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पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक के बाद कोल्ड वॉर जैसे हालात हैं। पाकिस्तान के साथ तनाव का यह पहला मामला नहीं है। भारत के साथ पहले हुए 1965, 1971 के युद्धों में और फिर कारगिल में पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा था। पाकिस्तान को हराने में राजस्थान के जवानों और फौजी अफसरों का भी योगदान रहा है। आज राजस्थान के रहने वाले लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह की कहानी, जिनका लोहा पाकिस्तानी सेना भी मानती थी, जो रिटायरमेंट के बाद संत बन गए। कहा जाता है 1971 के युद्ध में भारत सरकार ने सेना को पाकिस्तान से बुला लिया था। अगर हनुत सिंह को छूट मिली होती तो वे पाकिस्तान के एक बड़े भूभाग पर कब्जा करने की रणनीति बनाए हुए थे। उन्होंने भूगोल बदलने की पूरी तैयारी कर रखी थी। राजस्थान के जसोल के हनुत सिंह
राजस्थान के जसोल (बालोतरा) में पैदा हुए हनुत सिंह को भारतीय सेना के बेहतरीन कमांडर के तौर पर सम्मान से याद किया जाता है। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल वीके सिंह ने अपनी किताब- लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी, बायोग्राफी ऑफ ट्वेल्व सोल्जर्स में हनुत सिंह के बारे में विस्तार से लिखा है। हनुत सिंह ने दिसंबर 1971 में बसंतर की लड़ाई में पाकिस्तान के 50 से ज्यादा टैंक उड़ा दिए थे। 1971 में बांग्लादेश में भारतीय सेना से घिरता देख पाकिस्तान ने पश्चिमी मोर्चे पर कई जगह अटैक किया। राजस्थान में लोंगेवाला (जैसलमेर) में बुरी तरह हारने के बाद पाकिस्तान ने पंजाब और जम्मू कश्मीर से सटी सीमा पर हमले कर उलझाने की चाल चली। जम्मू-पंजाब सीमा पर पाकिस्तान की टैंक डिवीजन ने हमला किया। बसंतर की इस लड़ाई में उस समय लेफ्टिनेंट कर्नल ​हनुत सिंह की अचूक रणनीति ने पाकिस्तान को बुरी तरह हराया। हनुत सिंह 17 पूना हॉर्स को लीड कर रहे थे। बारूदी सुरंग वाली नदी में उतार दिए टैंक
बसंतर की लड़ाई में हनुत सिंह के फैसले ने ही रुख बदला। पाकिस्तानी टैंकों ने रात में हमला कर दिया था। पूना हॉर्स को जवाब देना था। पूना हॉर्स के सामने समस्या थी। उसे सामने नदी पार करनी थी, लेकिन उसमें पाकिस्तान ने बारूदी सुरंग बिछाई हुई थी। उन्हें साफ करने की जिम्मेदारी इंजीनियरिंग कोर की थी, लेकिन इसके लिए अगले दिन तक इंतजार करना होता। अगले दिन इंतजार करते तो पाकिस्तानी फौज आगे बढ़ जाती। रात गहरा रही थी। पूना हॉर्स को लीड कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल हनुत सिंह ने आधी रात को बारूदी सुरंगों से भरी नदी के पार टेंक ले जाने का फैसला किया। हनुत सिंह ने सेकेंड कमांड अजय सिंह को रात में ही बारूदी सुरंग से भरी नदी के पार टैंक ले जाने का आदेश दिया। यह सुन सब अवाक रह गए। फौज में कमांडिंग ऑफिसर का आदेश सर्वोपरि होता है। उन्होंने साफ कहा कि इस वक्त अगर नदी पार नहीं की तो इतिहास पुणे हॉर्स को कभी माफ नहीं करेगा। रात दो बजे पूरी टैंक बटालियन को नदी पार करवा दी। संयोग यह रहा कि एक भी बारूदी सुरंग नहीं फटी। लड़ाई में उतरे हनुत सिंह दुश्मन सेना के टैंक उड़ाए
बसंतर की लड़ाई में सेकेंड कमांड रहे अजय सिंह ने एक इंटरव्यू में उस पूरी लड़ाई के बारे में बताया था। रात में बारूदी सुरंगों से भरी नदी पारकर सब सुरक्षित पहुंच गए। उसके बाद की बटालियन के टैंक नहीं क्रॉस कर पाए। रात में भारतीय टैंकों ने हमला किया। इसके बाद तो पाकिस्तानी फौज के सारे टैंक एक-एक करके नष्ट करना शुरू कर दिए। हनुत सिंह ने खुद कई टैंक नष्ट किए। …तो पाकिस्तान का भूगोल बदल जाता
हनुत सिंह को साल 1986 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल सुंदरजी ने इतिहास के सबसे बड़े युद्धाभ्यास ऑपरेशन ब्रासटैक्स का जिम्मा दिया। यह अब तक की सबसे बड़ी सैन्य एक्सरसाइज थी। इसमें राजस्थान से सटी पाकिस्तान की सीमा पर सेना ने बड़ा अभ्यास किया। चार महीने तक डेढ़ लाख से ज्यादा सैनिक पाकिस्तानी सीमा पर मोर्चा जमाए रहे। सीमा पर हो रही इस बड़ी एक्सरसाइज से पाकिस्तान भी घबरा गया था और उसने भी इसे युद्ध की तैयारी के तौर पर देखा था। हालांकि इस अभ्यास के बारे में यही कहा गया था कि यह केवल एक्सरसाइज है। युद्धाभ्यास में भी थी आक्रामकता
