दुनियाभर में हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। हर साल इस दिवस की थीम बदली जाती है। इस कड़ी में इस बार पर्यावरण दिवस की थीम प्लास्टिक प्रदूषण को हटाना रखी गई है। वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण में सबसे बड़ी चुनौतियों में प्लास्टिक शामिल है। क्योंकि, यह एक ऐसा पदार्थ है, जो कई सालों तक अस्तित्व में बना रहता है। धरती के भूगर्भ में पहुंचने पर यह मिट्टी की गुणवत्ता को नुकसान देता है, तो दूसरी तरफ नदी, समुद्र या जलाशयों में पहुंचने पर यह जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाता है। अंत में यह प्लास्टिक सीफूड के जरिए लोगों के शरीर तक पहुंचता है, जिससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का संभावना बढ़ती है। 1991 में कपड़े के बैग बनाने का व्यवसाय शुरू किया विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर जयपुर के एक व्यापारी की अनूठी पहल सामने आई है। सीकर के दाता रामगढ़ के दिनेश गुप्ता ने पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान कपड़े के बैग बनाकर दिया है। दिनेश गुप्ता पिछले 34 वर्षों से जयपुर में व्यापार कर रहे हैं। उन्होंने 1991 में कपड़े के बैग बनाने का व्यवसाय शुरू किया। शुरुआत में वे अपनी टीम के साथ प्रति वर्ष 5 लाख कपड़े के बैग बनाते थे। उस दौर में उनके पास संसाधन भी सीमित थे लेकिन समय बढ़ता गया और इन्होंने तकनीक की ओर रुख किया और अब मौजूदा दौर में दिनेश गुप्ता साल के करीब डेढ़ करोड़ कपड़े के बैग बना रहे हैं। अब तक दिनेश गुप्ता और उनकी टीम ने करीब 20 करोड़ कपड़े के बैग बना चुके हैं। इस अनूठी पहल के कारण उन्हें ‘बैगमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाने लगा। उन्होंने बताया कि वह जो बैग बनाते हैं वह पूरी तरह से कॉटन के होते हैं जो की रीसाइकल हो सकते हैं, बायोडिग्रेड हो सकते हैं और उनका बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है। जोकि सिंगल यूस प्लास्टिक का उपयोग संभव ही नहीं होता। जब उन्होंने कपड़े का बैग बनाना शुरू किया था तो शुरुआत में उन्होंने उसे मशीन का काम लिया जो अमूमन हर घर में पाई जाती है। दिनेश गुप्ता महिलाओं को उनके ही घर पर कपड़े का बैग बनाने का काम देते थे। महिलाएं घर पर कपड़े का बैग तैयार करती थी और दिनेश गुप्ता की टीम उनसे कलेक्ट करके बाजार में बेचा करती थी। जैसे-जैसे कपड़े के बैग की डिमांड बढ़ी तो दिनेश गुप्ता ने समय के साथ चलना उचित समझा और उन्होंने अपने इस कारोबार में जापानी मशीन का उपयोग किया। दिनेश गुप्ता आज के दौर में हजारों की संख्या में महिला पुरुषों को कपड़े का बैग बनाने के लिए रोजगार दे रहे हैं। यह सिलसिला न केवल उनकी फैक्ट्री तक सीमित है बल्कि कुछ महिला अपने घरों से ही कपड़े के बैग तैयार करके अपनी भूमिका निभा रही है। कोविड का दौर सभी को याद होगा। जिस दौर में हर तरफ कहीं ना कहीं बड़े बड़े रोजगारों पर भी एक ब्रेक लग गया था। लेकिन कपड़े के बैग का कारोबार कुछ ऐसा था कि जब कोरोना में लोग घर में थे तब दिनेश गुप्ता ने अपने विजन के साथ महिलाओं को घर पर ही रोजगार दिया और महिलाएं उसे दौर में भी अपना रोजगार और अपनी इनकम को सुचारू रख पाई।