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नॉर्मल डिलीवरी के लिए सिखा रहे भरतनाट्यम:दावा-सीजेरियन से बच सकेंगी, महाभारत के अभिमन्यु की तरह मां के पेट में सुना रहे मंत्र-प्रेरक गाथाएं

गर्भवती महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी के लिए भरतनाट्यम नृत्य की प्रैक्टिस कराई जा रही है। बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए महाभारत के अभिमन्यु की तरह गर्भ में ही वैदिक मंत्र और प्रेरक गाथाएं सुनाई जा रही हैं। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर ने ‘श्रेयसी प्रजा इकाई’ के रूप में ये पहल की है। भरतनाट्यम विशेषज्ञ और आयुर्वेदिक चिकित्सक निधि गर्भवती महिलाओं को नृत्य का अभ्यास करा रही हैं। दिलचस्प ये है कि डॉ. निधि खुद 6 महीने की गर्भवती हैं। निधी आयुर्वेद संस्थान में योग, ध्यान और भरतनाट्यम की मुद्राओं की ट्रेनिंग देती हैं। उनका मानना है कि इससे मांसपेशियां मजबूत बनती हैं और सिजेरियन डिलीवरी से बचा जा सकता है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… गर्भ में ही संस्कार देने की प्राचीन भारतीय परंपरा राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर ने ‘श्रेयसी प्रजा इकाई’ की शुरुआत की है। इस इकाई का उद्देश्य गर्भवती और गर्भधारण की इच्छुक महिलाओं को आयुर्वेद, योग, ध्यान और मंत्रों के माध्यम से सकारात्मक वातावरण प्रदान करना है, जिससे वे अपने गर्भस्थ शिशु को अच्छे संस्कार और शिक्षा दे सकें। साथ ही उनका स्वास्थ्य सही रहे और डिलीवरी भी सामान्य हो सके। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान पदाधिकारियों का कहना है कि गर्भ संस्कार कोई नया विचार नहीं है। यह भारतीय संस्कृति और वेदों में हजारों वर्षों से वर्णित एक परंपरा है। क्या है गर्भ संस्कार और बीज संस्कार? (इस पहल के अंतर्गत गर्भवती और गर्भधारण की इच्छुक महिलाओं के लिए अलग-अलग गतिविधियां शामिल की गई हैं।) गर्भ संस्कार के 5 प्रमुख चरण (जैसा कि श्रेयसी प्रजा इकाई की हेड ऑफ डिपार्टमेंट, प्रोफेसर भारती कुमार मंगलम ने बताया।) सप्ताह में पांच दिन भरतनाट्यम की क्लासेज गर्भ संस्कार के तहत गर्भवती महिलाओं को पांचवें से नौवें महीने के बीच भरतनाट्यम का अभ्यास कराया जा रहा है। सप्ताह में पांच दिन क्लासेज लगाई जाती हैं। इन क्लासेस में गर्भवती महिलाओं को भरतनाट्यम की विशेष मुद्राएं सिखाई जाती हैं। इसका उद्देश्य यह है कि मांसपेशियां मजबूत हों। प्रसव पीड़ा कम हो। नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़े। ऐसा मानना है कि भरतनाट्यम से न केवल गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर होता है, बल्कि इसका सकारात्मक प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर भी पड़ता है। डॉ. निधि विशेष रूप से उन मुद्राओं की प्रैक्टिस करवा रही हैं, जो गर्भावस्था के दौरान शरीर को आराम देती हैं और डिलीवरी के समय सहायक होती हैं, जैसे— 2 साल का बच्चा करता है श्लोक का उच्चारण प्रोफेसर भारती कुमार मंगलम ने बताया कि जयपुर निवासी दो साल का स्वर कृष्णा अपनी टूटी फूटी भाषा में न सिर्फ संस्कृत के श्लोक का उच्चारण करता है, बल्कि अपनी मां के साथ आरती में भी हिस्सा लेता है। प्रो. भारती ने बताया कि स्वर कृष्णा की मां एकता ने गर्भावस्था के दौरान राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के गर्भ संस्कार सत्रों में भाग लिया था। वे मानती हैं कि उन्हीं संस्कारों का परिणाम है कि उनका बेटा वैसा ही विकसित हुआ, जैसा उन्होंने सोचा था। बड़ी संख्या में आ रही महिलाएं आयुर्वेद संस्थान की डॉक्टर पूनम चौधरी ने बताया कि बीते जनवरी में लगभग 86 महिलाएं बीच संस्कार के लिए आईं, जबकि 93 महिलाएं गर्भ संस्कार के लिए यहां पर आईं। पिछले साल भी बड़ी संख्या में महिलाओं ने इस दोनों संस्कारों में भाग लिया।

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