंगा झंडा लेकर चलती हैं। इन बारातों में केवल दूल्हे होते हैं। दोनों बारातें झंडे की गली पर पहुंचती हैं, जहां हडूडा होता है।

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