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गुजरात में कपास के खेतों में बचपन खपाने वाले बच्चाें के लिए पीडाे माडा संस्था की एक मुहिम ने न सिर्फ बच्चाें का भविष्य संवारा अपितु, इनके अभिभावकाें काे भी राेजगार की एक नई दिशा दी। यहां के लोगों को यहां की जलवायु के अनुकूल हल्दी की खेती के लिए प्रेरित किया जिससे उनकी फसल का उत्पादन बढ़ा और आर्थिक लाभ भी हुआ। अब इस इलाके के 102 गांवों के 25 हजार से ज्यादा किसान इस खेती से जुड़े हुए हैं और करीब 30 टन हल्दी का सालाना उत्पादन हो रहा है। इससे पहले यहां के कुछ लोग कपास की खेती करते थे और हजारों की संख्या में यहां के बच्चे गुजरात में कपास के खेतों में मजदूरी के लिए जाते थे। ऐसे में इनकी पढ़ाई बाधित हाेती थी। वहीं, रासायनिक छिड़काव का असर बच्चों के स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा। वर्ष 2012 में जिले के माडा गांव में संचालित संगठन ने यूनिसेफ के साथ मिलकर प्रचार प्रसार और सामुदायिक बैठक कर बालश्रम को रोकने का प्रयास किया, फिर जो किसान कपास की खेती करते थे उन्हें हल्दी के उत्पादन से जोड़ा। बाल श्रम से मुक्त कराने में संस्था की निदेशक रामिला और देवीलाल व्यास ने यूनिसेफ और स्थानीय सरकारी निकायों के साथ मिलकर ऐसे 4,200 बच्चों की पहचान की और उन्हें गुजरात से राजस्थान ले आए। यहां कई परिवार खेतों में एक तरफ हल्दी उगाते रहे हैं। इस मसाले की लागत बहुत कम है और मुनाफा ज्यादा है। इसकी खेती के लिए किसानों को तैयार करना चुनौतीपूर्ण था। हल्दी क्रांति लाने की दिशा में माही हल्दी पहल शुरू की और 2,500 से अधिक किसानों को इस बदलाव के लिए राजी किया। हल्दी उत्पादन का कार्य आज 30 टन तक पहुंच गया है।

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