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‘हिटलर दीदी’, ‘फिर सुबह होगी’, ‘साथ निभाना साथिया’, ‘बालवीर’, ‘स्वराज’ सहित कई धारावाहिकों में अभिनय कर घर-घर लोकप्रिय हुईं श्रुति बिष्ट इन दिनों ‘नॉयनतारा’ में टाइटल रोल प्ले कर रही हैं। ‘बालवीर’ के बाद ‘नॉयनतारा’ में श्रुति को क्रोमा पर शूट करने का मौका मिल रहा है, जिसे लेकर खुश और उत्साहित हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान श्रुति ने टाइटल रोल की खुशी, क्रोमा पर काम करने का अनुभव सहित बात करते हुए बताया कि वे श्रीदेवी को बहुत मिस करती हैं। ‘नॉयनतारा’ की क्या बात खास लगी, जो इसे एक्सेप्ट किया? इसमें क्रोमा शूटिंग है, इसलिए ग्रीन पर्दे पर काम करने का मौका मिल रहा था। आई थिंक, क्रोमा शूटिंग थोड़ा डिफरेंट होता है, क्योंकि उसके लिए इमेजिन करना होता है। यह इमेजिन वाला कांसेप्ट बड़ा अच्छा लगता है। सबसे पहले इस शो की स्टोरी लाइन मेरे पास आई। मुझसे पूछा गया था कि क्या यह शो करने के लिए इंटरेस्टेड हैं। मैंने बोला कि बताती हूं। स्टोरी लाइन पढ़कर लगा कि यह तो बड़ा अच्छा सीन और डिफरेंट कॉन्सेप्ट है। इसे करना ही चाहिए, सो स्टोरी लाइन पढ़कर ‘हां’ बोल दिया। टाइटल रोल निभा रही हैं। उसके बारे में बताइए? नॉयनतारा ऐसी लड़की है, जिसे बाबा भूतनाथ का वरदान मिला है। यह उन्हें देख-सुन सकती है, जिन्हें कोई नहीं देख-सुन सकता। उन सबकी तकलीफें कौन दूर करेगा, जिन्हें कोई नहीं देख पाता। इस काम को बखूबी करने के लिए बाबा भूतनाथ ने नॉयनतारा को भेजा है। अच्छा, ऐसी सेलिब्रिटी से बात करने का मौका मिले, जो दुनिया में नहीं हैं, तब किन से और क्या बात करेंगी? श्रीदेवी जी से मिलना चाहूंगी। उनसे मिलकर बताऊंगी कि आप बहुत अच्छी लगती हैं। मेरी मम्मी भी आपको बहुत प्यार करती हैं। हम सब आपको बहुत मिस करते हैं। आपका थोड़ा इमोशनल किरदार है, जो थका देने वाला होता है। कभी इमोशनल पल या थका देने वाली बात लगी? हमारे सीन बड़े इमोशनल लिखे गए हैं। यह सिर्फ जो शूट कर रहे हैं, उन्हें ही नहीं, बल्कि जो मॉनिटर पर क्रिएटिव लोग बैठते हैं, साउंड रिकॉर्डिस्ट या मेकअप आर्टिस्ट आदि जो देखते हैं, वे भी इमोशनल हो जाते हैं। कल ही शूट कर रही थी, तब कई टीम मेंबर की आंखों में आंसू आ गए थे। ऐसा हम सबके साथ अक्सर होता है, क्योंकि सीन में एकदम से घुस जाते हैं। एक सीन शो क टेलर में भी है, जहां मैं गिरती हूं, मेरे हाथ बंधे होते हैं और मुंह में लड्डू डाल रखा था। वह सीन थका देने वाला और थोड़ा डिफिकल्ट था। लेकिन उसकी शूटिंग बड़ी फास्ट हुई थी। इसे करते वक्त सभी मेरी हेल्प कर रहे थे। फिर भी थका देने वाला था। क्या कभी सेट पर ऐसा हुआ कि कोई आसपास नहीं है, फिर उसके होने का अहसास हुआ हो? नहीं, ऐसा कभी अहसास नहीं हुआ है और न ही कभी ऐसा अहसास होना चाहिए, क्योंकि हमारी शूटिंग फिल्मसिटी में हो रही है। फिल्मसिटी के बारे में कहा जाता है कि यहां ऐसी चीजें होती हैं। ठीक है, जब तक मैंने देखा नहीं, तब तक उसके बारे में क्या ही कहूं। मुझे रियल लाइफ में भी ऐसा अहसास कभी नहीं हुआ। टाइटल रोल निभाने की खुशी, चुनौती, जिम्मेदारी, प्रेशर, नर्वसनेस आदि के बारे में बताइए? इन सारे इमोशन का एक मिक्सर है। लेकिन सेट पर पांव रखती हूं, सीन रिहर्सल या शूट स्टार्ट करती हूं, तब वह नर्वसनेस हट जाती है। नॉयनतारा की टीम इतनी अच्छी है कि वह प्रेशर फील नहीं होने देती। परफॉर्म करते वक्त मुझे अच्छा ही दिखना है, सो कुछ गड़बड़ कर दूंगी, यह टेंशन लेकर काम नहीं करना चाहिए। मैं बहुत रिलैक्स होकर काम करती हूं। पहली बार क्रोमा पर शूट करने का अनुभव साझा कीजिए? पहली बार मैंने क्रोमा पर ‘बालवीर’ शो शूट किया था। उस समय मैं सातवीं में थी। इस बात को 10-11 साल हो गए हैं। उस समय तो अलग ही इमेजिनेशन वाली बात थी। अब तो वह बढ़ चुकी है, क्योंकि बड़ी हो चुकी हूं। इतने सालों बाद अब क्रोमा पर शूट करने का और भी मजा आ रहा है।

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