लेफ्टिनेंट जनरल वीके सिंह ने अपनी किताब में इस एक्सरसाइज के बारे में लिखा है। इस पूरी एक्सरसाइज को हनुत सिंह ने जिस तरह लीड किया, उसमें आक्रामकता थी। ​हनुत सिंह ने तैयारी युद्ध जैसी ही की थी, सब कैलकुलेट था, केवल सरकार के इशारे का इंतजार था। उस समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। बाद में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच शुरू हो गए। सरकार ने सेना को वापस बुला लिया। इस सबसे हनुत सिंह भारी निराश हुए। कहा जाता है कि उस वक्त सरकार पीछे नहीं हटती और सेना को छूट देती तो हनुत सिंह पाकिस्तान के बहुत बड़े इलाके पर कब्जा कर इलाके का भूगोल बदल सकते थे। पाकिस्तानी परमाणु क्षमता को नष्ट करने का भी प्लान था
कहा जाता है कि इस एक्सरसाइज के पीछे कई तरह के प्लान थे। पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करने के प्लान के बारे में भी विचार किया गया था। कई देशों ने इस प्लान के बारे में बयान भी दिए थे लेकिन भारत सरकार ने इसे केवल सैन्य एक्सरसाइज ही बताया था। जनरल सुंदरजी से भिड़ गए थे हनुत सिंह, कमियों पर खरा बोलते थे
हनुत सिंह के बारे में कहा जाता है कि वे आर्मी और युद्ध के लिए ही बने थे। वे एक परफेक्ट कमांडर थे और खरा बोलने के लिए जाने जाते थे। उनसे कोई गलत बात नहीं मनवा सकता था और सीनियर्स को खुश करने के लिए हां में हां कतई नहीं मिलाते थे। मेजर जनरल वीके सिंह ने अपनी किताब में हनुत सिंह के बारे में इसी तरह के एक किस्से का उल्लेख किया है। जनरल सुंदरजी से कई मतभेद होने के बावजूद वे उन्हें बहुत मानते थे। एक बार सुंदर जी से एक बैठक में हनुत सिंह की बहस हो गई थी। सुंदर जी ने आर्म्ड डिवीजन की रोज की 100 किलोमीटर की मूवमेंट यानी एक दिन में 100 किलोमीटर जाकर हमला करने की क्षमता पर प्रेजेंटेशन दिया। इस पर हनुत सिंह ने साफ कह दिया कि आज जो हमारी हालत है, उसमें एक दिन में 20 किलोमीटर ही आगे बढ़ा जा सकता है। हमारी गाड़ियों, तोपों से लेकर मोबिलिटी व्हीकल में खामियां हैं। जब तक इनमें सुधार नहीं होता तब तक 100 नहीं 20 किलोमीटर ही मूवमेंट होगा। कमियां ठीक कर दीजिए, 100 नहीं 120 किलोमीटर का मूवमेंट हो जाएगा। इस बहस के बावजूद सुंदर जी हनुत सिंह से नाराज नहीं हुए। जब वे जनरल बने तो हनुत सिंह को ऑपरेशन कमांड की जिम्मेदारी दी। जब राजस्थान से लगती पाकिस्तानी सीमा पर सबसे बड़ा युद्धाभ्यास किया तो उसकी जिम्मेदारी भी हनुत सिंह को दी गई थी। आजीवन अविवाहित रहे, रिटायरमेंट के बाद संत बन गए
हनुत सिंह शुरू से धार्मिक प्रवृत्ति के थे। रोज पूजा करते थे। धार्मिक जीवन और सैनिक जीवन में उन्होंने लगातार बैलेंस रखा। उन्होंने शादी नहीं की थी। वे जवान अफसरों को भी अनमैरिड रहने की सीख देते थे। इसके कारण एक बार उनकी शिकायत भी हुई थी। हनुत सिंह अपनी स्पष्टवादिता के लिए जाने-जाते थे। उनकी यही ताकत उनकी कमजोरी भी बनी और वे सेनाध्यक्ष बनते-बनते रह गए। उनके कई विरोधियों ने यह भी प्रचार किया कि वे जरूरत से ज्यादा सख्त हैं। घमंडी होने के आरोप भी लगाए। कुछ ने यह भी तर्क दिया कि सेनाध्यक्ष ​विवाहित होना चाहिए। लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेना से 1991 में रिटायर होने के बाद हनुत सिंह ने पूरी तरह धार्मिक जीवन अपना लिया। वे संत बन गए थे। वे योगी की तरह जीए। 10 अप्रैल 2015 को देहरादून में उनका निधन हो गया। भारत-पाक बॉर्डर की यह खबर भी पढ़िए… लोंगेवाला में 120 भारतीय सैनिक 2-हजार पाकिस्तानियों से लड़े थे:4 प्लेन ने 45 चाइनीज टैंक उड़ाए थे; ‘बॉर्डर’ फिल्म से अलग है असली कहानी पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर की गई एयर स्ट्राइक और फिर सीजफायर चर्चा में बने हैं। इसी बीच भारत-पाक के बीच हुए पुराने युद्धों में भारत के हाथों हुई पाकिस्तान की करारी हार की चर्चाएं होने लगी हैं। 1971 के जिस युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए, उसकी शुरुआत बांग्लादेश से पहले राजस्थान बॉर्डर से हुई थी।

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