कानून के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट में लोक अदालत आयोजित होने जा रही है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट देशभर के 5 हजार मामलों में राजनामा करवाने की कोशिश करेगा। इनमें राजस्थान से जुड़े 438 केस शामिल हैं। आपसी सहमति से निस्तारित करने के लिए पिछले डेढ़ महीने से दोनों पार्टियों में सहमति बनाने की कोशिश चल रही है। अगले सप्ताह 29 जुलाई से 3 अगस्त तक लोक अदालत में इन मामलों को रखा जाएगा। इसमें 45 साल पहले रेलवे और मजदूरों का मामला भी शामिल है। वहीं, 184 मामलों में सरकार पार्टी है, लेकिन सिर्फ एक में सहमति बन पाई है। पत्र लिखने के बाद भी सरकार की तरफ से राजस्थान में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (रालसा) को कोई जवाब नहीं मिला है। 45 साल पहले हुआ था मुकदमा, अब राजीनामे से होगा निस्तारण राजस्थान में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (रालसा) इन 438 केस में दोनों पार्टियों में आपसी सहमति बनाने के लिए पिछले कई दिनों से लगा हुआ हैं। कई कैसे में तो 15 दिनों से काउंसलिंग चल रही हैं। रालसा के सदस्य सचिव हरिओम अत्री ने बताया- उन्होंने 90 प्रतिशत मामलों की काउंसलिंग करवाई है। इसमें से कई केस में सफलता मिलने की उम्मीद है। इन मामलों में दोनों पार्टियों ने सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं। इनका फाइनल राजीनामा सुप्रीम कोर्ट में होगा। उन्होंने कहा- इन केस में 10 मामले रेलवे और मजदूरों के बीच के भी थे। इनकी शुरुआत करीब 45 साल पहले भरतपुर की लेबर कोर्ट से हुई थी। मुकदमा हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां आज तक लंबित चल रहा था। अब रेलवे अधिकारियों ने इन मजदूरों के पक्ष में 66.90 लाख रुपए का बैंक डीडी बना दिया है। उन्होंने बताया कि इन मजदूरों ने लंबे समय तक भरतपुर में रेलवे ट्रैक बनाने का काम किया था। मजूदरों की मांग थी कि उन्हें रेगुलर किया जाए। अगर उनकी सेवाएं समाप्त की जाती है तो उन्हें मुआवजा दिया जाए। रेलवे नहीं माना तो मजदूरों ने भरतपुर लेबर कोर्ट में केस कर दिया। मजदूरों के पक्ष में फैसला आया। लेकिन रेलवे ने पहले हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी। 184 मामलों में सरकार पार्टी लेकिन केवल 1 में बनी सहमति इन सभी मामलों में से 184 मामले ऐसे हैं, जिनमें राज्य सरकार पार्टी है। लेकिन राज्य सरकार की ओर से पूरी प्रक्रिया में सक्रियता नहीं दिखाने के चलते केवल 1 मामले में सहमति बन पाई है। दरअसल, रालसा ने इन केस के ऑफिसर इन चार्ज (ओआईसी) और पार्टियों के बीच काउंसलिंग करवाई। जिन बिंदुओं पर सहमति बन सकती थी। उन बिंदुओं पर निर्णय लेने का अधिकार ओआईसी स्तर पर नहीं था। ऐसे में रालसा ने सरकार को पत्र लिखकर कहा कि इन मामलों में काउंसलिंग के समय विभाग के सक्षम अधिकारी (प्रमुख शासन सचिव अथवा एसीएस स्तर) मौजूद रहे। इससे मामलों में सहमति बन सके। लेकिन सरकार की ओर से इसका कोई जवाब रालसा को नहीं मिला। यह हाल तो तब है, जब सुप्रीम कोर्ट इस लोक अदालत को लेकर बेहद गंभीर है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों ने लोक अदालत की तैयारियों को लेकर पहले प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के साथ बैठक की। उसके बाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और रालसा के सदस्य सचिव के साथ बैठक ली। वहीं तीसरी बैठक राज्य के मुख्य सचिव औऱ महाधिवक्ता के साथ की। जिससे सभी लोग इस लोक अदालत की गंभीरता को समझे और इसमें सफल बनाने में सक्रियता से जुटे।