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जिले के ग्रामीण क्षेत्र सांगोद में पांच दिवसीय सांगोद के न्हाण लोकोत्सव अखाड़ा चौधरी पाड़ा की बारह भाले की सवारी के साथ शुरूआत हुई। लोकोत्सव में अश्वों पर सवार नन्हे अमीर उमरावों व राजस्थान की लोक संस्कृति, ऐतिहासिक किरदारों पर आधारित स्वांगों ने राजस्थान के अतीत की यादों को ताजा कर दिया। डीजे साउंड की धुन पर फिल्मी गानों पर थिरकते किन्नरों। 500 साल से जीवंत सांगोद के न्हाण की लोक परम्परा शान शौकत के साथ निकाला जाता है। सांगोद लोकोत्सव न्हाण 500 वर्ष पुराना है। इस परम्परा को यहां के बाशिंदे आज भी जीवित रखे हुए है। इस न्हाण की कड़ी प्रतिस्पर्धा ही इसका महत्वपूर्ण कामयाबी का राज माना जाता है। खाड़ा पक्ष के बादशाह की विरासत यहां के चतुर्वेदी परिवार को मिली थी। पहले इनके परदादा, दादा, पोते व पुत्र इस विरासत को आत्मसात करते दिखाई दे रहे है। लोकोत्सव में निकली गयी सवारी में इस बार परंपरागत स्वांग कम देखे गए लेकिन नए स्वांगों ने अपनी कलाकारी से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। स्वांगों के जरिए कलाकारों ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। सांगोद इलाके के लुहारों के चौक स्थित मां ब्रह्मणी मंदिर पर पूजा अर्चना के बाद शुरू हुई बारह भाले की सवारी जामा मस्जिद, होली का चौक, पुराना बाजार होते हुए मंदिर परिसर पहुंची। बारह भाले की सवारी में पुलिस का कड़ा बंदोबस्त रहा। न्हाण के संवेदनशील स्थान होली के चौक में पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में सेकड़ो पुलिस के जवान तैनात रहे। एहतियात के तौर पर सवारी के पूरे मार्ग पर पुलिस के जवान मुस्तेदी से डटे रहे। सवारी में अश्वों पर सवार नन्हें अमीर उमरावों ने चार चाद चांद लगा दिए। इस बार नन्हें मुन्हें बच्चों की संख्या अधिक रही। राजसी परिधान में सजे अमीर उमरावों को लोग निहारते रहे। आधुनिक परिधानों से सजे किन्नरों ने भी उमरावों के आगे महिलाओं की तरह ठुमके लगाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अमेरिका के राष्ट्रपति के भारत दौरे को लेकर आए स्वांग में द्विपक्षीय संवादों ने लोगों को खुब गुदगुदाया। वहीं कुंभ स्नान को जाते ओघड़ व साधु जब अश्वों पर निकले तो लोग एकटक निहारते रह गए। वहीं मराठा एवं राजपुताना संस्कृति पर लाए गए स्वांगों के साथ कांटों पर सोते संत के स्वांग ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। डीजे पर बजते फिल्मी व न्हाण के गीतों पर किन्नरों ने ठुमके लगाए तो लोग एकटक उन्हें देखते रहे। न्हाण देखने हर बार की तरह इस बार भी लोगों की भीड़ उमड़ी। न्हाण सवारी के मार्ग पर स्थित मकानों एवं दुकानों की छतों से लेकर बाहर तक लोगों की भीड़ नजर आई। महिलाओं के साथ बच्चों, बुजुर्ग एवं युवाओं ने भी न्हाण का भरपूर लुत्फ उठाया। आसपास के गांवों से भी बड़ी संख्या में लोग न्हाण देखने पहुंचे। सवारी का पूरा मार्ग लोगों की भीड़ से खचाखच भरा रहा। कई जगह तो भीड़ के चलते स्वांगों को भी परेशानी हुई। कथाओं के अनुसार, सांगोद पहले एक ‘खेड़ा’ था, जिसके मुखिया सांगा गुर्जर थे। जब दो जातियों के पटेलों ने उन पर आक्रमण किया तो धोखे से उनका सिर काट दिया गया। किंतु उनका धड़ तब भी युद्ध करता रहा। आज भी सांगा का सिर प्रतिमा के रूप में पूजनीय है। इसी की स्मृति में बारह भाले की सवारी और अमर शहीदी निशान निकाला जाता है। कहा जाता है कि जब कोटा रियासत बूंदी से अलग हुई, तब राजा माधोसिंह की पदवी के जश्न में सांगोद के कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। प्रसन्न होकर राजा ने नक्कारे की जोड़ी भेंट की तथा सांगोद में भी राजसी ठाठबाठ से बादशाह की सवारी निकालने की अनुमति दी। इसके बाद शाहजहां के काल में सांगोद के चौधरी और नीलगर परिवारों को भी शाही लवाजमे के साथ सवारी निकालने की अनुमति दी तब से यहां दो पक्ष बने। पहले न्हाण उत्सव की सवारी एक ही दिन निकाली जाती थी, जिससे झगड़ों की स्थिति बनती थी। इस समस्या को सुलझाने के लिए अंग्रेजी सरकार के कोटा रियासत के एजेंट बर्टन ने इसे दो हिस्सों में बांटा। इस निर्णय के तहत दूज को दोनों पक्षों की घुघरी रस्म, तीज व चौथ को बाजार पक्ष का न्हाण, और छठ व सप्तमी को खाड़ा पक्ष का न्हाण निर्धारित किया गया। यही परंपरा आज भी जारी है।

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